मितकाल

मितकाल

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सञ्चलन हेतु मितकाल का अभ्यास अत्यंत आवश्यक है इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अभ्यास बिंदु दिए गए है :-

मितकाल :- 

1. विभागशः 1- दक्ष स्थिति से बायाँ पैर सामने जमीन से 45 सेंमी. ऊँचाई तक उठाकर (तलुआ जमीन से साधारणतः समानान्तर रहेगा|) तुरन्त ही दाहिने पैर से मिलाना और दाहिना पैर उठाना। 
2. विभागशः 2 दाहिना पैर रखकर तुरन्त ही बायाँ पैर उठाना। 
3. घुटना सामने उठा हुआ तथा हाथ बाजू में तने हुए और स्थिर रहेंगे। 
4. शरीर भी तना हुआ रहेगा


1. मितकाल :- 

1.1. मितकाल की आज्ञा मिलते ही ऊपर लिखा काम करते रहना। 
1.2. पैर यदि ठीक न पड़ते हों तो कोई भी एक कदम लगातार दो बार जमीन पर पटकना चाहिए |
1.3.  मितकाल में हाथ नहीं हिलेंगे।
1.4.  मितकाल पंजों के बल पर करना चाहिए | 


2. मितकाल में स्तभ :- 

2.1. दाहिना पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी |
2.2.  उसके पश्चात्‌ एक बार बायाँ पैर रखना पश्चात्‌ दाहिना पैर बायें पैर से मिलाकर रुकना ।
2.3. गति - एक मिनट में 120 कदम |


3. संचलन का अभ्यास (प्रचलन) :- 

3.1. दक्ष स्थिति से प्रचल- बायें पैर से चलना प्रारंभ होगा |
3.2. चलते समय- कमर के ऊपर का हिस्सा तना हुआ तथा दृष्टि सामने हो|
3.3. हाथ स्वाभाविक रूप से जितने सीधे हो सकते हैं उतने सीधे और कोहनी से न मोडते हुए सामने और पीछे कमर की ऊंचाई तक ले जाना चाहिए |
3.4. मुठिठयाँ बंद हों | 
3.5. पैर जमीन पर रखते समय पहले एड़ी रखनी चाहिए | 
3.6. चलते समय कदमों का अन्तर, दो स्वयंसेवको तथा पंक्तियों के बीच का अन्तर, सम्यक्‌, आदि बातें देखकर योग्य दिशा में चलना चाहिए। 
3.7. चलते समय यदि कदम गलत हो जाये तो पिछले पैर के तलुवे का हिस्सा अगले पैर की एडी के पास लाते समय खिसक कर अगला ही पैर आगे रखते हुए एक ही कदम दो बार आगे बढ़ाना चाहिए। 


4. मितकाल में वर्तन :- 

4.1. वाम वृत :- 

4.1.1. बायाँ पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी | 
4.1.2. उसके पश्चात्‌ दाहिना पैर उसी स्थान पर रखकर बायीं दिशा में (90°) घूमकर बायाँ पैर रखना|
4.1.3. और उस दिशा में मितकाल करना | 


4.2. दक्षिण वृत :- 

4.2.1. दाहिना पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी | 
4.2.2. उसके पश्चात्‌ बायाँ पैर उसी स्थान पर रखकर दाहिनी दिशा में (90°) घूमकर दाहिना पैर रखना|
4.2.3. और उस दिशा में मितकाल करना | 


4.3. वामार्घ वृत :- 

4.3.1. बायाँ पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी | 
4.3.2. उसके पश्चात्‌ दाहिना पैर उसी स्थान पर रखकर बायीं दिशा में (45°) घूमकर बायाँ पैर रखना |
4.3.3. और उस दिशा में मितकाल करना |


4.4. दक्षिणार्ध वृत :- 

4.4.1. दाहिना पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी | 
4.4.2. उसके पश्चात्‌ बायाँ पैर उसी स्थान पर रखकर दाहिनी दिशा में (45°) घूमकर दाहिना पैर रखना |
4.4.3. और उस दिशा में मितकाल करना |  


4.5. अर्घवृत – 

4.5.1. बायाँ पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी | 
4.5.2. पश्चात्‌ दाहिना पैर रखना | 
4.5.3. बायें पैर के तलुवे का गहरा भाग दाहिने पैर के अंगूठे के सामने रखना | (दक्षिणार्ध वृत) 
4.5.4. दाहिने पैर की एडी बायें पैर की एडी के पास रखना। (दक्षिणवृत) 
4.5.5. बाया पैर अर्धवृत की दिशा मे रखकर (दक्षिणार्धवृत) दाहिने पैर से मितकाल करना | 


5. प्रचल से स्तभ और वर्तन :- 

5.1. स्तभ :- 

5.1.1. दाहिना पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी | 
5.1.2. पश्चात्‌ बायाँ पैर आगे रखकर उससे दाहिना पैर मिलाना | 
5.1.3. गण वाहिनी आदि की सूचना भी दाहिने पैर पर ही देनी चाहिये | 


