समता

समता 

Samta-Sangh-Daksha-Aaram-Agresar-Samyak-Swasthan-Ardhvrut-Sankhya-Gan-Vibhag

RSS की शाखा में जाने वाले सभी स्वयंसेवकों को संघ की आज्ञाएं जो की सम्प्रेषण का माध्यम है जिससे शाखा सुचारू रूप से चल पाए, आनी चाहिए । अतएव इस लेख में उन्ही आज्ञाओं का उल्लेख किया गया है जिसे स्वयंसेवक बड़ी ही सरलता से सीख लेंगे तथा शाखा में भी बिना किसी रूकावट के आनन्द आयेगा । यह आज्ञाएं निम्नलिखित है:-

1. दक्ष :-

1.1. एड़ियाँ मिली हुई तथा एक ही सीध में हों। एड़ियों के बीच 30° का कोण| 
1.2. घुटने तने हुए, शरीर सीधा एवम्‌ दोनो पैरों पर समान वजन हो। 
1.3. कन्धे एक सीध में, जमीन से समानान्तर, थोड़े पीछे और नीचे खिंचे हुए जिससे सीना स्वाभाविक स्थिति में उभरा हुआ रहे। पेट अंदर की ओर खिंचा हुआ | 
1.4. हाथ शरीर से सटे हुए, कन्धो से सीधे तने हुए | कलाइयाँ भी तनी हुई | 
1.5. मुठ्ठियाँ स्वाभाविक बंधी हुई। अंगुलियों का पिछला भाग जंघा से सटा हुआ, अंगूठा सामने की ओर अंगुलियों से तथा निकर या पैण्ट की सिलाई से लगा हुआ एवं जमीन से लम्बवत्‌ | 
1.6. गर्दन तनी हुई एवम्‌ सिर गर्दन पर समतोल हो।
1.7. दृष्टि सामने अपनी ऊँचाई पर हो। 
1.8. शरीर का भार दोनो पैरों पर समान तथा श्वसन-उच्छवसन स्वाभाविक हो | 

2. आरम :- 

2.1. दक्ष की अवस्था से बायाँ पैर बायीं ओर तना हुआ रखना | दोनों एड़ियों के केंद्र के बीच 30 सें.मी. का अन्तर रहेगा |
2.2. शरीर का भार दोनों पैरों पर समान रहे |
2.3. उसी समय दोनों हाथ पीछे ले जाकर बायीं हथेली और अंगूठे के बीच दाहिनी हथेली तथा दाहिना अंगूठा बायें अंगूठे के ऊपर रखना | 
2.4. दोनों हाथ तने हुए हों । 
2.5. अंगुलियाँ जमीन की ओर खिंची हुई | 

3. स्वस्थ :-

3.1. इस स्थिति में पैरों को न हिलाते हुए अनुशासन का ध्यान रखकर शरीर की हलचल करने की अनुमति है।
3.2. सावधान की सूचना मिलते ही आरम की स्थिति में आना चाहिए |
3.3. इस आज्ञा का प्रयोग यथावश्यकता शाखा में अवश्य हो जिससे आरम की स्थिति का पालन ठीक से हो सके और आरम में स्वस्थ के समान हलचल करने की प्रवृत्ति दूर हो सके | 
3.4. ध्यान रहे कि स्वस्थ में भी बोलने की अनुमति नहीं है । 

4. एकशः संपत :-

4.1. सभी स्वयंसेवक दक्ष करेंगे, प्रचलन करते हुए शिक्षक के सामने तीन कदम अंतर पर एक पंक्ति में ऊँचाई के अनुसार खडे होंगे। 
4.2. पहला स्वयंसेवक शिक्षक के सम्मुख खड़ा होगा और उस स्वयंसेवक के बायीं ओर शेष स्वयंसेवक ऊँचाई के अनुसार खड़े होंगे। 
4.3. पहला स्वयंसेवक आरम करेगा और बाद में शेष स्वयंसेवक सम्यक्‌ देखकर अपनी दाहिनी ओर के स्वयंसेवक द्वारा आरम करने के पश्चात्‌ क्रमशः आरम करते जायेंगे |
4.4. दो स्वयंसेवको के बीच 75 सें.मी. का अंतर होगा।

