शाखा : आचार पद्धति (Achar Paddhati)
शाखा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में, "शाखा" एक विशिष्ट स्थान है जहाँ स्वयंसेवक नियमित रूप से मिलते हैं और विभिन्न गतिविधियों में भाग लेते हैं। यह एक प्रकार का समुदाय केंद्र है जहाँ शारीरिक व्यायाम, योग, खेल, देशभक्ति और सामाजिक सेवा से संबंधित कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। किसी एक क्षेत्र में आरएसएस से जुड़े स्वयंसेवकों के दैनिक तौर पर इकट्ठा होने को संघ की शाखा कहा जाता है। यह एकत्रीकरण एक पूर्व निर्धारित स्थान पर निर्धारित समय पर होता है। उस स्थान को संघ स्थान कहा जाता है। यह कोई भी सार्वजनिक या निजी स्थान हो सकता है, जिसमें स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण पर उस स्थान के स्वामी को आपत्ति ना हो। सामान्यतया किसी सार्वजनिक पार्क के किसी कोने पर संघ शाखा लगाई जाती है। जिस स्थान पर शाखा लगती है उसे हम संघस्थान कहते हैं, खेल का मैदान नहीं। संघस्थान तैयार करना पड़ता है। संघ में शाखा यानी भारत माता की आराधना ही है। वह स्थान, जहां भारत माता की प्रार्थना होती है तथा जहां अज्ञान का अंधकार दूर करने वाले भगवा ध्वज की स्थापना होती है, वह स्थान कैसा होना चाहिए? वह स्थान होना चाहिए मंदिर के समान स्वच्छ, पानी से धोकर साफ किया, रेखांकन (रंगोली) से सजा-धजा। मंदिर में जहां देव मूर्ति होती है, उसे गर्भगृह कहते हैं। मंदिर कितना भी बड़ा हो फिर भी गर्भगृह छोटा होता है। गर्भगृह में देव पूजा करने वाला पुजारी ही जा सकता है। अन्य सभी के लिए निश्चित दूरी से दर्शन करने की व्यवस्था रहती है। संघ स्थान को हम भारत माता का मंदिर मानते हैं। यह साफ-स्वच्छ हो, ध्वज मंडल (गर्भगृह), संपत रेखा (स्वयंसेवकों के खड़े होने का सीमांकन), मुख्य शिक्षक, कार्यवाह के खड़े होने का स्थान, जूते-चप्पल रखने तथा वाहन खड़े करने का स्थान…सब निश्चित करना पड़ता है। नए आए व्यक्ति को यह रचना देखकर वहां के नियम का पालन करने की इच्छा होती है। देव पूजा के लिए पूजा साहित्य तैयार करना पड़ता है, वैसे ही यहां भी सीटी, रिंग, दंड, वॉलीबॉल, योगदरी (मैट) इत्यादि की व्यवस्था करनी होती है। यह प्रातःकाल हो सकती है या फिर सायंकाल भी। सामान्यतया तरुणों अर्थात् वयस्कों की शाखा प्रातःकाल तथा बच्चों या विद्यार्थियों की शाखा सायंकाल लगाई जाती है। हालांकि किसी भी शाखा में किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति आ सकता है। शाखा का समय प्रायः एक घंटा होता है। आवश्यकता के अनुसार इसे कम या अधिक किया जा सकता है। किसी शाखा का प्रमुख व्यक्ति मुख्य शिक्षक होता है। शाखा लगाने, शाखा में सभी कार्यक्रम कराने और शाखा क्षेत्र के स्वयंसेवकों से सम्पर्क करने का दायित्व मुख्य शिक्षक का ही होता है। हालांकि इन कार्यों में उसकी सहायता कोई भी स्वयंसेवक कर सकता है। निर्धारित समय पर जब कुछ स्वयंसेवक आ जाते हैं। शाखा का समय होने पर मुख्य शिक्षक दो बार एक लंबी-एक छोटी सीटी बजाता है। सीटी बजाने में मुख्य शिक्षक की