दण्ड
दण्ड - दण्ड की लम्बाई जमीन से अपने कंधे तक ही होनी चाहिये।
1. दक्ष :-
1.1. दण्ड बायी भुजा में रहेगा।
1.2. दण्ड का मोटा सिरा ऊपर तथा पतला सिरा नीचे रहगा।
1.3. बायाँ हाथ अंदर से बाहर लाकर पाँचों अंगुलियो से दण्ड पकड़ना।
1.4. दण्ड सीधा जमीन से समकोण हो।
1.5. बायें हाथ के नीचे दण्ड का एक बालिष्ठ हिस्सा ही रहे व दण्ड घुटने के नीचे न हो।
2. आरम :-
2.1. बायाँ पैर बाजू में और हाथ पीछे (आरम की स्थिति में)।
2.2. बाये हाथ का अंगूठा दाहिने हाथ की हथेली व अंगूठे के बीच।
2.3. दाहिने हाथ की अंगुलियोँ सीधी।
3. स्वस्थ :- दण्ड उसी स्थिति में रखकर एक हाथ छोड़ा जा सकता है।
4. सावधान :- पुन आरम की स्थिते में आना।
5. स्कन्ध (भुजदण्ड से) :-
5.1. विभागशः 1- बायाँ हाथ झटके से सीने के सामने, दण्ड जमीन से समानान्तर दाहिने हाथ का करतल नीचे से दण्ड के छोटे सिरे पर पटकना, अंगूठा दण्ड के ऊपर।
5.2. विभागशः 2 - दाहिनी मुष्ठि मे दण्ड को पकड़ना ओर बायाँ हाथ फिसलाते हुए दक्ष स्थिति मे लाना।
5.3. विभागशः 3 - दाहिनी मुष्ठि नीचे खिसकाते हुए दण्ड बाये कंधे पर, दोनों हाथों की कोहनियाँ समकोण में, दाहिनां प्रकोष्ठ जमीन के समानान्तर।
5.4. विभागशः 4 - झटके से दाहिना हाथ दक्ष की स्थिति में लाना।
6. भुजदण्ड (स्कंध से) :-
6.1. विभागशः 1 - दाहिना हाथ बायीं मुष्ठि के ऊपर दण्ड पर पटकते हुए, दोनो हाथों की कोहनियाँ समकोण मे, दाहिनां प्रकोष्ठ जमीन के समानान्तर।
6.2. विभागशः 2 - दाहिनी मुष्टि ऊपर खिसकाते हुए बायाँ हाथ फिसलाते हुए दक्ष स्थिति मे लाना।
6.3. विभागशः 3 - बाये हाथ से दण्ड को लपेटना बायाँ हाथ झटके से सीने के सामने, दण्ड जमीन से समानान्तर दाहिने हाथ का करतल नीचे से दण्ड के छोटे सिरे पर पटकना, अंगूठा दण्ड के ऊपर।
6.4. विभागशः 4 - दोनों हाथ नीचे दक्ष की स्थिति मे एक साथ झटके से लाना।
7. उपविश (भुजदण्ड में) –
7.1. विभागशः 1 - बायाँ हाथ दण्ड सहित सूर्यचक्र के सामने, दाहिने हाथ से दण्ड को बाये कूर्पर के पास पकडना।
7.2. विभागशः 2 - दण्ड बाये हाथ से निकालकर व्यायाम योग की स्थिति में शरीर के सामने नीचे लटकाना।
7.3. विभागशः 3 – दण्ड पैरो के पंजो से 1 फुट की दूरी पर शरीर के समानान्तर रखते हुए सुखासन में बैठना।
8. उत्तिष्ठ (दण्ड के साथ) :-
8.1. दाहिने हाथ से दण्ड मध्य में पकड़ कर उठना और दण्ड को जमीन से समानातर रखते हुए बायें हाथ मे लपेटना।
8.2. भुजदण्ड स्थिति में दक्ष।
9. शिरमार सिद्ध –