5. सम्यक्‌ :-

5.1. पहले स्वयंसेवक को छोड़कर सभी स्वयंसेवक अपनी गर्दन व दृष्टि झटके से दाहिनी ओर करेंगे और स्वयं पंक्ति में है,
5.2. यह देखकर अपने दाहिनी ओर के स्वयंसेवक के द्वारा गर्दन सामने करने के पश्चात्‌ अपनी गर्दन एवं दृष्टि सामने करेंगे | 

पुरस्‌सर /प्रतिसर/ दक्षिणसर/वामसर :- 

6. पुरस्‌सर :-

6.1. आगे (पुरस्‌सर) जाने की क्रिया बायें पैर से प्रारंभ करना चाहिए।
6.2. पुरस्‌सर करते समय पहले एड़ी जमीन पर आयेगा। फिर उससे दूसरा पैर मिलाना।
6.3. प्रत्येक कदम 75 सें.मी. का रहेगा |
6.5. किसी भी कृति में हाथ नहीं हिलेंगे। 
6.6. यह आज्ञा एक समय में चार कदम से अधिक अंतर के लिए नहीं देनी चाहिए। 

7. प्रतिसर :-

7.1. पीछे (प्रतिसर) जाने की क्रिया बायें पैर से प्रारंभ करना चाहिए। 
7.2. प्रतिसर करते समय पहले पंजा जमीन पर आयेगा। फिर उससे दूसरा पैर मिलाना।
7.3. प्रत्येक कदम 75 सें.मी. का रहेगा |
7.5. किसी भी कृति में हाथ नहीं हिलेंगे। 
7.6. यह आज्ञा एक समय में चार कदम से अधिक अंतर के लिए नहीं देनी चाहिए। 

8. दक्षिणसर :-

8.1. दाहिने (दक्षिणसर) दायें पैर से प्रारंभ करना चाहिए।
8.2. दक्षिणसर करते समय, दाहिना पैर 37.5 सें.मी. दाहिनी ओर रखकर, उससे बायाँ पैर मिलाना|
8.3. किसी भी कृति में हाथ नहीं हिलेंगे। 
8.4. यह आज्ञा एक समय में चार कदम से अधिक अंतर के लिए नहीं देनी चाहिए। 

9. वामसर :-

9.1. बायें (वामसर) बायें पैर से प्रारंभ करना चाहिए।
9.2. वामसर करते समय, बायाँ पैर 37.5 सें.मी. बायीं ओर रखकर, दाहिना पैर मिलाना|
9.3. किसी भी कृति में हाथ नहीं हिलेंगे। 
9,4. यह आज्ञा एक समय में चार कदम से अधिक अंतर के लिए नहीं देनी चाहिए। 

10. एक /द्वि /त्रि,/ चतुष्‌ पद पुरस्‌ / प्रतिसर :- 

10.1. सब स्वयंसेवक एक / दो / तीन / चार कदम आगे / पीछे जायेंगे। 
10.2. प्रत्येक कदम 75 सें.मी. का रहेगा | 
10.3. पुरस्‌सर करते समय पहले एड़ी तथा प्रतिसर करते समय पहले पंजा जमीन पर आयेगा। 

11. एक /द्वि/त्रि/चतुष्‌ पद दक्षिण / वामसर :-  

11.1. दाहिना / बायाँ पैर 37.5 सें.मी. दाहिनी /बायीं ओर रखकर. उससे बायाँ / दाहिना पैर मिलाना | 
11.2. इसी प्रकार हर कदम पर काम करना। | 

