गतिविधि

गतिविधि


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपने शताब्दी वर्ष 2025 तक देश की सभी पंचायतों और नगरों व महानगरों में सभी बस्तियों तक अपने कार्य को पहुंचाने की तैयारी शुरू कर दी है। इस कार्य में सहभागी बनने के लिए संघ ने अपने पुराने स्वयंसेवकों को सक्रिय करने का काम शुरू कर दिया है। संघ के पदाधिकारी वैसे स्वयंसेवकों से संपर्क कर रहे हैं, जो किसी कारण से शाखा नहीं जा रहे हैं या पारिवारिक तथा निजी कारणों से संघ कार्य में सक्रिय नहीं हैं। ऐसे स्वयंसेवकों को संघ ने सुषुप्त शक्ति माना है। साथ ही समाज के वैसे लोगों को भी संघ कार्य से जोड़ने का अभियान शुरू किया गया है, जो आरएसएस के हितैषी हैं, लेकिन अब तक शाखा नहीं गए हैं। ऐसे लोगों से संघ कार्य के लिए समय देने का आग्रह किया जा रहा है। इन लोगों को संघ की छह गतिविधियों के कार्यों से जोड़ा जा रहा है। संघ के अनुसार, जो लोग शाखा नियमित नहीं जा सकते हैं वैसे लोगों को अपनी गतिविधियों के कार्यों से जोड़ा जाए। समाज के अलग अलग क्षेत्रों में संघ ने अपनी छह गतिविधियों के माध्यम से काम प्रारंभ किया है। इसके माध्यम से ही देश के सभी पंचायतों तक काम पहुंचाने की तैयारी है। जब राजपाट प्रहलाद के पास आ गया तो इंद्र उनके पास गए। प्रहलाद दानी थे। फिर भी इंद्र ने प्रहलाद से राज्य नहीं मांगा। उसने प्रहलाद से उनका सत्व मांगा, जो उन्होंने दे दिया। तब इंद्र के पास सत्व के साथ बल ,तेज और लक्ष्मी भी चले जाने लगे तो प्रहलाद ने पूछा कि आपको तो मैंने इंद्र को नहीं दिया फिर क्यों जा रहे हो। सबने कहा जहां सत्व रहेगा वहीं बल, तेज और लक्ष्मी रहेंगे। अपने देश की कहानी भी ऐसी ही है। हम सत्व भूल गए इसलिए हमारा ज्ञान वैभव सब चला गया । हमें समाज में पुनः स्वत्व पैदा करने की आवश्यकता है। इसीलिए संघ ने सामाजिक समरसता, धर्म जागरण, ग्राम विकास, कुटुंभ प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, गौरक्षा की गतिविधियां समाज में प्रारंभ की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 6 गतिविधिया पूरे भारत मे चल रही है जो समाजहित और समाजसुधारक हेतु, ये गतिविधियों चल रही है। सभी गतिविधियो की अपनी एक इकाई या टोली के रूप मे कार्य करती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छह गतिविधि उनके नाम और काम निम्नलिखित है। 


  1. सामाजिक समरसता
  2. पर्यावरण संरक्षण
  3.  कुटुंब प्रबोधन
  4. समग्र ग्राम विकास
  5. गौ सेवा
  6. धर्मजागरण


1. सामाजिक समरसता गतिविधि :

सामाजिक समरसता गतिविधि , समरसता संघ की विचारधारा का एक पारिभाषिक शब्द है। 1983 में श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगडी जी ने पुणे में सामाजिक समरसता मंच की स्थापना की। तब से इस शब्द का चलन सार्वजिनक मंच पर होने लगा। श्रीगुरूजी तथा पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चिंतन में भी समरसता शब्द का प्रयोग मिलता है। बंधुता के बिना सामाजिक समरसता नहीं हो सकती। समरसता किसी कानून से नहीं, संस्कार और व्यक्ति निर्माण से आ सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 100 वर्ष से इसी कार्य में लगा है। समता और समरसता से युक्त समाज की स्थापना भारत का प्राचीनकाल से लक्ष्य रहा हैं।

