अमृत वचन

अमृत वचन

Amrit Vachan

अमृत का शाब्दिक अर्थ "अमरता" है। "अमृत वचन" का अर्थ है "अमरता के वचन" या "अमृत जैसे वचन"। ऐसे सार्थक और प्रेरणादायक कथन होते हैं जो जीवन के सत्य, ज्ञान और नैतिकता को व्यक्त करते हैं। ये वचन अक्सर संस्कृत साहित्य, धार्मिक ग्रंथों और महापुरुषों के उपदेशों में पाए जाते हैं, और इनका उद्देश्य श्रोताओं को ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करना होता है। अमृत वचन, जीवन के महत्वपूर्ण सत्यों, नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिक ज्ञान को व्यक्त करने वाले प्रभावशाली कथन होते हैं। ये वचन, लोगों को सही मार्ग पर चलने, कठिनाइयों का सामना करने और जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। "अमृत वचन" न केवल हमें ज्ञान देते हैं, बल्कि हमें अपने जीवन को बेहतर बनाने और दूसरों के लिए प्रेरणादायक बनने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। यह वचन हमें अपनी आत्मिक यात्रा में स्थिर रहने और अपने कर्तव्यों को निभाने की शिक्षा देता है। ये “अमृत वचन” आत्मा को शुद्ध करने और जीवन में शांति, समर्पण और सत्य की राह पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। "अमृत वचन" ऐसे वचन हैं जो जीवन को सार्थक और आनंदित कर दें, यह शब्द उन बातों या शिक्षाओं के लिए इस्तेमाल होता है जो सुनने या पढ़ने वाले को आध्यात्मिक ज्ञान, प्रेरणा और सकारात्मकता प्रदान करती हैं। ये वचन हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में महत्वपूर्ण सबक सिखाते हैं, जैसे कि ज्ञान का महत्व, सत्य का पालन, विनम्रता, और दूसरों के प्रति सम्मान। ये सुभाषित हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने जीवन को बेहतर बनाने और दूसरों के लिए एक सकारात्मक प्रभाव डालने का प्रयास करें। मनुष्य के पास सबसे बड़ी पूंजी "अमृत वचन" हैं। क्योंकि धन और बल किसी को भी गलत राह पर ले जा सकते हैं। किन्तु "अमृत वचन" सदैव अच्छे कार्यो के लिए ही प्रेरित करेंगे।

अमृत-वचन अर्थात् अमृतों (अमर-महापुरुषों) के वचन, जिन महापुरुषों ने अपनी दीर्घकालीन समाज सेवा रूपी तपस्या के फलस्वरूप निचोड़ के रूप में शाश्वत अजर-अमर वाणी, युगों तक प्रेरणापुंज बने ध्येय वाक्य दिए। ये वाक्य हमें सुसंस्कृत करने में सक्षम होते हैं। महापुरुषों ने जिस तत्त्व को, आनन्द को प्राप्त कर लिया है उस आनन्द की प्राप्ति सभी भाई-बहिनों को हो जाय, ऐसा उनका स्वाभाविक प्रयास रहता है । उसी बात को लक्ष्य में रखकर उनकी सभी चेष्टाएँ होती हैं। इस बात की उन्हें धुन सवार हो जाती है। उनके मन में यही लगन रहती है कि किस प्रकार मनुष्यों का व्यवहार सात्त्विक हो, स्वार्थरहित हो, प्रेममय हो, उनके दैनिक जीवन में शान्ति-आनन्द का अनुभव हो और ऊँचे-से-ऊँचा आध्यात्मिक लाभ हो। इसी दिशा में उनका कहना, लिखना एवं समझाना होता है। व्यवहार की ऐसी बातें भी हैं, जिन्हें हम काम में लावें तो हमारे गृहस्थ जीवन में बड़ी शान्ति मिल सकती है। हमारे व्यापार का सुधार हो सकता है, उच्चकोटि का व्यवहार हो सकता है तथा उन बातों को काम में लाकर हम गृहस्थ में रहते हुए, व्यापार करते हुए भगवत्प्राप्ति कर सकते हैं। ऐसे समझने में सरल, उपयोगी, अमूल्य वचन बहुत कम उपलब्ध होते हैं। ऋषि, संत, मनीषि, परिव्राजक सन्यासी अद्वितीय गुणों से युक्त महापुरूष, साहित्यकार एवं वैज्ञानिकों के अनुभव युक्त विचारों के समायोजन का लघु प्रयास "अमृत वचन" में किया गया है। प्रसिद्ध देशभक्त त्यागी, बलिदानी, क्रांतिकारी वीर- जिन्होंने मातृभूमि के चरणों में अपने यौवन रूपी सुगंधित पुष्प को समर्पित कर दिया था, अनेक योद्धा, राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए जेल की कालकोठरियों में भीषण यातनायें सहन करते हुए हंसते- हंसते फांसी के फंदे पर झूल गये थे, उन सबकी प्रज्वलित राष्ट्र-भाव की प्रखर वाणी को भी संजोया गया है। धर्म-संस्कृति, राष्ट्र-भाव हिन्दुत्व एवं मानवीय गुणों के माध्यम से अपने राष्ट्र के आबाल वृद्ध समस्त जन को तथा ऐसे संस्कार केन्द्रों, विद्यालयों के व्यावहारिक रूप से ये "अमृत वचन" सुसंस्कारित कर सकेंगे।

इन्हीं विविध विषयों के अन्तर्गत अनेक अमृत वचन प्राप्त होते है। अस्तु, इस लेख के माध्यम से निम्न विषयों पर प्रकाश डाला गया है।

1. एकता
2. धर्म
3. संगठन 
4. विद्या
5. क्षमा
6. राष्ट्र - राष्ट्रीयता
7. उद्योग
8. कर्म
9. पवित्रता
10. पराक्रम


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