5.2. वाम वृत :- 

5.2.1. बायें पैर पर आज्ञा मिलेगी | 
5.2.1 दाहिना पैर आगे रखकर (इस समय हाथ शरीर से सटे हुए रहेंगे) सामने की गति को रोकना | 
5.2.3. बायाँ पैर बायीं ओर 75 से.मी. डालकर तथा दाहिना हाथ सामने एवं बायाँ हाथ पीछे लेकर चलना प्रारंभ करना। 


5.3. दक्षिण वृत :- 

5.3.1. दाहिने पैर पर आज्ञा मिलेगी | 
5.3.2. बायाँ पैर आगे रखकर (इस समय हाथ शरीर से सटे हुए रहेंगे) सामने की गति को रोकना | 
5.3.3. दाहिना पैर दाहिनी ओर 75 से.मी. डालकर तथा बायाँ हाथ सामने एवं दाहिना हाथ पीछे लेकर चलना प्रारंभ करना। 


5.4. वामार्ध वृत :- 

5.4.1. बायें पैर पर आज्ञा मिलेगी | 
5.4.1 दाहिना पैर आगे रखकर (इस समय हाथ शरीर से सटे हुए रहेंगे) सामने की गति को रोकना | 
5.4.3. बायाँ पैर बायीं ओर 75 से.मी. डालकर आधा वाम दिशा की ओर मुड़कर तथा दाहिना हाथ सामने एवं बायाँ हाथ पीछे लेकर चलना प्रारंभ करना। 


5.5. दक्षिणार्ध वृत :- 

5.5.1. दाहिने पैर पर आज्ञा मिलेगी | 
5.5.2. बायाँ पैर आगे रखकर (इस समय हाथ शरीर से सटे हुए रहेंगे) सामने की गति को रोकना | 
5.5.3. दाहिना पैर दाहिनी ओर 75 से.मी. डालकर आधा दक्षिण दिशा की ओर मुड़कर तथा बायाँ हाथ सामने एवं दाहिना हाथ पीछे लेकर चलना प्रारंभ करना। 


5.6. अर्घवृत :- 

5.6.1. बाये पैर पर आज्ञा मिलेगी। 
5.6.2. पश्चात्‌ दाहिना पैर आगे डालकर गति रोकना। 
5.6.3. पश्चात्‌ बायाँ, दाहिना तथा बायाँ पैर मितकाल में अर्धवृत के समान पटकना। (यह काम होते तक हाथ नहीं हिलेंगे) 
5.6.4. पश्चात्‌ दाहिना पैर 75 सें. मी. आगे बढ़ाना। बायाँ हाथ सामने और दाहिना हाथ पीछे लेकर चलना प्रारंभ करना। 


6. युज 

6.1. पुरो युज :- 

6.1.1. आगे का स्वयंसेवक / तति स्थिर रहेगा / रहेगी । 
6.1.2. शेष स्वयंसेवक /तति आगे खिसकेगी | 
6.1.3. युज में हाथ नहीं हिलेंगें | 


6.2. वाम युज :- 

6.2.1. बायीं ओर का स्वयंसेवक / प्रतति स्थिर रहेगा / रहेगी | 
6.2.2. शेष स्वयंसेवक / प्रतति' बायीं ओर खिसकेगी। 


6.3 दक्षिण युज :-

6.3.1. दाहिनी ओर का स्वयंसेवक / प्रतति स्थिर रहेगा/ रहेगी | 
6.3.2. शेष स्वयंसेवक / प्रतति दाहिनी ओर खिसकंगी | 


6.4. केन्द्र युजः- 

6.4.1. केन्द्र का स्वयंसेवक / तति /प्रतति स्थिर रहकर |
6.4.2. शेष स्वयंसेवक / तति प्रतति केन्द्र की ओर खिसकेगी | 


7. विस्तर :- स्वयंसेवकों के / तति के / प्रतति के बीच बताया हुआ अन्तर लेना | 
8. विश्रम :- दक्षिणवृत कर मन में चार अंक गिनकर अपना स्थान छोड़ना |


9. संचलन में अन्तर ठीक करने के लिये निम्नलिखित का उपयोग होता है :-

आज्ञा कदमों का अन्तर
प्रचल 75 से.मी.
क्षिप्रचल 100 से.मी.
मंदचल 78 से.मी.
दीर्घपद 85 से.मी.
हस्वपद 60 से.मी.
पार्श्वपद 37.5 से.मी.

10. गति :- 

10.1. प्रचल में एक मिनट में 120 कदम चलना चाहिए। ( अर्थात 120 x 75 से.मी. = 9000 से.मी.) = 90 मीटर ।
10.2. क्षिप्रचल में में एक मिनट में 180 कदम दौड़ना चाहिए । (अथात्‌ 180 x 100 सेंमी. = 180 मीटर) ।
10.3. मंदचल में एक मिनट में 60 कदम चलना चाहिए | (अर्थात्‌ 60 x 75 सें.मी = 45 मीटर)। 

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