हिन्दू जीवन शैली की कुछ विशेषताएँ

हिन्दू जीवन शैली की कुछ विशेषताएँ

1. कार्य

  • प्रतिदिन तीन काम – 1 स्नान, 2 ध्यान, 3 व्यायाम।
  • घर में उत्तम दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्र आते रहें और घरवाले उनको पढ़ते रहें।
  • सप्ताह में एक दिन – सिर से पैर के तलवे तक सारे शरीर को तेल लगाकर गुनगुने गरम पानी से स्नान करना।
  • सप्ताह में एक दिन परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर परिवार के आगामी योजना तथा कार्यो की चर्चा करना तथा रुपरेखा बनाना ।
  • घर के सभी व्यक्ति सप्ताह में एक बार मिलकर अपने परिवार के बारे में चर्चा करें।
  • पक्ष में (15 दिन में) एक बार – व्रत रखना, अर्थात कुछ नहीं खाना (जैसे एकादशी)।
  • मास में एक दिन -विरेचन (जुलाब) लेना।
  • वर्ष में एक बार अपने बन्धु मित्रों को अपने घर में बुलाकर पूजा भजन करके सबको प्रसाद देने का कार्यक्रम हो।
  • वर्ष में एक बार प्रवास। किसी प्रेरणा देनेवाले स्थान पर सम्पूर्ण परिवार के साथ जाना।
  • जीवन में कम से कम एक बार काशी और रामेश्वरम् की यात्रा करें।

2. घर

  • घर के आंगन / सामने तुलसी का पौधा हो।
  • घर के द्वार या योग्य स्थान पर ॐ, शुभ लाभ इत्यादि मंगल शब्द लिखें।
  • घर में एक पूजास्थान रहे। घर का हर सदस्य दिन में कम से कम एक बार वहाँ जाता रहे।
  • घर में देवी-देवता, महापुरुषों और पूर्वजों के चित्र योग्य स्थान में सुशोभित करें।
  • घर में धार्मिक ग्रंथ रहें और उनका पठन प्रतिदिन होता रहे।
  • घर में भजन कीर्तन सत्संग इत्यादि कार्यक्रम होता रहे।
  • संस्कृत भाषा के अध्ययन में घर के सभी की रुचि रहे।
  • घर में आये अतिथियों का योग्य आदर सत्कार होता रहे।
  • घर में सब सदस्यों को करने योग्य अपना कार्य स्वयं करना तथा अन्यों के कार्यो में सहायता करना जैसे झाडू लगाना, बिस्तर बिछाना, सामान लाकर देना, सब्जी काटना, दुकान जाना, खरीदारी करना, अगरबत्ती जलाना, दीप जलाना, लेखा-जोखा लिखना, रंगोली बनाना, वाहन साफ करना, स्नानगृह धोना, शौचालय धोना, जमीन साफ करना, कुर्सी-टेबल साफ करना आदि।
  • निमंत्रणपत्रों को मातृभाषा या संस्कृत में छपवाना।

