गणशिक्षक हेतु सिखाने की पद्धति

 गणशिक्षक हेतु सिखाने की पद्धति 

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प्राथमिक और मौलिक अंश सिखाते समय शिक्षक को विशुद्ध रीति से सिखाना अत्यंत आवश्यक है। इस हेतु शिक्षक को प्रयोग की सारी बारीकियाँ ज्ञात होनी चाहिए। प्रयोग करते समय हाथ, पैर, सीना, दृष्टि, शस्त्र आदि कौन-कौन सी स्थितियों में और किस पद्धति से जाते हैं, यह उसे अवगत होना चाहिए। इन बातों को स्वयंसेवकों को सिखाने के लिए युक्ति और प्रयुक्तियाँ (Teaching Techenique) का उपयोग करना आवश्यक है। 


समता :- 

1. दक्ष की स्थिति में पैरों के पंजों में 30° का कोण है या नहीं यह जानने का सरल साधन यह है कि प्रत्येक स्वयंसेवक के पैर के अंगूठों में पैर के पंजे की लंबाई (एड़ी से अंगूठे तक की) का आधा अन्तर होना चाहिए । 

2. आरम में 30 सें.मी. का अन्तर एड़ियों में रहना चाहिए अर्थात्‌ दाहिनी एड़ी के मध्यभाग से बायीं एड़ी के मध्यभाग तक 30 सें.मी. का अन्तर होना चाहिए। इसका अभ्यास कराने के लिए एक बड़ी रेखा खींचकर उसमें 30-30 सें.मी. पर निशान लगाकर प्रत्येक स्वयंसेवक को पैरों की एड़ियाँ दो आसन्न चिह्लों पर रखकर खड़े होने के लिए कहना व बार-बार आरम, दक्ष कर पैरों के अन्तर का अभ्यास कराना। एकशः संपत में योग्य अंतर लेकर स्वयंसेवक खड़े हों तो आरम करने पर किसी भी एड़ी का अंतर बाजू की एड़ियों के समान ही होगा ।

3. द्विपद पुरस्‌ या दक्षिणसर की आज्ञा देने के पश्चात् द्विपद प्रति या वामसर की आज्ञा देने पर स्वयंसेवकों को अपने स्थान पर वापस आना चाहिए। किन्तु अनेक बार इसमें अन्तर पड़ जाता है। अतः चिन्ह बनाकर कराना चाहिए। पहले सबके लिए चिन्ह रहेंगे, बाद में अन्त के दो स्वयंसेवकों के लिए चिन्ह रखना | 


दण्ड :- 

सिरमार सही लग रहा है या नहीं इसके लिए तीन बातें देखना आवश्यक है | 

1. मार भुजा से निकले। 

2. मार प्रतिस्पर्धी के सिर पर ऊपर से नीचे सीधा लगे। 

3. मारते समय दण्ड अपने शरीर के निकट से निकले। 

ये बातें स्वयंसेवकों को सिखाने के लिए निम्नलिखित युक्तियाँ प्रयुक्तियाँ की जा सकती हैं - 

क) स्वयंसेवकों को आमने-सामने दण्ड के प्रहार क्षेत्र से किंचित बाहर खड़ा कर अभ्यास करवाना। मारने वाले का दण्ड सामने वाले के सिर के सामने से निकलना चाहिए। 

ख) स्वयंसेवक की जगह दण्ड हाथ में ऊपर उठाया रखा जा सकता है। दण्ड का ऊपरी भाग दण्ड चलाने वाले स्वयंसेवक की ओर झुका रहे जिससे दण्ड पकड़ने वाले स्वयंसेवक के हाथों में दण्ड न लगे। इस दण्ड के ऊपर के सिरे को प्रतिस्पर्धी का सिर समझकर अभ्यास कराना चाहिए। 

ग) मारते समय दण्ड अपने शरीर के पास से निकले, यह सिखाने के लिए स्वयंसेवक के दोनों ओर उसके शरीर के पास दो दण्ड जमीन से लम्बरूप पकड़ना। घूमने वाला दण्ड इन लम्बरूप खड़े दण्डों को नहीं लगना चाहिए। अधोमार के अभ्यास के लिए भी उपर्युक्त युक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है | 

घ) अर्धवृत, ऊनवृत और परिवृत ठीक तरह से सिखाने के लिए जिधर मार उधर सीना और दृष्टि का सिद्धान्त ठीक तरह से समझाना चाहिए। रेखांकन का उपयोग भी कर सकते है | 

च) द्विमुखी स्थिति में मार सही मोहरे पर आ रहे हैं या नहीं, यह देखने के लिए (अ) पहले और तीसरे मोहरे पर दो स्वयंसेवक दण्ड खड़ा करके रखें। (आ) स्वयंसेवक के दूसरे व चौथे मोहरे पर दो स्वयंसेवक अपना-अपना दण्ड बीच में पकड़कर जमीन से समान्ततर और आपस में समानान्तर रखें, बीच का स्वयंसेवक इन दण्डां को न लगने देते हुए अपना दण्ड घुमा। 


पदविन्यास :-

1. सिद्ध स्थिति ठीक है या नही यह देखने के लिए निम्न बातें देखना । पंजों की दिशा में घुटने मुड़े हैं या नहीं। कमर के ऊपर का भाग सीधा है या नहीं। दोनों पंजों के बीच कमर से एड़ी तक की लम्बाई का अन्तर ठीक है या नहीं ।