कुशलता प्रकट होती है। फिर पूर्ण शांति स्थापित हो जाती है, आपस में बातचीत बंद हो जाती है। सभी प्रकार की हलचल बंद हो जाती है। सभी स्वयंसेवक सावधान होकर अगली सूचना (आज्ञा) सुनने को तैयार होते हैं। अग्रेसरों का शान से चलना, संपत रेखा पर संपत होना, मुख्य शिक्षक का उन्हें निश्चित अंतर पर खड़ा करना, ये सब बातें नवागत पर असर करने वाली होती हैं। उसे तुरंत समझ में आता है कि वह एक विशेष स्थान पर आया है, जो केवल खेल का मैदान नहीं है।
प्रारंभ में ध्वज मंडल में भगवा ध्वज लगाया जाता है। ध्वज लगाने वाला ध्वज मंडल में जा सकता है। सभी लोग ध्वज को प्रणाम करते हैं और शाखा प्रारंभ हो जाती है। जो लोग देर से आते हैं, वे पहले ध्वज को प्रणाम करते हैं, फिर मुख्य शिक्षक को प्रणाम करके शाखा में सम्मिलित होने की आज्ञा लेते हैं। संघ में भगवा ध्वज को ही गुरु माना जाता है, किसी व्यक्ति को नहीं। इसलिए जब ध्वज लगा होता है, तो स्वयंसेवक आपस में नमस्कार नहीं करते। ध्वज उतर जाने के बाद ही आपस में नमस्कार किया जा सकता है। श्री गुरु यानी अंधकार को दूर कर सत्य से पहचान कराने वाला। श्री गुरु की महिमा बताने वाले अनेक श्लोक धार्मिक ग्रंथों में मिलते हैं। एक श्लोक की शुरुआत ही ‘ज्ञान मूलम् गुरु मूर्ति’ से होती है। श्री गुरु के केवल दर्शन मात्र से ही सत्य का ज्ञान हो जाता है। असत्य की जानकारी को कोई ज्ञान नहीं कहता। ध्वज प्रणाम के बाद शाखा में शारीरिक और बौद्धिक कार्यक्रमों की रचना होती है। शाखा में कई कार्यक्रम होते हैं, जैसे प्रातःस्मरण या एकात्मता स्तोत्र, व्यायाम, योग, प्राणायाम, सूर्य नमस्कार, खेलकूद आदि। स्वयंसेवकों की उम्र के अनुसार ही व्यायामों और खेलों का चयन किया जाता है। इनको शारीरिक कार्यक्रम कहा जाता है। ये सभी कुल मिलाकर लगभग 40 मिनट तक होते हैं। फिर पास-पास गोल घेरे में या पंक्तियों में जमीन पर बैठकर बौद्धिक कार्यक्रम होते हैं, जैसे गीत, सुभाषित, प्रेरक प्रसंग आदि। गीत और सुभाषित सामूहिक होते हैं। समय होने पर सामयिक विषयों पर चर्चा भी होती है। सभी बौद्धिक कार्यक्रम लगभग 20 मिनट होते हैं। आखिर में संघ की प्रार्थना होती है, जिसे एक स्वयंसेवक बोलता है और बाकी सब दोहराते हैं। प्रार्थना के बाद सभी लोग ध्वज प्रणाम करते हैं और प्रार्थना बोलने वाला स्वयंसेवक ध्वज उतार लेता है। उसके बाद विकिर अर्थात् शाखा का समापन किया जाता है। विकिर के बाद स्वयंसेवक अपने-अपने घर जा सकते हैं। सहभागी घटकों में स्वयंसेवकत्व विकसित हो, इसका प्रयत्न होता है। सत्यनिष्ठा एवं राष्ट्रनिष्ठा, ये दो गुण आग्रहपूर्वक स्वयंसेवकों में होने ही चाहिए। (सत्यनिष्ठा यानी सत्य क्या है, यह जानने की इच्छा) स्वयंसेवक में समाज से अपने को जोड़ने की कला होनी चाहिए। सबके साथ मिलकर और सबको साथ लेकर काम करना आना चाहिए। भारत माता के प्रति असंदिग्ध निष्ठा होनी चाहिए, ऐसा परम पूजनीय गुरुजी कहा करते थे। कोई संदेह नहीं। कोई अपेक्षा नहीं। इदं राष्ट्राय, इदं न मम्।। भारतमाता सब की कुल देवी हैं। वक्तृत्व, मान-सम्मान, सत्कार, पुरस्कार, ये सब भारतमाता के चरणों में अर्पण। स्वामी विवेकानंद कहते थे, ‘भारत माता की बलिवेदी पर बलि देने के लिए ही आपका जन्म हुआ है।’