9.1. विभागशः 1 - बायाँ हाथ दण्ड के साथ झटके से सीने के सामने जमीन से समानान्तर, दाहिना हाथ बायें हाथ के सामने और उससे दण्ड का पतला सिरा ऊपर से पकड़ना।
9.2. विभागशः 2 - बाये कक्ष से दण्ड नीचे से बाहर निकालकर दाहिने हाथ से ऊपर तिरछा (135° का कोण करता हुआ) पकड़ना। दाहिना हाथ सीधा दाहिने स्कथ के सामने जमीन से समानान्तर।
9.3. विभागशः 3 - दण्ड दाहिनी भुजा पर जमीन से समानान्तर, सीने से समकोण करता हुआ। बायाँ हाथ दण्ड के मोटे सिरे की ओर दाहिने हाथ के निकट ऊपर से।
10. भुजदण्ड (शिरमार सिद्ध से) :- उपरोक्त काम को विपरीत क्रम से करना।
10.1. विभागशः 1 - दण्ड दाहिनी भुजा पर जमीन से समानान्तर, सीने से समकोण करता हुआ। बायाँ हाथ दण्ड के मोटे सिरे की ओर दाहिने हाथ के निकट ऊपर से।
10.2. विभागशः 2 - बाये कक्ष से दण्ड नीचे से बाहर निकालकर दाहिने हाथ से ऊपर तिरछा (135° का कोण करता हुआ) पकड़ना। दाहिना हाथ सीधा दाहिने स्कथ के सामने जमीन से समानान्तर।
10.3. विभागशः 3 - बायाँ हाथ दण्ड के साथ झटके से सीने के सामने जमीन से समानान्तर, दाहिना हाथ बायें हाथ के सामने और उससे दण्ड का पतला सिरा ऊपर से पकड़ना।
11. शिरमार :-
11.1. दाहिनी भुजा से पहले मोहरे पर दोनों हाथ सीने के सामने सीधे करते हुए दण्ड को ऊपर से मस्तक पर मारते हुए शरीर से सटाकर हाथ मोडकर बायीं भुजा पर लाना।
11.2. यही काम बायीं भुजा से करना।
12. अघोमार :- उपरोक्त सिद्ध स्थिति से पहले मोहरे पर अघोमार नीचे से ऊपर मारना।
12.1. दाहिनी भुजा से पहले मोहरे पर दोनों हाथ सीने के सामने सीधे करते हुए दण्ड को नीचे से ऊपर मारते हुए शरीर से सटाकर हाथ मोडकर बायीं भुजा पर लाना।
12.2. यही काम बायीं भुजा से करना।
13. क्रमिका सिद्ध :-
13.1. विभागश 1 - में शिरमार सिद्ध 1 की स्थिति
13.2. विभागश 2 - शिरमार सिद्ध दो की स्थिति
13.3. विभागश 3 - दाहिना पैर लघुत्तम मार्ग से तीसरे मोहरे पर पर्याप्त (पैर की लबाई) अंतर पर रखकर उसी समय दण्ड दोनों हाथों से पकड़कर (बायाँ ऊपर दाहिना नीचे) नीचे खीचा हुआ, हाथ शरीर से निकट तथा शरीर के मध्य दोनो हाथ कोहनी से मुड़े हुए।
13.4. शरीर की स्थिति, पैर सीना, दृष्टि आदि पदविन्यास की सिद्ध स्थिति के अनुसार।
14. क्रमिका सिद्ध से भुजदण्ड :- उपरोक्त काम को विपरीत क्रम से करना।
15. क्रमिका सिद्ध से स्वस्थ :-
15.1. दण्ड का ऊपरी सिरा जमीन पर रखना घुटने सीधे।
15.2. दण्ड दाहिने हाथ में व पहले मोहरे पर रहेगा।
15.3. सावधान कहने पर पुनः क्रमिका सिद्ध में आना।
16. स्थलदण्ड (भुजदण्ड से) :-
16.1. विभागशः 1 - क्रमिका सिद्ध विभागशः 1 की स्थिति।
