डॉक्टर जी का प्रेरक प्रसंग
1. जन्मजात देशभक्त :-
पूजनीय डॉ. जी के बचपन की घटनाएँ – अँग्रेजी झण्डा किले से उतारने के लिए सुरंग खोदने का प्रयास करना, अँग्रेजों की महारानी के राज्यारोहण के वर्षगाँठ पर बैंटी मिठाई न खाना, उनके सम्मान में आयोजित समारोह में न जाना आदि डॉक्टर जी के जन्मजात देशभक्त होने के प्रमाण हैं | अपने देश को असीम प्यार करने के कारण ही वे देश की दशा से दुखी थे और उसे सुधारने के विभिन्न प्रयासों में लगे रहे। वे क्रांतिकारी भी रहे। कलकत्ता में पढ़ने भी वे इसी उद्देश्य से गए। कांग्रेस में खूब कार्य किया, जेल भी गए | पर उनकी प्रखर देशभक्ति ने उनके द्वारा संघ की स्थापना का महान कार्य कराया तथा अपने देश के प्रति कर्तव्य भाव और प्रेम के कारण ही उन्होंने अपना सारा जीवन इसी में खपा दिया। दुनिया के सब आकर्षण उन्होंने ठुकरा दिये। डॉक्टर जी दिन रात एक ही जाप किया करते थे, रट लगाते रहते थे कि कब और कैसे हिन्दू समाज संगठित होकर भारत सच्चे अर्थ में “हिन्दुस्थान” होगा। 1939 में डॉ. हेडगेवार जी कुछ सप्ताह नासिक में चिकित्सा के लिए रहे उस समय श्री गुरुजी उनके साथ थे। श्री गुरुजी ने देखा कि नींद में भी डॉ.जी के मुँह से जो शब्द निकलते थे, वे राष्ट्र कार्य की चिन्ता के ही रहते थे।
2. अद्भुत लोकसंग्रही :-
डॉक्टर जी सदैव योग्य बंधुओं को ढूंढते और उन्हें संघ से जोड़ते रहते थे। जेल में भी अनेक सत्याग्रहियों को उन्होंने संघ का घटक बना लिया। नागपुर में जो भी सार्वजनिक कार्यक्रम, उत्सव आदि होते उनमें वे जाते और वहाँ जो भी व्यक्ति काम के नजर आते उन्हें अपने कार्य व विचार के घेरे में ले लेते | देश के बड़े-बड़े नेताओं से उनके स्नेह सम्बंध थे | वे डॉक्टर जी के चरित्र, व्यवहार और कार्य से प्रभावित थे | विरोधी समझे जाने वाले लोग भी डॉक्टर जी का सम्मान करते थे। अनेक तरुण डॉक्टर जी के आह्वान पर संघ कार्य के लिए निकल पड़े, यह डॉक्टर जी की अद्भूत लोकसंग्रही वृत्ति के कारण ही संभव हुआ। डॉक्टर जी दायित्व देकर कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाते रहते थे। वे संघ के संस्थापक थे, किन्तु, मैं नेता हूँ ऐसा भाव अथवा व्यवहार उनके द्वारा कभी भी प्रदर्शित नहीं होता था ।
3. दैनिक शाखा :-
दैनिक शाखा डॉक्टर जी की अनुपम देन है। संघ संगठन का जो आश्चर्यजनक स्वरूप खड़ा हुआ है, इस दैनिक शाखा के कारण ही है। राजनैतिक क्षेत्र में शोध कार्य करने वाले एण्डरसन नामक एक अमरीकी लेखक कुछ वर्ष पहले भारत-भ्रमण पर आए। उन्होंने अमेरिकावासियों को संघ का परिचय करने के लिए ‘ब्रदरहुड इन सेफ्रन' (भगवे रंग भ्रातृभाव) नामक पुस्तक लिखी। उक्त विदेशी लेखक ने कांग्रेस दल ही नहीं अपितु भारतीय सेना को भी अधिक कार्यक्षम बनाने हेतु दैनिक शाखा पद्धति का अवलम्बन करने का सुझाव इस पुस्तक में दिया है। संघ स्वयंसेवकों के प्रतिदिन निर्धारित समय पर एकत्रित होने और दैनंदिन कार्यक्रमों को सुचारु रूप से सम्पन्न करने की इस प्रक्रिया से जिस संगठित शक्ति का प्रादुर्भाव होता है, उसे देखकर लोक-नायक जयप्रकाश नारायण जैसे अनुभवी एवं तपे हुए समाजसेवकों को भी आखिरी दिनों में नया नारा देने का मोह हुआ कि “देश कार्य के लिए प्रतिदिन कम से कम एक घण्टा दीजिए।”
4. संघ वृति का निर्माण :-
संघ-वृत्ति से व्यक्तियों को भरना हो, तो उसका उपाय बौद्धिक वर्ग, भाषण नहीं है। इस वृत्ति का निर्माण कैसे किया जाए, यह संघ-निर्माता का जीवन बतलाता है | अत्यन्त विशाल अन्तःकरण, स्वयंसेवकों पर माता-पिता से भी अधिक उत्कट और अलौकिक प्रेम, उज्ज्वल चारित्रय, अत्यन्त प्रखर कार्य-निष्ठा के कारण यह सम्भव हुआ। उनके अद्भुत स्नेह से अन्त:करण पूर्णत: विगलित होकर संस्कारित होता था। जिस प्रकार मूर्तिकार पाषाण में से मूर्ति का निर्माण करता है, उसी प्रकार अत्यन्त कुशलता से बुद्धि का कवच तोड़कर स्वयंसेवकों के मन पर संस्कार कर डॉक्टर जी ने उन्हें आकार दिया ।
डा.जी के सम्बंध में परम पूजनीय श्री गुरूजी का उद्बोधन :-
“भावावेश में आकर एक सामान्य मनुष्य भी हुतात्मा बन सकता है। किन्तु दिनों-दिन शरीर को घुलाना तथा वर्षानुवर्ष अपने आपको कण-कण कर जलाते रहना केवल अवतारी पुरुष का ही काम है और हमारे सौभाग्य से ऐसी विभूति हम में निर्माण हुई.”
“डॉक्टर जी स्वयं एक अति उच्च आदर्श बन चुके थे और ऐसे महापुरुष के चरणों में जो नतमस्तक नहीं हो सकता, वह संसार में कुछ नहीं कर सकता। उनमें माँ का वात्सल्य, पिता का उत्तरदायित्व तथा गुरु की शिक्षा का समन्वय था। ऐसे महान व्यक्ति की पूजा करने में मुझे अतिशय गर्व मालूम होता है। डॉक्टर जी की पूजा व्यक्तिपूजा नहीं हो सकती और यदि कोई उसे व्यक्ति पूजा समझे तो भी उसमें अभिमान होगा |”