संघ में अनुशासन का बहुत महत्व है। शाखा में सभी स्वयंसेवक मुख्यशिक्षक की आज्ञा मानते हैं और उनके अनुसार सभी कार्यक्रम करते हैं। इस अनुशासन को कोई भी नहीं तोड़ता। शाखा में सभी एक दूसरे को आदरपूर्वक संबोधित करते हैं और प्रथम नाम या मूल नाम में ‘जी’ लगाकर बोलते हैं। जैसे राहुल जी, वैभव जी, सुधाकर जी आदि। चाहे वह व्यक्ति उम्र में बड़ा हो या फिर छोटा हो। अहम बात है कि शाखा में कुलनामों का उच्चारण नहीं किया जाता। शाखा में एक दूसरे की जाति आदि पूछना या बताना मना है। सभी हिंदू हैं, बस इतना ही पर्याप्त है। मुसलमानों और ईसाइयों को भी क्रमशः मोहम्मदपंथी हिंदू और ईसापंथी हिंदू कहते हैं। इसलिए वे भी बेहिचक शाखा में आ सकते हैं। किसी शाखा में आने वाले स्वयंसेवक साथ-साथ मिलकर ही सभी शारीरिक और बौद्धिक कार्यक्रम करते हैं। ऐसा करते-करते उनमें सहज ही आत्मीयता उत्पन्न हो जाती है। इससे समाज का संगठन होता है। हिंदू समाज का संगठन करना ही संघ का प्रमुख कार्य है और स्वयंसेवक शाखा को इसका एक सशक्त माध्यम मानते हैं। संघ की शाखा जहां हिन्दू राष्ट्र भारत के प्रति खुद को समर्पित करना सिखाती है तो वहीं यह सत्य को जानकर, समाज को जोड़ने और सबको साथ लेकर आगे बढ़ने का मार्ग भी बताती है।
शाखा की समय सारिणी
स्वयंसेवक निर्माण की दृष्टि से शाखा पर सभी प्रकार के शारीरिक व बौद्धिक कार्यक्रमों की उपयोगिता है। दैनिक शाखा का समय केवल एक घण्टा होने के कारण सभी कार्यक्रम नित्य नहीं हो सकते। अतः शाखा की दैनिक, साप्ताहिक समयसारिणी का विचार आवश्यक तदर्थ, अपनी शाखा टोली के कार्यकर्ताओं के साथ विचार-विमर्श कर योजना बनाना अपेक्षित। इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रखें
(क) नित्य अनिवार्य कार्यक्रम :-
(1) समंत्र तेरह सूर्यनमस्कार (2) 25 दण्ड प्रहार (3) समता-संचलन (4) गीत (5) अमृतवचन / सुभाषित (15-15 दिन प्रत्येक) अपेक्षा है कि 15 दिन में अमृतवचन / सुभाषित तथा एक माह में एक गीत कंठस्थ हो, 5-6 दिन तो सांघिक भी बोला जा सके।
(ख) वैकल्पिक कार्यक्रम
स्वयंसेवकों की आयु, अभ्यास आदि में भिन्नता के कारण सभी शाखाओं / गणों में सभी शारीरिक कार्यक्रम नहीं हो सकते, अतः निम्न में से अपनी शाखा स्थिति के अनुसार किसी एक कार्यक्रम का 3-4 मास तक सप्ताह में 2-3 दिन अभ्यास किया जाए-
- प्रौढ़ों के लिए – योगासन, संधि व्यायाम, आवर्तन ध्यान,प्राणायाम, दण्ड के प्राथमिक प्रयोग आदि ।
- तरुणों के लिए – पदविन्यास, दण्ड (शरीर तथा शस्त्र संचालन में समन्वय हेतु); दण्ड युद्ध, नियुद्ध (साहस, संघर्ष – सन्नद्धता हेतु)
- बालको के लिए – पदविन्यास, योगचाप, योगासन, दण्ड
- शिशुओं के लिए – योगासन, विभिन्न साधनों से युक्त योग ( पताका रुमाल, चप्पल, पत्थर आदि)
(ग) समान कार्यक्रम