12. वर्तन (स्थिर स्थिति से) :- 

12.1. वर्तन की क्रिया तीन अंको में पूर्ण होगी | तीन अंक प्रचल की गति से दिये जायेंगे | 
12.2. पहले अंक में विभागशः 1 का कार्य करना। 
12.3. दूसरे अंक में उसी स्थिति में स्थिर रहना। 
12.4. तीसरे अंक में पिछला पैर मिलाना। 
12.5. विभांगशः 1 और 2 के बीच रुकने के अवकाश को यति कहते हैं। 

13. दक्षिण वृत :- 

13.1. दोनों घुटने तने हुए रखकर दाहिनी एड़ी तथा बायें पंजे पर दाहिनी ओर (90°) मुड़ने के पश्चात्‌ दाहिना पैर जमीन पर रखा हुआ और बायीं एड़ी ऊँची उठी हुई, शरीर का भार दाहिने पैर पर।
13.2. बायाँ पैर झटके से दाहिने पैर से मिलाना। 

14. वाम वृत :- 

14.1. दोनों घुटने तने हुए रखकर बायीं एड़ी तथा दाहिने पंजे पर बायीं ओर (90°) मुड़ने के पश्चात्‌ बायाँ पैर जमीन पर रखा हुआ और दाहिनी एड़ी ऊँची उठी हुई, शरीर का भार बायें पैर पर।
14.2. दाहिना पैर झटके से बायें पैर से मिलाना। 

15. दक्षिणार्ध वृत :- 

15.1. दोनों घुटने तने हुए रखकर दाहिनी एड़ी तथा बायें पंजे पर दाहिनी ओर (45°) मुड़ने के पश्चात्‌ दाहिना पैर जमीन पर रखा हुआ और बायीं एड़ी ऊँची उठी हुई, शरीर का भार दाहिने पैर पर।
15.2. बायाँ पैर झटके से दाहिने पैर से मिलाना। 

16. वामार्ध वृत :- 

16.1. दोनों घुटने तने हुए रखकर बायीं एड़ी तथा दाहिने पंजे पर बायीं ओर (45°) मुड़ने के पश्चात्‌ बायाँ पैर जमीन पर रखा हुआ और दाहिनी एड़ी ऊँची उठी हुई, शरीर का भार बायें पैर पर।
16.2. दाहिना पैर झटके से बायें पैर से मिलाना। 
 

17. अर्धवृत :- 

17.1. दोनों घुटने तने हुए रखकर दाहिनी एड़ी तथा बायें पंजे पर दाहिनी ओर (180°) से पीठ के पीछे तक घूमने के पश्चात्‌ दाहिना पैर जमीन पर रखा हुआ और बायीं एड़ी ऊँची उठी हुई, शरीर का भार दाहिने पैर पर।
17.2. बायाँ पैर झटके से दाहिने पैर से मिलाना। 

18.1 संख्या :- दाहिनी ओर से 1,2,3,4,5,6 आदि संख्या क्रमश: अंतिम स्वयंसेवक तक ऊँची व एक समान तथा तीक्ष्ण आवाज में दृष्टि सामने रखते हुए कहेंगे | 
18.2. गण विभाग :- एक, दो के क्रम में संख्या कहेंगे | 
18.3. अंश भाग :- एक, दो, तीन के क्रम में संख्या कहेंगे। 
18.4. गण भाग :- एक, दो, तीन, चार के क्रम में संख्या कहेंगे | 

19. एक तति से :- 

19.1. द्वितति :- क्रमांक 1 के स्वयंसेवक द्विपद पुरस्सर करेंगे | 

19.2. त्रितति :- 

19.2.1. क्रमांक 1 द्विपद पुरस्सर तथा क्रमांक 3 द्विपद प्रतिसर |
19.2.2. क्रमांक 2 स्थिर रहेंगे | 