2. गति पुरस्‌ / प्रति के कार्यो में पैरों को आगे / पीछे लेते समय घुटना सीने के पास तक ले जाना चाहिए | द्विपद व त्रिपद पुरस्‌ / प्रति के समय ठीक दिशा में पैर बढ़ाना सिखाने के लिए, दो समानान्तर रेखाएँ (सामान्यतः 60 सें.मी, के अन्तर पर) खींचकर एक रेखा पर स्वयंसेवक सिद्ध स्थिति में खड़ा रहे व काम प्रारंभ करने के बाद क्रमशः दोनों रेखाओं पर बढ़ता चले। 


गलतियाँ और सुधार 

स्वयंसेवक की गलती कहाँ और कैसी हो रही है, इसे पहचानना शिक्षक के लिए अत्यंत आवश्यक है। वास्तव में अच्छे शिक्षक की कसौटी ही यह है कि स्वयंसेवक की गलतियाँ तत्काल उसके ध्यान में आ जाएँ । 

गण में प्रयोग करने वाले स्वयंसेवकों के द्वारा कई प्रकार की गलतियाँ हो सकती है। जैसेः- अधिक स्वयंसेवक समान प्रकार की गलतियाँ करते हैं। कई स्वयंसेवकों की प्रारंभिक तथा प्रयोग के अन्त की स्थिति तो ठीक रहती है, पर वे प्रयोग गलत प्रकार से करते हैं। काम सांघिक नहीं होता। सभी स्वयंसेवक सारा काम एक साथ नहीं करते। कम ग्रहणशक्ति वाले स्वयंसेवक विचित्र प्रकार की गलतियाँ करते हैं। उनके विषय में पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता। उसे ठीक प्रकार से समझ लेना शिक्षक के लिए आवश्यक है। 

गलतियाँ कैसी और क्यों हो रही हैं, यह ध्यान में आने पर उनको सुधारना सरल होता है। ऊपर दी हुई गलतियाँ निम्न प्रकार से सुधारी जा सकती हैं :- 

1. सर्वसाधारण गलतियाँ कौन-कौन करते हैं, उनका नाम लेकर सबको एक ही साथ क्या-क्या सुधारना है, यह बताना | 

2. प्रयोग के मध्य में गलती करने वाले प्रत्येक को वह क्या गलती कर रहा है और सही करने की पद्धति क्या है, वह करके दिखाकर सुधारना होगा | 

3. सांघिक काम ठीक नहीं करने वालों को कौन कौनसा काम पहले कर रहा है, और कौन कौनसा काम देरी से कर रहा है, यह नाम बताकर ठीक कर सकते है। 

इन तीनों प्रकार की गलतियों में अगर गलती ठीक प्रकार ध्यान में आई हो तो सुधारना आसान होगा। 


कुछ स्पष्टीकरण :- 

1. अंकताल और आज्ञा में अन्तर है, जैसे :-ध्वजप्रणाम 1, 2, 3 यह आज्ञाएँ हैं, अंकताल नहीं। विभागशः 1, 2, 3 या क्रमशः 1, 2, 3, 4 यह आज्ञाएँ हैं, इसलिए इन आज्ञाओं के पश्चात्‌ कृति होती है। 

2. दण्ड में अंकताल पैरों पर या मारों पर या कुछ प्रयोगों में पैर तथा मार पर दिए जाते हैं। जैसे :- द्विमुखी स्थिर में मारों पर अंक दिए जाते हैं तथा षट्पदी में पैरों पर किन्तु षट्पदी ऊर्ध्वभ्रमण में पैरों और मार दोनों पर (अधोमार पर 1, पैर रखते हुए ऊर्ध्वभ्रमण लगाते समय 2, दूसरे कदम पर ३ और सिरमार लगाकर तीसरा कदम रखते समय 4) अंक दिए जाते हैं। सांघिकता की दृष्टि से जैसे अंकताल उपयुक्त हो, वैसे देना आवश्यक है | 

3. समता में आज्ञा देते समय आज्ञा किस पैर पर पूर्ण होती है, उस पर ध्यान देना आवश्यक है। ज्ञात रहे कि जिस पैर से कृति प्रारंभ होती है, उसी पैर पर आज्ञा पूर्ण होनी चाहिए। जैसे संचलन में या मितकाल में दाहिने पैर पर दक्षिणवृत की आज्ञा दी जाती है और एक यति देकर पूर्ण होती  है। आज्ञा देते समय सूचना और आदेश के बीच उचित यति देना आवश्यक है | 


आज्ञाएँ देकर विभिन्न कार्य करवाने के लिए स्वयंसेवकों को अभ्यासार्थ निम्नानुसार प्रश्न दिए जा सकते है। 

1. शाखा के प्रारंभ में स्वस्थान मिलने पर गण को स्कंध में ले जाकर व्यायाम योग या सूर्यनमस्कार के लिए खडा करना | 

2. एकशः सम्पत कराकर द्वि, त्रि या चतुष्तति में ध्वजाभिमुख खड़े करना । 

3. मण्ड़ल में बैठे हुए गण को तीन ततियों में दण्ड करने के लिए खड़ा करना। 

4. गण समता करनेवाले गण को विशिष्ट स्थान पर निःयुद्ध के लिए खडा करना | 

5. निःयुद्ध का अभ्यास करने वाले गण को गीतस्पर्धा के लिए खड़ा करना | 

6. सिद्धस्थिति में तीन ततियों मे खड़े गण को चौथे मोहरे पर पदविन्यास के द्वारा ही दस कदम दूरी पर ले जाना | 

7. गण संपत के स्कंध स्थिति में खड़े स्वयंसेवकां का विशिष्ट स्थान पर बौद्धिक के लिए बिठाना|


सांघिकता 

सांघिकता से काम करना संघ की विशेषता है। अतः सांघिक काम करवाने के लिए जिन बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है, उन बिंदुओं को अवगत कराएँ। विविध विषयों में सांघिक कार्यवाही करने के लिए स्वयंसेवकां को समय देना है।

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