रक्षा बंधन

 रक्षा बंधन (श्रावणी पूर्णिमा)

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उत्सव एवं पर्व

प्राचीन काल से ही अपने देश के उत्सव एवं पर्व सामाजिक समरसता एवं सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ाने वाले रहे हैं। रक्षा बन्धन इसी परम्परा की एक सशक्त कड़ी है? राखी के इन सुकोमल धागों में भाई-बहिन का अटूट स्नेह गुंथा हुआ है| इन धागों में छिपा है नारी की सम्मान की रक्षा के लिये सर्वस्व समर्पण करने वाले वीर पुरुषों का इतिहास। राजा बलि के साम्राज्यवाद से पृथ्वी को मुक्त करने की वामनावतार की अद्भुत गाथा का स्मरण ये धागे हमें कराते हैं। इन पवित्र धागों से जन-जन के हृदय जोड़ने का नाम ही रक्षाबन्धन है। एकात्मता के इस पर्व को मनाते समय आज हम अपने इस देश के वर्तमान का विचार करें |

कम होती सीमाएं 

गत वर्षों में अपने देश की सीमाएँ लगातार सिकुड़ती जा रही हैं | इसके मूल में हिन्दूभाव का अभाव ही है। इसी कारण पाकिस्तान बना तथा श्रीलंका आदि भी हमारे लिये संकट का कारण बन रहे हैं। चारों ओर से मानों हम शत्रुओं से घिरे हुए हैं। देश के उत्तरी और पूर्वी राज्यों में अलगाववाद के उठते स्वर तथा खालिस्तान जैसी माँगे भी इसी कारण हैं। राष्ट्र जीवन को खण्ड-खण्ड करने में लगी विदेशी शक्तियों तथा सत्ताकांक्षी नेताओं की शह पर कुछ सिर-फिरे आतंकवादियों ने निर्दोष एवं निरीह जनता की बर्बर हत्याओं का तांता लगा रखा है।

श्रीराम 

जन-जन के आराध्य, मर्यादा पुरुषोत्तम, राष्ट्रपुरुष श्रीराम, अनेक वर्षों के लगातार संघर्ष के बाद, पिछली सरकारों की तुष्टीकरण की नीति और वोट बैंक पक्का करने की कुटिल राजनीति के करण श्री रामजन्म-भूमि हिन्दू-समाज को नहीं मिल पा रही थी| आश्चर्य की बात यह है कि यही राजनीतिज्ञ संघ पर साम्प्रदायिकता का निराधार आरोप लगाकर बदनाम करने का पाखण्डपूर्ण प्रचार कर रहे हैं। जो लोग मुस्लिम लीग से समझौता करके सरकार बनाते हैं, कश्मीर में धारा 370 वापस बनाए रखने की अनुशंसा करते है, मिजोरम में बाइबिल के आधार पर शासन चलाने की घोषणा करते हैं, वे ही धर्म (पंथ) निरपेक्षता का लबादा ओढ़कर साम्प्रदायिकता के घड़ियाली आँसू बहा रहे हैं।

भेदभाव को छोड़े 

समाज में अभी भी ऊँच-नीच, छूत-अछूत के भाव विद्यमान हैं। हम अपने सामने भगवान श्री राम के आदर्श को रखें, जिन्होंने निषादराज का आतिथ्य, भीलनी शबरी के बेर आदर और स्नेह के साथ ग्रहण किये । रक्षा बंधन के इस पावन पर्व पर आइये, हम भेदभाव और छूआछूत की दीवारें ढहा दें तथा संकल्प लें कि हम सब भारतमाता की सन्तानें हैं, एक हैं। हम सर्वप्रथम हिन्दू हैं। इस विशाल हिन्दू-समाज के अंग हैं, हम सब सहोदर भाई हैं।

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलः
तेन त्वान् अनुब्धनामि रक्षे माचल-माचल: 
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