हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव

 हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव (ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी)

हिन्दवी स्वराज्य

ज्येष्ठ शुक्ल 13 सं. 1831 विक्रमी को छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक ‘हिन्दवी स्वराज्य' की स्थापना के संकल्प की घोषणा ही नहीं, तो राष्ट्र के सफल प्रत्याक्रमण, हिन्दू संस्कृति के पुनरुत्थान और विश्व धर्म की पुन:प्रतिष्ठा का शंखनाद था। हिन्दू समाज के स्वत्व जागरण एवं संगठन की प्रेरणा देने वाले इस उत्सव का इसलिये संघ में विशेष महत्व है |

शिवाजी

19 फरवरी 1630 की शुभ लग्न में जीजाबाई की कोख से शिवाजी का जन्म हुआ। बच्चे के नक्षत्र बड़े प्रबल थे, सभी लक्षणों का गुण यह था कि वह होनहार बनेगा। उसके पाँच ग्रह अनुकूल तथा उच्च स्थान पर थे |

संसार के अनेक गुण संपन्न महापुरुषों से उनकी तुलना की जा सकती है जैसे सेना संचालन में सिकन्दर, गरीबों की आशा तथा जनता के मनोधर्म के लिये लिंकन तथा चर्चिल, प्रखर राष्ट्रभाव एवं संगठित करने के गुण के नाते वांशिगटन आदि। लेकिन सम्पूर्ण गुण समुच्चय की दृष्टि से शिवाजी की तुलना अन्य किससे करें ? इस सबके ऊपर शिवाजी चारित्रिक दृष्टि से इतने महान थे कि सेनापति आवाजी सोनदेव द्वारा युद्ध में जीत के रूप में लाई गई कल्याण के सूबेदार की लावण्यमयी पुत्रवधू को मातृत्व का सम्मान दिया।

गुरिल्ला युद्ध-तंत्र

माओ और चे-ग्वेवेरा से लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व ही शिवाजी ने गुरिल्ला युद्ध-तंत्र आरम्भ किया था। शास्त्र के नाते जिओपोलिटिक्स का विकास होने के 250 वर्ष पूर्व ही सागरी सत्ता का पूर्वाभ्यास किया। इतिहास के जिस कालखण्ड में सेक्युलर राज्य की कल्पना पश्चिम में लोकप्रिय नहीं थी, उस समय शिवाजी ने हिन्दू परम्परा के अनुकूल सम्प्रदाय-निरपेक्ष धर्मराज्य की स्थापना की ।

तथा उसी समय अपने स्वयं के द्वारा अर्जित सम्पूर्ण राज्य का त्यागकर संत तुकाराम जी के समक्ष हरिसंकीर्तन में ही शेष जीवन बिताने की इच्छा प्रकट की। एक अन्य अवसर पर तो अपना सम्पूर्ण राज्य ही गुरु रामदास के चरणों में समर्पित कर दिया।

राज्यारोहण

19 मई 1674 के दिन जब शिवाजी का राज्यारोहण हुआ तो वह व्यक्ति का राज्यारोहण मात्र न होकर हिन्दू संस्कृति के पुनरुत्थान की और विश्वधर्म की पुन: प्रतिष्ठापना थी। सनातन काल से हिन्दु राष्ट्र ने जिस आदर्श का संगोपन किया वह आदर्श मानवरूप होकर सिंहासन पर विराजमान हो रहा है, यही भावना उस समय जन मानस में थी। स्वयं शिवाजी ने भी समय-समय पर इसी धारणा का उद्घोष किया – “हिन्दू स्वराज्य की स्थापना होनी चाहिए, यह श्री भगवती की इच्छा है।”

“यह राज्य धर्म का है शिवबा का नहीं” अतएव यह राज्यारोहण धर्म का ही माना गया था |

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