( व्यायाम योग) सप्ताह में एक-दो बार सभी शाखाओं पर एक समान व्यायाम योग कराना। वर्ष के तीन खण्डों के अलग-अलग इकाई पर समान योग निश्चित किए जाते हैं। आखल भारतीय स्तर पर, प्रान्तीय स्तर पर, विभाग / जिला स्तर पर ।
(घ) खेल
विजीगीषु भाव जगाने के लिए सभी प्रकार की शाखाओं पर आवश्यक। सामान्यतः शिशुओं, बालों को दौड़-भाग तथा उछलकूद वाले; तरुणों को संघर्ष तथा प्रौढ़ों को कम शारीरिक हलचल वाले खेल कराना। कबड्डी, खो-खो या आट्या-पाट्या सप्ताह में दो बार 15-20 मिनट खिलाना अपेक्षित।
(ङ) बौद्धिक कार्यक्रम
कथा-कहानी, चर्चा, समाचार – समीक्षा, बौद्धिक वर्ग, प्रश्नोत्तरी, आदि कार्यक्रमों के लिए सामान्यतः सप्ताह में दो दिन 20-25 मिनट का समय निकालें ।
उपरोक्त बातों का ध्यान रख कर विचारार्थ एक घंटे की शाखा का समय का विभाजन निम्न प्रकार किया गया है
05 मिनट - शाखा लगाना एवं उष्ण व्यायाम
15 मिनट - अनिवार्य शारीरिक कार्यक्र्म (सूर्य नमस्कार ,प्रहार ,समता )
15 मिनट - खेल
10 मिनट - वेकल्पिक शारीरिक कार्यक्र्म /व्यायाम योग
10 मिनट - सप्ताह मे चार से पाँच दिन बोद्धिक कार्यक्र्म /सुभाषित / अमरत वचन , गीत
05 मिनट - प्रार्थना
60 मिनट - सम्पूर्ण शाखा
साप्ताहिक सेवा दिन
स्वयंसेवक के जीवन में सेवाभाव जगाने के लिए शाखा की रचना में एक दिन की योजना ‘साप्ताहिक सेवा दिन’ के रूप में की गई है। मास के चार दिनों में इस दिन की रचना का प्रकार निम्नानुसार किया जाए-
- एक दिन किसी महापुरुष / संत के जीवन में से सेवाभाव जगाने वाले कोई प्रेरक प्रसंग सुनानाएक दिन समाज में चल रहे अच्छे सेवा कार्यों में से किसी का वर्णन करना ।
- सेवा कार्य करने वाले अपने कार्यकर्ता या समाज बंधु-भगिनियों में से किसी के द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव कथन। स्वयंसेवकों के प्रत्यक्ष सेवा कार्य का अनुभव हो इस दृष्टि से-
- संघस्थान पर ही कुछ श्रमानुभव
- बस्ती में अथवा किसी धर्म-स्थान पर कोई श्रमकार्य
- सेवा बस्ती दर्शन, ताकि उन बस्तियों में रहने वाले समाज की परिस्थितयों व कठिनाइयों का ज्ञान हो सके।
- इसके अतिरिक्त भी अन्य अनेक प्रयोग अपनी प्रतिभा, कल्पकता तथा स्थानीय परिस्थिति की उपलब्धता के आधार पर किये जा सकते हैं। जैसे- किसी अंध विद्यालय में ले जाकर स्वयंसेवकों को अनुभूतिकराना, चिकित्सालय में मरीजों को देखना- उनकी कुछ सहायता करना आदि।
नैमित्तिक कार्यक्रम
वर्तमान काल में स्वयंसेवक निर्माण के लिए शाखा एक यशस्वी तंत्र है। शाखा पर होने वाले विविध प्रकार के कार्यक्रम. ही इस निर्माण का माध्यम हैं। लेकिन दैनिक शाखा के अतिरिक्त भी हम कभी-कभी कुछ विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इनका उद्देश्य स्वयंसेवकों में विद्यमान अनेक अन्य प्रतिभाओं को पहचानना, उन्हें विकसित करना होता है। इस प्रकार गुण विशेष के निर्माण या किसी निमित्त विशेष को ध्यान में रखकर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रम नैमित्तिक कार्यक्रम कहलाते हैं। संघ की कार्यपद्धति में इनका विशेष महत्त्व है। उदाहरणार्थ सामूहिक जीवन के अभ्यास के लिए शिविर; सहभोज – चंदन से परस्पर आत्मीयता, परिवार भाव तथा समरसता का