कई कारणों से हिन्दु समाज में विषमताओं का जन्म हुआ। मंदिर, कुआं व श्मशान का प्रयोग जातीय आधारित किया गया। इसके पीछे धर्म की मान्यता दी गई। इन सामाजिक बुराईयों के विरोध में समय-समय पर अनेक महापुरूषों ने आवाज उठाई व समाज सुधार के आंदोलन चलाए। जिससे कालांतर में सामाजिक व राजनीतिक समता आई। इनमें महात्मा ज्योति राव फूले, नारायण गुरू, डॉ आंबेडकर का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। प्राचीनकाल में जो व्यवस्थाएं निर्मित हुई वह उस काल के अनुरूप तैयार की गई। आज अगर उनकी आवश्यकता न हो, उनकी उपयोगिता समाप्त हो गई हो, तो हमें उनका त्याग करना चाहिए। अनुसूचित जाति व वंचित समाज के बंधु बराबरी व सम्मान चाहते हैं। और वह भी अपने पुरूषार्थ से ही। हमारे ये भाई चाहते है कि उन्हें सभी प्रकर की सुविधाएं और समान अवसर मिलने चाहिए। उनकी यह अपेक्षा और मांग उचित ही है। किन्तु अंततोगत्वा उन्हें समाज के विभिन्न घटकों के साथ योग्यता की कसौटी पर स्पर्धा करके ही बराबरी का स्थान प्राप्त करना है। 

सामाजिक समरसता गतिविधि के महत्वपूर्ण बिन्दु

  • हिन्दू समाज के महापुरूष सम्पूर्ण समाज के लिए हैं किसी जाति विशेष के नहीं।
  • महापुरूषों की जयंती सर्वसमाज मिलकर मनाए, विशेषकर भगवान महर्षि वाल्मीकि जी, संत रविदास जी, बाबा साहेब अम्बेडकर जी, गुरुनानक जी
  • उक्त सभी महापुरूषों की जयंती पर अपने परिवार में प्रबोधन, सामूहिक दीप प्रज्वलन, महापुरूष के विषय में विमर्श/संस्मरण आदि का वाचन।
  • अपने घरों में हिन्दू समाज की सभी जातियों, बन्धुओं भगीनियों के लिये समान व्यवहार का अभ्यास जैसे एक समान पात्र, बैठने का स्थान आदि का घर के सदस्यों से आग्रह ।
  • अपने घरों में होने वाले मांगलिक कार्यक्रमों में अपने आस पास के परिचित आदि अनुसूचित समाज बन्धुओं को आमंत्रित कर यथा योग्य आदर सत्कार करना ।
  • अनुसुचित समाज के एक वंचित परिवार को गोद लेकर उस परिवार की शिक्षा, स्वास्थ्य, योग्य चिंता करना । रोजगार, सामाजिक मान सम्मान आदि।
  • आरक्षण एक समाज उत्थान की वैधानिक व्यवस्था है अपने बन्धु बाँधवों को आगे बढ़ाने की, इसलिए अनावश्यक बहस से दूर रहना।
  • भुल कर भी किसी जाति के लिए अशोभनीय शब्द न कहें इसका प्रत्येक समय धयान दे ।
  • महापुरूषों की जीवनियों का वाचन, विषेशकरः संत रविदास जी, अम्बेडकर जी ।
  • समरसता व्यवहार है भाषण से या अच्छी बाते बोलने से नही अपितु अपने व्यवहार में सहजता से लाना होगा। भागदौड़ से भरे जीवन मूल्यों और संस्कारों को न भूलें। शहर में रहते हुए भी गाँव की मिट्टी और संस्कारों को न भूलें।
  • अपने मोहल्ले के मंदिर को परस्पर सहयोग से जीवंत बनायें। यहाँ पुस्तकालय स्थापित करें। बड़े बुजुर्गों के बैठने का स्थान बनावें । मंदिर को संस्कृति का केन्द्र बनावें । 16 संस्कारों की व्यवस्था पंडित जी के माध्यम से प्रत्येक घर में हो इसकी व्यवस्था सामूहिक प्रयास से करें।


2. पर्यावरण संरक्षण गतिविधि :

पर्यावरण संरक्षण गतिविधि का नारा है, ‘वृक्ष लगाओ, पानी बचाओ, पॉलिथीन हटाओ।’ इस गतिविधि के मुख्य उपक्रम पेड़, पानी और पॉलिथीन हैं। घर की बनावट के अनुसार बालकनी या छत पर गमलों में पेड़-पौधे लगाने चाहिए, जल संरक्षण दैनिक कार्यों के माध्यम से करना चाहिए, हानिकारक रसायन युक्त सामग्रियों का उपयोग कम करना चाहिए, जैव विविधता का संरक्षण करना चाहिए और घर में ऊर्जा का संरक्षण करना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के 6 कार्य विभाग हैं, शैक्षणिक संस्थान, धार्मिक संस्थान, नारी शक्ति, स्वयंसेवी संस्थान, जन संवाद और जनसंपर्क। पर्यावरण संरक्षण करें, ऋषि मुनियों द्वारा प्रदत्त ज्ञान के अनुसार प्राकृति नियमों के अनुरूप जीवन जियें ।

