सुभाषित
भाषाओं में सबसे मधुर और उत्तम जिसे गीर्वाण भारती कहा जाता है, वह संस्कृत भाषा है। उसमे भी संस्कृत भाषा के द्वारा रचित काव्य अत्यंत मधुर होते हैं, उन काव्यो में भी सबसे अधिक मधुर सुभाषित होता है “सुभाषितं रत्नमुच्यते" अर्थात् - सुभाषित एक रत्न है, ऐसा हमारे शास्त्रों मे कथन है। मधुरतमा भाषा संस्कृत की सर्वाधिक मधुरता सुभाषितों में प्राप्त होती है। ‘सुष्ठु भाषितम् सुभाषितम्’ अर्थात् जो श्रेष्ठ और नीतियुक्त वचन हैं, वे सुभाषित है। ‘सु’ उपसर्गपूर्वक ‘भाष्’ (बोलना) धातु में ‘क्त’ प्रत्यय जुड़कर ‘सुभाषित’ शब्द बनता है, जिसका अर्थ है – अच्छी तरह बोला हुआ अर्थात् सत्य, कल्याणकारी। सुभाषित (सु + भाषित = सुन्दर ढंग से कही गयी बात) ऐसे शब्द-समूह, वाक्य या अनुच्छेदों को कहते हैं जिसमें कोई बात सुन्दर ढंग से या बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से कही गयी हो। सुवचन, सूक्ति, अनमोल वचन, आदि शब्द भी इसके लिये प्रयुक्त होते हैं। ‘सुभाषित’ शब्द का अर्थ है ‘सुन्दर वचन’ श्रेष्ठ रचनाकारों के द्वारा कहे गये ये सुन्दर वचन समाज के लिए कल्याणकारी होते हैं। बोलते समय अपने विचारो को सुन्दर ढंग से आदान प्रदान करने का श्रेष्ठ मार्ग सुभाषित कहलाता है। जिस प्रकार हिन्दी भाषा में सुभाषित, लोकोक्ति और मुहावरे होते हैं उसी प्रकार संस्कृत में सुभाषित होता है। सुभाषित नीतिवाक्य है। शास्त्र के वचन के अनुसार ‘पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्।’ अर्थात् पृथ्वी पर तीन रत्न पाये जाते हैं -जल अनन और सुभाषित। इन तीनों रत्नों मे से सुभाषित का स्थान भी उसी प्रकार श्रेष्ठ है। संस्कृत साहित्य में यत्र-तत्र सर्वत्र उदात्त भावों एवं सार्वभौम सत्य को व्यक्त करने वाली ये अमृतवाणियाँ प्रचुर रूप में विद्यमान हैं इन्हीं अमृतमय वाणियों को संस्कृत में सुभाषित कहा गया है । सुभाषित संस्कृत साहित्य के नवनीत समान है। ये शाश्वत जीवनमूल्य हैं, जो मनुष्य-जीवन के सर्वविध कल्याण हेतु पथ-प्रदर्शक होते है। इसी महत्त्व के कारण प्राचीनकाल से संस्कृत-साहित्य में सुभाषितों के प्रणयन और संचयन की परम्परा अद्यतन चली आ रही है। संस्कृत-साहित्य का प्राचीनतम उपलब्ध सुभाषितग्रन्थ सुभाषितरत्रकोष है। इसका अपर नाम कवीन्द्रवचनसमुच्चय भी है। इस ग्रन्थ का प्रथम संकलन विद्याधर पण्डित द्वारा 1100 ई. के लगभग किया गया था। इसके बाद सदुक्तिकर्णामृत, सूक्तिमुक्तावली, शार्ङ्खधरपद्धति, सुभाषितावली आदि अनेक ग्रन्थों की सुदीर्घं परम्परा प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त 'नीतिशतक' जैसे मौलिक सुभाषित ग्रन्थों के प्रणयन की भी परम्परा सतत प्रवाहमान है।
महत्व
मानव जीवन में सुभाषित का अत्यंत महत्व है। व्यवहार करने में, कार्य करने में, चिंतन करने में, लेखन करने में, अथवा विषय की स्थापना करने में सुभाषित का महत्वपूर्ण योगदान है। लोगो का आचरण कैसा हो? बात करने की शैली क्या हो? माता पिता और गुरु के लिए हमारा सबसे अच्छा व्यवहार क्या हो? इसका सुंदर तरीका हमें सुभाषित के द्वारा ही प्राप्त होता है। लोभ पाप का कारण है, हम लोगों का आचरण और व्यवहार कैसा होना चाहिए, इस प्रकार की शिक्षा हमें सुभाषित के द्वारा ही प्राप्त होती है। इनमें परिश्रम की महत्ता, क्रोध के दुष्प्रभाव, सभी वस्तुओं की उपादेयता और बुद्धि की विशेषता आदि जीवनोपयोगी जीवन-मूल्यों का वर्णन है व्यावहारिक जीवन में इनका प्रयोग करके व्यक्ति न केवल अपना, अपितु प्राणिमात्र का कल्याण कर सकता है। इन सुभाषित ग्रन्थों मे विविध विषयों पर विविध ग्रन्थों से आहरित नीतिसमन्वित और शिक्षाप्रद पद्य का संकलन प्राप्त होता है। इन पद्यों में विशेष रूप से अपने से बड़ों के प्रति सम्मान की भावना, गुरु के प्रति