वायुमंडल, नैपुण्यवर्ग तथा शिक्षा वर्गों से कार्य का सम्यक् प्रशिक्षण, पथसंचलन से उत्साह, अनुशासन व समाज में शक्ति का दर्शन, वार्षिकोत्सव से छोटी-बड़ी व्यवस्थाएँ करना व योजकता; ट्रिप व वनविहार आदि से कष्टपूर्ण जीवन में भी हिम्मत, मस्ती का स्वभाव, साहसी मनोवृत्ति आदि । इस प्रकार के नैमित्तिक कार्यक्रम जहाँ प्रान्त विभाग – जिला नगर मंडल के स्तर पर आयोजित किए जाते हैं, वहीं यह भी अपेक्षा है कि शाखा के स्तर पर शाखा टोली के कार्यकर्ताओं की सोच, प्रतिभा के आधार भी आयोजित किये जाएँ। – शाखा के स्तर पर सहभोज, चन्दन, कभी किसी विषय पर जानकारी देने हेतु स्वयंसेवकों की विशेष बैठक, शाखा वार्षिकोत्सव, स्वयंसेवकों के परिवारजनों का मिलन, स्थलदर्शन (संघ-कार्यालय, कोई मंदिर, संग्रहालय-प्रदर्शनी आदि) का कार्यक्रम, नेत्रदान संकल्प, रक्तदान शिविर, वृक्षारोपण, बस्ती अथवा बस्ती के धार्मिक स्थल का स्वच्छता अभियान, साक्षरता, सामाजिक जागृति के अनेक विषय आदि । अपेक्षा है शाखा के द्वारा वर्ष भर में कम से कम 3-4 बार तो स्वयं की योजना से उपरोक्त प्रकार के या स्वयं की प्रतिभा से और भी कोई कार्यक्रम किए जाने चाहियें।
बौद्धिक योजना
(क) कण्ठस्थ विभाग
- गीत कंठस्थ होना चाहिए । शाखा में गीत नित्य हो, प्रयत्न रहे कि मास के अंतिम सप्ताह में तो गीत सांघिक हो। स्वयंसेवकों को गीत का अर्थ बताना । बौद्धिक वर्ग से पूर्व का काव्य गीत कण्ठस्थ करके गाना ।गीत याद करने की प्रवृत्ति तथा रुचि बढ़ाने के लिए अन्त्याक्षरी कराना। (सुरुचि द्वारा प्रकाशित ‘आओ खेलें अन्त्याक्षरी’ जैसी पुस्तकें उपयोगी)
- प्रार्थना :-सभी स्वयंसेवकों को प्रार्थना कण्ठस्थ होनी चाहिए। प्रार्थना का अर्थ बताना। उच्चारण शुद्ध कराना । प्रार्थना कहलाने वाले स्वयंसेवकों का एक संच खड़ा करना चाहिए।
- सुभाषित :-सुदीर्घ अनुभव तथा चिन्तन को सूक्ष्म रूप से संस्कृत अथवा अपनी भाषा में पद्य में व्यक्त करना सु-भाषित कहलता है।
- अमृतवचन :- अमृतवचन (अमरवाणी) जो महापुरुष अमर हो चुके ऐसे अमृतों (अमर) की वाणी । चिरन्तन शाश्वत विचार अर्थात् अमर-वचन ।
- एकात्मता स्तोत्र
- एकात्मता मंत्र
- भोजन मंत्र
- संगठन मंत्र
(ख) पारस्परिक विभाग
- प्रश्नोत्तरी :- किसी एक अथवा विविध विषयों पर यह कार्यक्रम हो सकता है।
- चर्चा :- सभी स्वयंसेवक इस कार्यक्रम में भाग लें।
- प्रश्न मंच :- एक अथवा अनेक विषयों पर अनेक प्रश्न तैयार करके स्पर्धा करना। (विद्याभारती द्वारा प्रकाशित ‘संस्कृति ज्ञान परीक्षा तथा सुरुचि द्वारा प्रकाशित “भारत परिचय प्रश्न मंच जैसी पुस्तिकाएँ उपयोगी)
(ग) एक पक्षीय विभाग
एक पक्षीय विषयों में प्रवचन कथाएँ एवं बौद्धिक वर्ग आदि। इन विषयों की पूर्व तैयारी करनी चाहिये। सन्दर्भ ग्रन्थालय संघ कार्यालय में एवं व्यक्तिगत भी हो सकता है।
(घ) समाचार समीक्षा
