अपने बच्चों को सिखाना है
निम्न बातें अपने बच्चों को अवश्य सिखाये
· घर में तीन पीढ़ियाँ रहे तो वह उत्तम घर है, चार पीढ़िया हुई तो अतिश्रेष्ठ है।
· परिवार का विस्तार (extension) हो, विभाजन (Partition) नहीं।
· दादाजी का अनुसरण पोता भी करे, ऐसे काम कौन से हैं?
· घर के बच्चे विद्यालय नियमित जाएँ। उनकी शिक्षा की योग्य व्यवस्था हो।
· अच्छी आदतें निरन्तर सिखाते रहें।
· पड़ोसियों के बच्चों के साथ खेलने को अपने बच्चों को प्रोत्साहित करें।
· औरों का सहयोग करना, साथ देना – यह भी सिखाना है।
· अपने बन्धु मित्रों के घर के कार्यक्रमों में बच्चों को ले जाना और वहाँ का क्रम और विशिष्टिताओं का वर्णन बताने की सीख देना।
· अपने गाँव की विशिष्टताओं का वर्णन बताने की सीख देना।
· जल संरक्षण और उपयोग की सीख देना।
· चित्रमय कथा पुस्तक लाकर बच्चों को देना, पढ़ने की प्रेरणा देना।
· घर के सभी काम करना और कौशल से करने का सामथ्र्य सब में लाना।
· बच्चों को तिथि, दिन, नक्षत्र, मास और वर्ष का नाम कण्ठस्थ करवाना।
· बच्चों को संस्कारक्षम श्लोकों को कण्ठस्थ करवाना।
· हर दिन बच्चों को अच्छी कहानियाँ सुनाना। इससे ज्ञान के साथ सम्बन्ध भी बढ़ता है।
· बच्चों का स्वाभिमान बढ़े, प्रेरणा मिले ऐसे नाम रखना।
· स्नान के बाद माथे पर तिलक लगाना।
सावधानी
1. हाथ, पैर, मुँह धोकर ही खाना।
2. घर व्यसन से मुक्त हो।
3. बच्चों के सामने घर की समस्याओं की चर्चा न करें।
4. घर में अन्यों के बारे में अपशब्द नहीं बोलें, सुने भी नहीं।
5. बच्चों के सामने झगड़ा नहीं करें, गाली गलौज न करें।
6. स्त्रियों के बारे में कभी भी तिरस्कार के शब्द या कृति न हो।
7. गरीब और भिखारियों के बारे में सबके मन में प्रेम और दया रहे। दान देने का संस्कार मिले।
8. पुरुष स्वयं को बाएं हाथ से न परोसें। औरों को परोसने के बाद खाने का आनन्द ज्यादा होता है। विवश होकर करनेवाले कामों की आदत न हो।
9. जो देखें वह सब खरीदने की और उसमें ही गर्व करने की पाश्चात्य दृष्टि घर में नहीं आने देना चाहिए।
10. घर के समारोहों में क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, इसकी चर्चा कर तदनुसार व्यवहार करें।
11. दहेज नहीं लें। इसके कारण हम वधू को नीचा समझते हैं।
12. अपने पड़ोसी के घर भी, अपने घर जैसे स्वच्छ रहें, इस हेतु प्रयास हों
13. ईश्वर के बारे में श्रद्धा बनी रहे।
इन श्लोकों को याद करवाये
सबेरे उठते समय
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वति।
करमूले स्थिता गौरी प्रभाते करदर्शनम्।।
अर्थ: हे लक्ष्मी हमारे हाथ के अग्रभाग में आपका निवास है। हमारे हाथ के मध्य भाग में विद्यादात्री सरस्वती का निवास है और हमारे हाथ के मूल भाग में विष्णु का निवास है। प्रभात काल में आपका दर्शन करता हूं।
समुद्रवसने देवि! पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपलि! नमस्तुभ्यम् पावस्पर्श क्षमस्व मे॥
अर्थ: समुद्ररूपी वस्त्रधारण करने वाली, पर्वतरूपी स्तनों वाली एवं भगवान श्रीविष्णु की पत्नी हे भूमिदेवी! मैं आपको प्रणाम करता हूं। मेरे पैरों का आपको स्पर्श होगा। इसलिए क्षमा चाहता हूँ।
स्नान करते समय
गङ्ग च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलस्मिन् सन्निधि कुरु।
अर्थ: हे पवित्र नदियाँ गंगा और यमुना, और गोदावरी और सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी; कृपया इस जल में उपस्थित रहें (और इसे पवित्र बनाएं)।
भोजन से पहले
अन्नपूणें सदापूर्ण शंकर प्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्य सिद्ध्यर्थ भिक्षां देहि च पार्वति।
अर्थ: हे अन्नपूर्णे! आप सदा पूर्ण हैं, भगवान शंकर की प्राणबल्लभा है। हे माँ पार्वती (अन्नपूर्णा) आप मुझे भिक्षा दें,जिससे हमारे ज्ञान-वैराग्य की शुद्धि हो जाए।
ब्रह्मापण ब्रह्महविर ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रहौव तेन गन्तव्य ब्रह्मकर्म समाधिनां।
अर्थ: यज्ञ में किया जाने वाला समर्पण, यज्ञ में दी जाने वाली आहति (हवि आदि) ब्रह्म है। ब्रह्मरूपी अग्नि में ब्रह्म॒रूप होमकर्ता द्वारा जो हृवन किया गया, वह भी ब्रह्म है अतः ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ पुरुष के द्वारा जो प्राप्त होने योग्य है वह ब्रह्म ही है।
सोने से पहले
रामं स्कन्द हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दु:स्वप्नं तस्य नश्यति।
अर्थ: श्रीराम जी, कार्तिकेय जी, हनुमान जी, गरुड़ जी, भीमसेन को जो शयन करते समय स्मरण करता है उसके बुरे स्वप्न समाप्त हो जाते हैं।
शान्ति मन्त्र:
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:खभाग्भवेत।
अर्थ: सभी सुखी होवे, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।
ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु सह वीर्य करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु माविद्विषावहै अं० शान्ति: शान्ति: शान्ति:
अर्थ: हे परमात्मा विद्यार्थी और शिक्षक दोनों की रक्षा करें, विद्यार्थी और शिक्षक दोनों का पोषण करें, हम दोनों ऊर्जा और शक्ति के साथ कार्य करें। हे परमात्मा विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें और हमारी बुद्धि को तेज करें, हमें शक्ति दे कि हम एक दूसरे से ईर्ष्या न करें।
ऐक्य मन्त्र:
यं वैदिका मन्त्रदृशः पुराणा इन्द्रं यमं मातरिश्वानमाहुः।
वेदन्तिनोऽनिर्वचनियमेकं यं ब्रह्मशब्देन विनिर्दिशन्ति ॥
शैवा यमीशं शिव इत्यवोचन् यं वैष्णवा विष्णुरितिस्तुवन्ति।
बुद्धस्तथाऽर्हन्निति बौद्धजैनाः सत् श्री अकालेति च सिक्ख संतः॥
शास्तेति केचित् प्रकृतीक कुमारः स्वामीति मातेति पितेति भक्त्या।
यं प्रार्थयन्ते जगदीशितारं स एक एव प्रभुरद्वितीयः ॥