श्रद्धाभाव, चरित्र की रक्षा, धर्म के लक्षण, शुचिता व सत्य के महत्त्व का निदर्शन कराया गया है। वस्तुतः ये सुभाषित पद्य मानवीय जीवन मूल्यों की अभिवृद्धि के लिए प्रेरणा-स्रोत हैं। हम सभी इन पद्यों में वर्णित नैतिक गुणों को जीवन में धारण कर अधिक व्यवहार कुशल व चरित्रवान् बन सकते हैं एवं अपने वर्तमान जीवन को सार्थक बना सकते हैं। प्रिय पाठकों! अब हम सब सुभाषित क्या है यह जान गए होगे। भारतीय संस्कृति में सुभाषित का विशेष स्थान है, जो भारतीय विचारधारा को समर्थन करने वाले उत्सवों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। भारतीय संस्कृति ने समय के साथ सुभाषितों के माध्यम से अपने विचारों और शिक्षाओं को बखूबी व्यक्त किया है, और इन्हें सुनकर आत्मनिर्भर और सजग नागरिक बनाया गया है।
भारतीय संस्कृति की अमूर्त धारा सुभाषितों के माध्यम से आज भी हमें मार्गदर्शन कर रही है। इन सुभाषितों का समावेश उत्सवों में संघ के सिद्धांतों को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है, और लोगों को एक सशक्त और समृद्धि शील राष्ट्र की दिशा में मार्गदर्शन कर सकता है। इस प्रकार, सुभाषितों का उपयोग करना एक सामाजिक और सांस्कृतिक संस्कृति को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।
आत्मनिर्भरता का सिद्धांत: “अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम।” यह सिखाता है कि आत्मा को स्वीकार करने वाले हृदय से व्यक्ति सदैव आत्मनिर्भर रहता है।
समृद्धि की दिशा: “जितने कष्ट कंटको में है जिसका जीवन सुमन खिला।” यह उत्साही और संघर्षशील जीवन की महत्वपूर्णता को बताता है।
धर्म और सेवा का महत्व: “सर्व धर्म समा वृत्तिः, सर्व जाति समा मतिः।” यह भारतीय समाज में एकता, सामंजस्य, और सेवा की महत्वपूर्ण बातें साझा करता है।
ज्ञान का महत्व: “विद्या ददाति विनयं विन्यात याति पात्रताम।” इस सुभाषित से स्पष्ट होता है कि ज्ञान, विनय, और पात्रता के बिना समृद्धि नहीं हो सकती।
एकता का सिद्धांत: “सर्व धर्म समा वृत्तिः, सर्व जाति समा मतिः।” इस से यह सिखने को मिलता है कि सभी लोगों को एकसाथ आगे बढ़ने का समर्थन करना चाहिए।
सेवा का आदर्श: “सर्व सेवा परानीति रीतिः संघस्य पद्धति।” यह सुभाषित सेवा की महत्वपूर्णता को बताता है और संघ की सेवाभावना को प्रमोट करता है।
आत्मनिर्भरता की प्रेरणा: “विद्या ददाति विनयं विन्यात याति पात्रताम।” इस से यह सिखने को मिलता है कि विद्या और विनय के माध्यम से आत्मनिर्भरता की प्राप्ति होती है।
राष्ट्रभक्ति का सिद्धांत: “नत्वहम कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम।” इस से यह सिखने को मिलता है कि सच्चे राष्ट्रभक्ति का मतलब स्वर्ग या पुनर्जन्म की इच्छा नहीं, बल्कि देश की सेवा करना है।
समापन
सुभाषितम् अनेक ग्रंथों में यत्र-तत्र बिखरे पड़े उपयोगी, संस्कारक्षम, संस्कृति, धर्म, मानवता, राष्ट्रीय चारित्र्य तथा अनेक गुणों से युक्त श्लोकों का संकलन का कार्य किया गया हैं। विभिन्न ग्रन्थों का परिश्रम पूर्वक अध्ययन कर नवनीत के रूप में सुभाषितम् को प्रस्तुत किया हैं। सुभाषित अर्थात् सुदीर्घ अनुभवों तथा गहराई से किए गए विचार चिन्तन को सूक्ष्म रुप से श्लोकों में आबद्ध करना। सुभाषितम् के माध्यम से आबाल-वृद्ध सभी को जीवन में सुसंस्कार एवं सही मार्गदर्शन मिले, यही आकांक्षा पाठकों से अपेक्षित है। प्रस्तुत लेख में विभिन्न संस्कृत-ग्रन्थों से ऐसे ही सुभाषितों का संकलन किया गया है।
इन्हीं विविध विषयों के अन्तर्गत अनेक सुभाषित पद्य प्राप्त होते है। अस्तु, इस लेख के माध्यम से निम्न विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
1. एकता
2. धर्म
3. संगठन
4. विद्या
5. क्षमा
6. राष्ट्र - राष्ट्रीयता
7. उद्योग
8. कर्म
9. पवित्रता
10. पराक्रम