मास में एक दिन शाखा में यह विषय लें। सम-सामयिक घटनाओं उनकी पृष्ठभूमि एवं सामाजिक-राजनैतिक राष्ट्रीय प्रभाव के बारे में जानकारी व विश्लेषण । इस कार्यक्रम को शाखा पर ठीक प्रकार से लेने के लिए शाखा के किसी स्वयंसेवक को इस हेतु नियत करना उपयोगी। वह स्वयंसेवक समाचार पत्र-पत्रिकाओं को पढ़े तथा उपयुक्त समाचार लेख आदि जिनसे स्वयंसेवकों में राष्ट्रबोध, सामाजिकता, हिन्दुत्व के प्रति गौरव, हिन्दुत्व के समक्ष चुनौतियाँ आदि विषयों की स्पष्टता हेतु प्रमुख मुद्दों का संकलन करे। सामान्यतः सम्पादकीय, लेखों तथा पत्रिकाओं में से समाचारों की पृष्ठभूमि प्राप्त होती है। इस दृष्टि से पांचजन्य, आर्गेनाइजर, जागरण पत्रिकाएँ विशेष उपयोगी हैं। समय-समय पर यह स्वयंसेवकों अथवा प्रवासी कार्यकर्ता स्वयंसेवकों के समक्ष समाचारों की समीक्षा प्रस्तुत कर सकते हैं, जिसका स्वाभाविक परिणाम अपेक्षित है कि स्वयंसेवकों को समाचार पढ़ने की दृष्टि मिले।
(ङ) श्रेणी बैठकें
विद्यार्थियों में कक्षा-समूहों के अनुसार तथा व्यवसायी बंधुओं में व्यवसाय अथवा व्यवसाय समूहों के अनुसार शाखा समय के अतिरिक्त समय में बैठकें रखना। इन बैठकों में विषय प्रतिपादन के साथ-साथ प्रश्नोत्तर भी रखे जा सकते हैं। स्वयंसेवकों के साथ ही उनके मित्रों को भी आमन्त्रित किया जा सकता है। इस प्रकार इन बैठकों का उपयोग जन प्रबोधन के साथ ही नई भरती के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
क्रियान्वयन की दृष्टि से :-
अपेक्षा है कि गीत तथा अमृतवचन अथवा सुभाषित शाखा पर नित्य कराए जाएँ (अनिवार्य कार्यक्रम)। इनके अतिरिक्त कंठस्थ विभाग के अन्य कार्यक्रमों का अभ्यास एवं कथा-कहानी का क्रियान्वयन मुख्यतः शाखा टोली के कार्यकर्ता करें। शेष कार्यक्रमों को लेने में ज्यादा अनुभव की आवश्यकता होती है, अतः प्रवासी कार्यकर्ताओं के द्वारा कराए जा सकते हैं। किस कार्यकर्ता के प्रवास के समय कौन सा विषय लिया जा सकता है। तथा शाखा पर मास भर में क्या-क्या कार्यक्रम लिए जाएँ,इस दृष्टि से प्राप्त होने वाली बौद्धिक पुस्तिका (पत्रक) का उपयोग करते हुए शाखा कार्यकर्ता साप्ताहिक-पाक्षिक- मासिक योजना निर्धारित करें।
बोद्धिक योजना के बाद आती है शारीरिक योजना योजना शाखा लगाने के लिए बोद्धिक योजना ओर शारीरिक योजना को जानना बहुत ही जरूरी है यदि आपको इन दोनों का ही ज्ञान नहीं है तो आप शाखा लगाने मे आदर्श नहीं होंगे अब जानते है है शारीरिक योजना क्या होती है
शारीरिक योजना
संघ की शाखा खेल खेलने अथवा कवायद (परेड) करने का स्थान मात्र नहीं है, अपितु सज्जनों की सुरक्षा का बिन बोले अभिवचन है, तरुणों को अनिष्ट व्यसनों से मुक्त रखने वाली संस्कार पीठ है, समाज पर अकस्मात् आने वाली विपत्तियों अथवा संकटों में त्वरित, निरपेक्ष सहायता मिलने का आशा केन्द्र है, महिलाओं की निर्भयता एवं सभ्य आचरण का आश्वासन है, दुष्ट तथा देशद्रोही शक्तियों पर अपनी धाक स्थापित करने वाली शक्ति है और सबसे प्रमुख बात यह है कि समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सुयोग्य कार्यकर्ता उपलब्ध कराने हेतु योग्य प्रशिक्षण देने वाला विद्यापीठ है। –माननीय बालासाहेब देवरस