19.3. चतुष्तति :- 

19.3.1. विभागशः 1 में क्रमांक 1 व 3 द्विपद पुरस्सर | 
19.3.2 क्रमांक 2 व 4 स्थिर | 
19.3.3. विभागशः 2 में क्रमांक 1 पुनः द्विपद पुरस्सर व क्रमांक 4 द्विपद प्रतिसर | 
19.3.4. क्रमांक 2 व 3 स्थिर | 

20. एकततिः :- 

20.1. द्वितति' से :- क्रमांक 1 के स्वयंसेवक द्विपद प्रतिसर करेंगे | 
20.2. त्रितति से :- क्रमांक 1 द्विपद प्रतिसर तथा क्रमांक 3 द्विपद पुरस्सर कर मूल पंक्ति में मिलेंगे | 

20.3. चतुष्तति से :- 

20.3.1. विभागशः 1 में क्रमांक 1 द्विपद प्रतिसर और क्रमांक 4 द्विपद पुरस्सर | 
20.3.2. विभागशः 2 में आगे की विषम क्रमांक वाली (1 व 3) पंक्ति पुनः द्विपद प्रतिसर कर मूल पंक्ति में मिलेगी | 

21. मंडल :- सभी स्वयंसेवक शिक्षक को केंद्र मानकर केंद्राभिमुख होकर गोलाकार स्थिति में दक्ष में खड़े होंगे | 
22. अर्धमंडलः- सभी स्वयंसेवक शिक्षक को केंद्र मानकर केंद्राभिमुख होकर अर्धगोलाकार स्थिति में दक्ष में खड़े होंगे | 

23. स्कन्ध (भुजदण्ड से) :- 

23.1. विभागशः 1- बायाँ हाथ झाटके से सीने के सामने, दण्ड जमीन से समानान्तर दाहिने हाथ का करतल नीचे से दण्ड के छोटे सिरे पर पटकना, अंगूठा दण्ड के ऊपर। 
23.2. विभागशः 2- दाहिनी मुष्ठि में दण्ड को उसी स्थान पर पकड़ना और बायाँ हाथ फिसलाते हुए दक्ष स्थिति में लाना। 
23.3. विभागशः 3- दाहिनी मुष्ठि नीचे खिसकाते हुए दण्ड बायें कंधे पर लाना, दोनों हाथों की कोहनियाँ समकोण में | दाहिना प्रकोष्ठ जमीन के समानान्तर । 
23.4. विभागशः 4- झटके से दाहिना हाथ दक्ष की स्थिति में लाना। 

24. (स्कंध से) :- 

24.1. विभागशः 1- दाहिना हाथ बायीं मुष्ठि के पास ऊपर की ओर दण्ड पर पटकते हुए. उपर्युक्त क्रमांक 3 की स्थिति में आना। 
24.2. दाहिनी मुष्ठि ऊपर खिसकाते हुए दण्ड बायें कंधे पर लाना, दोनों हाथों की कोहनियाँ समकोण में | दाहिना प्रकोष्ठ जमीन के समानान्तर । 
24.3. बाये हाथ से दण्ड को लपेटना, दण्ड जमीन से समानान्तर दाहिने हाथ का करतल नीचे से दण्ड के छोटे सिरे पर पटकना, अंगूठा दण्ड के ऊपर। 
24.4. दोनों हाथ नीचे दक्ष की स्थिति में एकसाथ झटके से लाना। 

25. उपविश (भुजदण्ड में) :- 

25.1. विभागशः 1 - बायाँ हाथ दण्ड सहित सूर्यचक्र के सामने, दाहिने हाथ से दण्ड को बायें कूर्पर के पास पकडना | 
25.2. विभागशः 2 - . दण्ड बाये हाथ से निकालकर व्यायाम योग की स्थिति में शरीर के सामने नीचे लटकाना। 
25.3. विभागशः 3 - दण्ड पैरों के पंजों से 1 फुट की दूरी पर शरीर के समानान्तर रखते हुए सुखासन में बैठना | 