3. पड़ोस, समाज और अन्य आदते

(क) पड़ोसियों के साथ मधुर सम्बन्ध रहें।
(ख) भाषाओं को सीखना चाहिए। ज्यादा भाषाएँ जिसको आती हैं, उसकी जानकारी विशाल होती है। पहले बोलना, पश्चात् पढ़ना-लिखना भी सीखना चाहिए।
(ग) लिखने का अभ्यास अत्यंत श्रेष्ठ है। गौरव को बढ़ाता है।
(घ) दान देने की प्रवृत्ति बढ़नी चाहिए।
(ङ) शुभ अवसर पर मंगल स्नान, शुभ्र वस्त्र धारण, मंदिर जाकर देवदर्शन, दान और मिष्ठान बाँटना, ये पाँच काम करने ही चाहिए।
(च) विवाह इत्यादि मंगल प्रसंगों में धर्मिक पहलू को महत्व देकर उस श्रद्धा और एकाग्रता से, शान्ति से करना। सामाजिक पहलू का भी योग्य रीति से ध्यान रहना।
(छ) पूजा हो रही हो तो भक्तिभाव से, शान्ति से उसमें सम्मिलित हों।
(ज) बड़ों से उन्नत स्थान पर नहीं बैठना चाहिए। जब बड़े खड़े हैं तो, छोटों को नहीं बैठना चाहिए।
(झ) बड़े व्यक्ति घर में आएं तो उनको नमस्कार करके आशीर्वाद लें। बच्चों को भी वैसा ही करने की शिक्षा दें।
(ञ) बड़े व्यक्तियों के साथ सम्मानजनक बातें करना सिखाएँ।
(ट) बच्चों को स्वयं खाने से पहले दूसरों को देकर खाने का अभ्यास करवाएँ।
(ठ) वृद्ध माता-पिता के साथ रहें।
(ड) घर के कामों में सभी सदस्यों का सहयोग यथाशक्ति मिलता रहे।
(ढ) घर में कभी-कभी गपशप होती रहे।
(ण) घर में सकरात्मक शब्दों का प्रयोग साधारणत: होता रहे।
(त) बचत का अभ्यास घर में सभी को हो। यह धन के बारे में आदर व्यक्त करने का संकेत है। आडंबर के लिए खर्च नहीं करना चाहिए।
(थ) अनावश्यक खर्च, भोगवाद (Consumerism) हमारी प्रकृति और अपनी धर्मप्रवृत्ति को शोभा नहीं देता, योग्य भी नहीं है।
(द) धन का अर्जन उत्तम मार्ग से ही हो। (खर्च करते समय) घर का निर्वाहण। अगली पीढ़ी को उत्तम संस्कार। आपद्धन बचत करना। धर्मकार्य के लिए बचत करना।  इन सब का संतुलन रहे
(ध) प्राणियों की हिंसा न हो। “अहिंसा परमो धर्म:'।
(न) गंगा (जिसे हम गंगा माता कहते हैं) विश्व में सर्व श्रेष्ठ नदी है, उसका जल अत्यन्त पवित्र है।
(प) किसी घर में जाकर अंत्यदर्शन कर आने के बाद स्नान करने के बाद ही सामान्य व्यवहार प्रारम्भ करें।
(फ) हर व्यक्ति पर तीन ऋण होते हैं —देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण।
(ब) उत्तम ग्रन्थों के बारे में कभी-कभी चर्चा होती रहे।
(भ) काम करते समय मताएँ स्तोत्र या भक्तिगीत गाते-गाते काम करें।
(म) ग्राम विकास के कामों में परिवार से सबका सहयोग मिलता रहे।
(य) सोने से पहले ईश स्मरण करने का अभ्यास रहे। दिनभर किए गए कामों के बारे में निर्मल भाव से अवलोकन करने का भी अभ्यास हो।

4. संस्कार घर से ही प्रारंभ होते है अतः घर में सभी सदस्यों को निम्न बाते मालूम होनी चाहिये:-