  • वृक्ष :- भोजन एवं औषधी युक्त पेड़ पौधे लगवाना एवं नई पीढ़ी को वृक्षारोपण करना सिखना । वृक्षों के प्रति सम्मान और आदर का भाव जागृत करना ।
  • पृथ्वीः- धरती माँ का तिलक लगाना, सवेरे उठने के पश्चात् धरती को स्पर्श कर माथे से लगाकर स्वयं प्रणाम करना और बच्चों को सिखाना। घरों में मिनरल (मिट्ठटी), वुड (लकडी), आयरन (लोहे), पीपल, काँसे, चाँदी, सोने जैसी धातुओं से बनी वस्तुओं का उपयोग करना ।
  • वायु :- प्राकृतिक वायु में कार्य करने एवं वायु प्रदुषण न करने के लिए आग्रह करना। घर में शुद्ध वायु आने जाने की व्यवस्था और अग्निहोत्र इत्यादि द्वारा वायुमंडल शुद्धि करने को बल देना। 
  • अग्नि (प्रकाश) :- सुर्य देव को प्रतिदिन अर्ध्य अर्पित करना, घर एवं कार्य स्थल के रोगाणुनाशक प्रकाश में कार्य करने के लिए आग्रह करना।
  • आकाश :- पर्यावरण में पोलिथीन /प्लास्टिक सिल्वर फॉयल आदि हानिकारक पदार्थों से होने वाले प्रदूषण रोकने के लिए इकोबिक्स बनाना, यूज एंड थ्री प्लास्टिक के उपयोग न करने के प्रति जागरूकता फैलाना।
  • जल :- वॉटर केचमेंट एरिया (WCA) तालाब, बावडी, नदी चिन्हित करना एवं उनकी देख भाल पंच तत्व विधि द्वारा करना। घर के जलस्थान एवं नदियों को पवित्र भाव से संरक्षित करना। पर्यावरणीय स्थिरता प्राप्त करने और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए हर घर को “हरित घर” बनाना। हरित घर में जल, वन, जीव, उर्जा, भूमि संरक्षण पर कार्य करना।

घर में जल का संचय कैसे करे

  • स्नान करने में जल का अनुकूलन (optimum) उपयोग करें।
  • हाथ धोने, ब्रश करने एवं शेविंग करते समय, जब जल का उपयोग न कर रहें हो, तो नल को बंद रखे।
  • अतिथि को जल, पूछ कर ही आधे/दो तिहाई जल का गिलास दें। पानी की टंकी में अलार्म अवश्य लगायें।
  • पीने योग्य जल का उपयोग घर के आँगन एवं कार / दोपहिया वाहन को धोने में करने के बजाय वर्षा के संग्रहित जल का उपयोग करें
  • बर्तन धोते समय जब जल का उपयोग न हो रहा हो तो नल बन्द रखें तथा जल उपयोग करते समय नल का प्रवाह मध्यम या धीमा रखें।
  • वाश बेसिन / स्नानघर/ रसोई/ वाटर बोतल के अपशिष्ट जल का उपयोग घर के पौधों एवं उद्यान में करें।