26. उत्तिष्ठ (दण्ड के साथ) :- 

26.1. दाहिने हाथ से दण्ड मध्य में पकड़ कर उठना |
26.2. दण्ड को जमीन से समानांतर रखते हुए बायें हाथ में लपेटना। 
26.3. भुजदण्ड स्थिति में “दक्ष | 

27. भुजदण्ड से स्थलदंड :- 

27.1. विभागशः 1- बायाँ हाथ झटके से सीने के सामने, दण्ड जमीन से समानान्तर, दाहिने हाथ से दण्ड के छोटे सिरे को पकड़ना [ (करतल उपर अंगूठा नीचे) 
27.2. विभागशः 2- बायेँ कक्ष से दण्ड नीचे से बाहर निकालकर दाहिने हाथ से उपर तिरछा (135° का कोण करता हुआ ) पकड़ना। दाहिना हाथ सीधा दाहिने स्कंध के सामने जमीन से समानान्तर | 
27.3. विभागशः 3-  नीचे झुककर दण्ड दाहिनी ओर जमीन पर सीधा रखना, दाहिना हाथ दण्ड सहित दाहिने पैर की छोटी अंगुली के पास । 
27.4. विभागशः 4-  दण्ड जमीन पर छोड़कर दक्ष | 

28. स्थलदंड से भुजदण्ड :- 

28.1. विभागशः 1- दक्ष की स्थिति से नीचे झुककर दाहिना हाथ दण्ड पर दाहिने पैर की छोटी अंगुली के पास पकड़ना । 
28.2. विभागशः 2- दाहिना हाथ सीधा दाहिने स्कंध के सामने जमीन से समानान्तर | दाहिने हाथ से उपर तिरछा दण्ड (135° का कोण करता हुआ ) पकड़ना। 
28.3. विभागशः 3-  बायाँ हाथ झटके से सीने के सामने, बायेँ कक्ष में दण्ड नीचे से अंदर डालना, दण्ड जमीन से समानान्तर |
28.4. विभागशः 4-  दाहिने हाथ से दण्ड छोड़कर, बायाँ हाथ झटके से नीचे करते हुए दक्ष | 

29. एक पदान्तरेण स्थलदंड :- 

29.1. विभागशः 1- बायाँ हाथ झटके से सीने के सामने, दण्ड जमीन से समानान्तर, दाहिने हाथ से दण्ड के छोटे सिरे को पकड़ना [ (करतल उपर अंगूठा नीचे) 
29.2. विभागशः 2- बायेँ कक्ष से दण्ड नीचे से बाहर निकालकर दाहिने हाथ से उपर तिरछा (135° का कोण करता हुआ ) पकड़ना। दाहिना हाथ सीधा दाहिने स्कंध के सामने जमीन से समानान्तर | 
29.3. विभागशः 3-  दाहिना पैर दाहिनी ओर 60 सेमी. दूरी पर रखना। नीचे झुककर दण्ड दाहिनी ओर जमीन पर सीधा रखना, दाहिना हाथ दण्ड सहित दाहिने पैर की छोटी अंगुली के पास । 
29.4. विभागशः 4-  दण्ड जमीन पर छोड कर दाहिना पैर बायें से मिलाकर दक्ष । 

30. एक पदान्तरेण से भुजदण्ड :- उपरोक्त स्थिति से भुजदण्ड करते समय 

30.1 विभागशः 1- दाहिना पैर दाहिनी ओर, दण्ड दाहिने हाथ से पकड़ना। 
30.2 विभागशः 2- दाहिना पैर डाये से मिलाना, दण्ड दाहिने हाथ सें उपर तिरछा (135" का कोण करता हुआ) पकड़ना।
30.3 विभागशः 3- दण्ड को बायें हाथ से लपेटना, दंड जमीन से समानान्तर | 
30.4 विभागशः 4- भुजदण्ड में दक्ष की स्थिति । 


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