  • जल्दी सोकर जल्दी उठना । दाहिनी ओर से उठना। हाथ को देखते हुए ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी'.. शलोक कहना।
  • घर से बाहर जाते समय बड़ों को बताकर जाएँ।
  • सब अपने काम स्वयं करें।
  • बुजुर्गों के काम में हम मदद करें।
  • पके हुए आहार व्यंजनों को खरीदकर नहीं लाना, उसको नहीं खाना।
  • बिना कारण मिष्ठान नहीं खाना। अकले मिष्ठान नहीं खाना। घर में मिष्ठान को पहले बच्चों को देना, बाद में बड़ों ने खाना।
  • Credit Card का उपयोग हितकारी है क्या? किसी को भी बचत का अभ्यास न हो ऐसी Credit Card की दृष्टि है। हर एक परिवार बचत करेगा तो केवल स्वयं का ही नहीं, देश और समाज का भी भला करेगा।
  • अच्छे परिवारों में क्या-क्या रहता है? स्वच्छता, सरलता, आपस में प्रीति और विश्वास, तुलसी, ईश्वर के लिए एक स्थान, रंगोली, स्वेदशी स्वभाव, भारत माता का चित्र, महापुरुषों के चित्र, उत्तम वार्तापत्र, सबको सुविधा देने की प्राथमिकता, अतिथियों का आत्मीय स्वागत 'आईये बैठिये' इत्यादि गौरवयुक्त वचन, बैठने के लिए आसन, पीने को पानी देना इत्यादि।
  • बड़े, गुरुजन, स्त्रियों, रोगी और बच्चों को प्राथमिकता दें।
  • घर में सब वस्तुओं का निश्चित स्थान होना चाहिए। और सब वस्तुएँ उसी स्थान पर रखी जाएँ।
  • परिवारजन मातृभाषा में ही बातचीत करें।
  • भारत एक देश है, हमारी एक ही संस्कृति है, हम सबका एक ही जनजीवन है।
  • हम गो पूजक हैं। गो माता है। वह सब देवताओं का आश्रयस्थान है।
  • घर में आनेवालों से जाति के बारे में नही पूछे। किसी भी जाति की निंदा न करें।
  • घर में पशुपक्षियों का संरक्षण और पोषण योग्य रीति से हो।
  • प्रथम रोटी गाय को और आखिरी रोटी कुत्ते को।
  • घर में स्वदेशी वस्तुओं का ही उपयोग हो।
  • देश के महापुरुषों की विशेषताओं का स्मरण करने की व्यवस्था हो।
  • घर बाहर, अन्दर से स्वच्छ रहे और जमीन साफ सुथरी रहे।
  • घर में आए अतिथियों को शरबत, चाय पानी इत्यादि दें।
  • अपने घर के साथ अपना परिसर और घर के सामने का रास्ता भी स्वच्छ रहे।
  • साधु सज्जन घर में आकर कुछ समय रहें, ऐसी योजना करें।
  • घर में मुष्टि धान्य, गोलक इत्यादि नियमित रहे।
  • गोग्रास, उपवास, नैवेद्य, प्रसाद, समर्पण इत्यादि शब्दों का परिचय और उपयोग घर में होता रहे।
  • घर में बड़ों को सम्मान और छोटों को स्नेह मिलने का वातावरण रहे।
  • विद्यालय, महाविद्यालय जाते समय, अन्य समय में भी घर की प्रतिष्ठा बढ़े ऐसा वेष पहनना चाहिएँ।
  • सभी काम ठीक समय पर करने चाहिएँ।
  • जो वस्तु हमारी नहीं है उसे नहीं उठाना चाहिए।
  • सप्ताह में एक बार सारे शरीर को तेल लगाकर स्नान करें।
  • गृहकार्य (Home work) बच्चे स्वयं करें। माताएँ उसको करने के लिए आगे नहीं बढ़ें। माता और बच्चों का सम्बन्ध न बिगड़े। यदि बच्चे स्वयं आकर पूछते हैं तो आप को जितना मालूम है उतना बताएँ। मैं ही सब सिखाती हूँ ऐसी भावना ठीक नहीं है।
  • सामाजिक समरसता लानेवाले संगठन यथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, राष्ट्रीय सेविका समिति, सत्संग मंडली इत्यादि कार्य में सक्रिय होना चाहिए।
  • घर में सामाजिक विकास, सामाजिक समस्याओं के बारे में विचार होता रहे और उत्तम कार्यों को सहयोग मिलता रहे।
  • घर में वृद्ध, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रचारक इत्यादि आएँ तो बच्चों को उनके साथ रखकर बातचीत करने का अभ्यास करवाएँ।
  • बच्चे हर दिन तिथि, वार, नक्षत्र, संवत्सर, मास, पक्षों के नाम दुहराना सीखें, ऐसी व्यवस्था घर में हो।
  • बच्चों के विवाह किस आयु में होने चाहिए, इसके बारे में भी उन्हें बताना चाहिए।
  • कितने बच्चे हों? व्यक्ति, परिवार, समाज तीनों को सामने रखकर सोचना चाहिए।
  • घर में मम्मी, डैडी, अंकल, आांटी इत्यादि शब्दों को छोड़कर दादा, नाना, ताई, माँ इत्यादि सम्बन्ध सूचक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।


5. सम्बन्ध (Relation ) सूचक शब्द

हिन्दू समाज में आपसी सम्बन्ध का अपना ही एक महत्त्व है। हर समूह अपने में अच्छा सम्बन्ध परखकर विकास करना चाहता है। कई लोग अपनी जड़ को ऋषि-मुनियों से जोड़ लेने में गर्व करते हैं। उसके अनुरूप अपने कुल के सभी रिश्तों को परखकर सम्बन्ध सूचक शब्दों से उनको पुकारने का रिवाज है। हर परिवार में ऐसे सम्बन्ध (Relation) बनना अच्छा है। सम्बन्ध सूचक शब्दों से रिश्तों को पुकारने की संस्कृति का विकास होना चाहिए।

पिता        -      माँ
दादा        -      दादी
परदादा    -     परदादी
नाना       -      नानी
पोता        -     पोती
धेवती       -     धेवता
काका(चाचा)-  काकी(चाची)
मौसा       -      मौसी
मामा       -      मामी
बड़े पिताजी -  बड़ी माँ
ताऊ        -      ताई
चाचा        -      चाची
बुआ(फुआ) -   फूफा
दामाद      -      बहु
भैय्या      -      भाभी
बहन       -      जीजा
भतीजा    -     भतीजी
देवर       -      देवरानी
जेठ       -      जेठानी
भाँजा      -      भाँजी
साला      -     सलहज
साढूं.      -      साली
नन्द      -      नंदोई

निवेदन : ऊपरी शब्दों के अलावा कई और सम्बन्ध सूचक शब्द होंगे ही। कृपया अवगत कराइए।

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