16.2. विभागशः 2 - क्रमिका सिद्ध विभागशः 2 की स्थिति।
16.3. विभागशः 3 - नीचे झुककर दण्ड दाहिनी ओर जमीन पर सीधा रखना, दाहिना हाथ दड सहित दाहिने पैर की छोटी अगुली के पास।
16.4. विभागशः 4 - दण्ड जमीन पर छोडकर दक्ष।
18. एक पदान्तरेण स्थलदंड :-
18.1. विभागशः 1 - क्रमिका सिद्ध विभागशः 1 की स्थिति ।
18.2. विभागशः 2 - क्रमिका सिद्ध विभागशः 2 की स्थिति ।
18.3. विभागशः 3 - दाहिना पैर दाहिनी ओर 60 सेमी. दूरी पर रखना, नीचे झुककर दण्ड दाहिनी ओर जमीन पर सीधा रखना, दाहिना हाथ दण्ड सहित दाहिने पैर की छोटी अंगुली के पास ।
18.4. विभागशः 4 - दण्ड जमीन पर छोड़कर दाहिना पैर बायें पैर से मिलाकर दक्ष।
19. उपर्युक्त स्थिति से भुजदण्ड :-
19.1. विभागशः 1 - दाहिना पैर 60 से.मी. दाहिनी ओर, दण्ड दाहिने हाथ से पकड़ना।
19.2. विभागशः 2 - दाहिना पैर बायें से मिलाना, दण्ड दाहिने हाथ से उपर तिरछा (ॐ का कोण करता हुआ ) पकड़ना।
19.3. विभागशः 3 - दण्ड को बायें हाथ से लपेटना, दंड जमीन से समानान्तर।
19.4. विभागशः 4 - भुजदण्ड में दक्ष की स्थिति।
20. क्रमिका सिद्ध से प्रहार सिद्ध :-
20.1. हाथ सीने के सामने
20.2. दण्ड दाहिने कन्धे से पीठ पर तिरछा व पीठ से सटा हुआ।
21. प्रहार सिद्ध से क्रमिका सिद्ध :- उपरोक्त काम को विपरीत क्रम से करना।
22. प्रहार :-
22.1. दाहिना पैर जमीन के निकट से आगे बढ़ाते हुए दाहिने कंधे से प्रतिस्पर्धी की कनपटी पर ऊपर से नीचे तिरछा आघात मारते हुए दंड बायें कंधे पर लाना।
22.2. यही काम व्युत्क्रम स्थिति से करना।
23. प्रहार प्रक्रम :- प्रत्येक प्रहार के साथ पैर आगे बढ़ाते हुए पहले मोहरे पर 6 मार मारना।
24. प्रहार अपक्रम :- प्रत्येक प्रहार के साथ पैर पीछे लेते हुए पहले मोहरे पर 6 मार मारना।
25. प्रहार मार प्रयोग 1 :-
25.1. पहले मोहरे पर आगे बढ़ते हुए दो प्रहार, दण्ड बायें कंधे पर लाना।
25.2. तीसरे मोहरे पर बढ़ते हुए दो प्रहार मारना, दण्ड दाहिने कन्धे पर लाना।
26. प्रहार मार प्रयोग 2 :-
26.1. पहले मोहरे पर प्रक्रम के साथ दो प्रहार व अपक्रम के साथ दो प्रहार।
26.2. दण्ड बायें कन्धे पर लाकर तीसरे मोहरे पर वही काम करना।
26.3. अन्त में दाहिने कन्धे पर दण्ड लाना।
27. प्रसर मार :- एक बार प्रसर करके प्रक्रम के साथ दो प्रहार।
28. प्रति प्रसर मार :- पहले प्रतिसर करना, तुरन्त पश्चात् प्रसर करके दो प्रक्रम के साथ प्रहार।
सूचना :-
1. गतियुक्त के सभी प्रयोग दण्ड अविरत गति से घुमाने का अभ्यास होने के लिए है।
2. इन प्रयोगो में तीसरे मोहरे पर मार मारते समय पैर न उठाते हुए मारना है।