3.कुटुंब प्रबोधन गतिविधि 

यह गतिविधि परिवार को एकजुट करने के लिए बनाई गई है। संयुक्त परिवार, संगठित परिवार, सुरक्षित परिवार, सम्पन्न परिवार, व्यवस्थित परिवार, आनंदित परिवार, सुस्वास्थ्य परिवार आदि प्रमुख विषय  कुटुम्ब प्रबोधन का प्रमुख लक्ष्य है ।  अर्थात आज प्रत्येक परिवार का सदस्य इस भाग दोड़ जिंदेगी मे अपने परिवार को भूलता जा रहा है। वर्तमान समय मे अनेक  परिवारो मे अनेक  विकृति, भारतीय संस्कृति, परम्परा ,एकल परिवार, पश्चिमी संस्कार हावी होने पर सुरक्षित, सुन्दर, शान्त परिवार टूट रहे है । वर्तमान मे परिवार, कुटुम्ब को साथ लेकर चलना,  रहन-सहन, भोजन, कार्यक्रम,  मार्गदर्शन, सम्मान, आध्यात्मिक धार्मिक कार्य आदि अनेक कार्य संयुक्त परिवार मिलकर करना कठिन देखाई देता है।  समय प्रबन्ध,  व्यवस्था, परिवार मे संख्या कम होना, विभिन्न व्यवसाय,  नोकरी आदि के कारण भी कोई समय  समस्या होती है । अनेक समस्या देखाई दे रही है । इसलिए संघ ने इसे अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुये इस गतिविधि का निर्माण किया है। जिसके माध्यम से परिवार का प्रत्येक सदस्य एकजुट हो और परिवार पर आने वाली कोई भी समस्या हो। उसका निवारण परिवार का प्रत्येक सदस्य मिलकर उसे अपनी ज़िम्मेदारी समझकर उसका हल निकाले और प्रत्येक परिवार मे आ रही सभी समस्या का हल हो। भविष्य के युवा पीडी को भी सही दिशा, मार्गदर्शन मिले ,परिवार-स्वजन मे भी संस्कार, व्यवहार, श्रद्धा ,सम्मान बना रहे ,परिवार टूटे नही यही इसका उद्देश्य है । सभी के साथ समन्वय, सम्पर्क के साथ संयुक्त कुछ कार्य परिवार, कुटुम्ब करे ,मिले, स्नेह, प्रेम, श्रद्धा-सुमन आदि से परिवार सम्पन्न,  खुशी, आनंदित, भारतीय संस्कृति आदि भी संरक्षण-संवर्द्धन होता है । समय समय पर कुटुम्ब प्रबोधन वर्तमान समय का मांग है। ऐसा करने के लिए संघ ने ये अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुये इस समस्या का समाधान निकाला है। संघ ने कुटुम्ब प्रबोधन के कार्य को 6 बिंदुओं- भजन, भोजन, भवन, भाषा, भूषा और भ्रमण के आधार पर चलने की बात कही। परिवार की आत्मीयता की परंपरा बनी रहनी चाहिए। परिवार के लोग दिन में एक बार साथ मिलकर भोजन करें, परिवार के अंदर अपनी मातृभाषा का प्रयोग हो, हमारी वेशभूषा हमारे संस्कारों को प्रदर्शित करने वाली हो, हमारा भवन ऐसा हो जो लगे यह एक आदर्श हिन्दू घर है। समाज को आज इन विषयों की जानकारी की, जागरूकता की आवश्यकता है। परिवार के सदस्यों में एक दूसरे के प्रति दायित्व की अनुभूति रहे। धीरे-धीरे यह विषय समाज में बढ़ता जाए और एक आदर्श परिवार की संकल्पना साकार हो। आज यह गतिविधि प्रत्येक परिवार तक पहुच रही है ऐसा संघ का मानना है।


4. समग्र ग्राम विकास गतिविधि

ग्राम विकास गतिविधि यह गतिविधि ग्राम विकास को लेकर बनाई गयी है। अर्थात ग्राम के जीवन को वापस कैसे ला सकते है। इस डिजिटल युग मे हम अपनी पुरानी सभ्यता को भूलते जा रहे है। हमारे सामने एक काल आया था अभी विगत वर्षो मे जिसको करोना काल का नाम दिया गया है उसमे हमे अपनी ग्रामीण पद्धति पर आधारित जीवनशैली को सबसे उत्तम प्राथमिकता मिली थी। यही कारण है कि संघ ने भी अपनी पुरानी ग्रामीण पद्धति जीवनशैली को फिर से उजगार बनाने के लिए तैयार किया है। इस गतविधि मे निम्न इकाई है : जैवीक खेती ,जैविक उत्पाद ,आर्थिक स्वावलम्बन प्रमुख ,गौ संवर्धन एवं संरक्षण प्रमुख , शिक्षा प्रमुख और सुरक्षा प्रमुख आदि है। युवाओं से भी आह्वान है कि 24 घंटे गांव में रहो, यह कार्य देखो व सहभागी बनो।


5. गौ सेवा गतिविधि 

यह गतिविधि गौ सेवा के लिए बनाई गयी है। इसका मुख्य उद्देश्य है, गौ सेवा और गोबर से निर्मित उत्पाद और कृषि के लिए गोबर और गो मूत्र का केसे प्रयोग करे। सेवा के साथ स्वावलंबन पर भी बल दिया जाता है। जिससे सेवा प्राप्त करने वाला स्वावलंबी बने।


6. धर्मजागरण गतिविधि 

इस गतिविधि के माध्यम से अपने धर्म का जागरण कैसे करना है और अपनी संस्कृति को कैसे बढ़ावा देना है। इसके अंतर्गत यह सब आता है।


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