आचार पद्धति एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसका पालन संघ शाखा (शाखा) की शुरुआत और समापन पर किया जाता है। इस प्रकार कार्यक्रम में आदेश और अनुशासन लाता है और हमारे जीवन में अनुशासन को जन्म देने में मदद करता है। संघ में हमारे गुरु के रूप में प्रस्तुत भगव धवाज, हमारे धर्म और संस्कृति का प्रतीक है जो पवित्रता, ज्ञान और बलिदान का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए भगवान धवाज की उपस्थिति संघ-स्थान (जहां शाखा लगती है) सीखने और साधना के लिए एक पवित्र स्थान बनाती है। अतः शाखा संबंधी महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखे।
अंत में आचार पद्धति गुरु (भगवान धवाज) का सम्मान करने और अतीत से हमारी सांस्कृतिक विरासत को याद करने और समाज और धर्म के प्रति हमारे वर्तमान कर्तव्य की याद दिलाने का तरीका है। आचार पद्धति के दौरान सबसे बढ़िया माहौल, सार्वभौमिक धर्म को विजयी बनाने के लिए सामूहिक रूप से एक उद्देश्य के साथ इस एकता का अनुभव करने का एक तरीका है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम सभी आचार पद्धति के पीछे की भावना को समझें और ईमानदारी से इसका पालन करें।
आचार पद्दति (शाखा प्रारंभ एवं शाखा विकिर करने की विधि), Shakha Process
क्रम संख्या | शाखा लगाने की आज्ञाएँ (कुल - 18) | शाखा विकिर की आज्ञाएँ (कुल - 15 ) |
---|---|---|
0. | -0-0 (सूचनात्मक सीटी) / संघ स्वस्थान | |
1. | संघ दक्ष | -000 (सूचनात्मक सीटी) / अग्रेसर |
2. | आरम् | अग्रेसर सम्यक् |
3. | अग्रेसर | अग्रेसर आरम् |
4. | अग्रेसर सम्यक् | संघ सम्पत् |
5. | आरम् | -00 (सूचनात्मक सीटी) / संघ दक्ष |
6. | संघ सम्पत् | संघ सम्यक् |
7. | संघ दक्ष | अग्रेसर अर्धवृत् |
8. | संघ सम्यक् | संख्या |
9. | अग्रेसर अर्धवृत् | आरम् |
10. | संघ आरम् | संघ दक्ष |
11. | संघ दक्ष (ध्वज लगाना) | आरम् (संख्या देकर आना) |
12. | ध्वज प्रणाम १-२-३ | संघ दक्ष |
13. | संख्या | एक छोटी सीटी / प्रार्थना |
14. | आरम् | ध्वज प्रणाम १-२-३ |
15. | संघ दक्ष | संघ विकिर |
16. | आरम् (संख्या देकर आना ) | |
17. | संघ दक्ष | |
18. | स्वस्थान |
सीटी तथा संकेत
(-) लम्बी सीटी के लिए
(0) छोटी सीटी के लिए
सीटी अर्थ
-0-0 शाखा प्रारंभ
-0 कालांश बदल
-- स्वयंसेवकों को ध्वजाभिमुख दक्ष करने के लिए
00, 00 कार्यक्रम पूर्ववत प्रारंभ करने के लिए
0 प्रार्थना के लिए तथा निर्धारित कार्य के लिए
-000 शाखा समापन के समय अग्रेसरों को बुलाने के लिए
-00 संपत करने के लिए गण शिक्षकों को सूचना
- - -/अधिक आकस्मिक सूचना के लिए
उद्घोष
भारत माता की -जय
वन्दे -मातरम
हर-हर -बम-बम
रूद्र देवता -जय-जय काली
जय शिवाजी -जय प्रताप
संघटन में -शक्ति है
संघे शक्ति -कलौयुगे
जयकारा वीर बजरंगी -हर-हर-महादेव
जय शिवाजी -जय भवानी
जय हो -जय हो
कौन जीता कौन जीता -संघ जीता संघ जीता
हिन्दू-हिन्दू -भाई-भाई
हिन्दू वीर कैसा हो -वीर शिवाजी जैसा हो
भारत के शहीदों की -जय
प्रार्थना
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।
समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।
।। भारत माता की जय ।।