शिवाजी महाराज का ऐतिहासिक पत्र राजा जयसिंह के नाम

शिवाजी महाराज का ऐतिहासिक पत्र राजा जयसिंह के नाम

ऐ सरदारों के सरदार, राजाओं के राजा, भारतोद्यान की क्यारियों के व्यवस्थापक! ऐ रामचन्द्र के चैतन्य हृदयांश, तुझसे राजपूतों की ग्रीवा उन्नत है। तुझसे बाबर वंश की राज्यलक्ष्मी अधिक प्रबल हो रही है, शुभ भाग्य से तुझे सहायता (मिलती) है। ऐ जबान प्रबल भाग्य, वृद्ध बुद्धि वाले जयशाह! सेवा (शिवा) का प्रणाम तथा आशीष स्वीकार कर। जगत् का जनक तेरा रक्षक हो, तुझको धर्म एवं न्याय का मार्ग दिखावे।

मैंने सुना है तू मुझ पर आक्रमण करने (एवं) दक्षिण प्रान्त को विजय करने आया है। हिन्दुओं के हृदय तथा आँखों के रक्त से तू संसार में लाल मुँह वाला हुआ चाहता है। पर तू यह नहीं जानता कि यह कालिख लग रही है क्योंकि इससे देश तथा धर्म को आपत्ति हो रही है यदि तू क्षणमात्र गिरेबान में सिर डाले और यदि तू अपने हाथ और दामन पर दृष्टि करे तो तू देखेगा कि यह रंग किसके खून का है और इसका रंग दोनों लोक में क्या है। यदि तू स्वयं दक्षिण-विजय करने आता (तो) मेरे सिर और ऑख तेरे रास्ते के बिछौने बन जाते। मैं तेरे हमरकाब (घोड़े के साथ) सेना लेकर चलता (और) एक सिरे से दूसरे सिरे तक भूमि तुझे सौंप देता पर तू औरगजेब की ओर से भद्रजनों के धोखा देने वाले के बहकावे में पड़कर आया है। अब मैं नहीं जानता कि तेरे साथ कौन खेल खेलूं। यदि मैं तुझसे मिल जाऊँ तो वह पुरुषत्व नहीं है, पुरुष लोग समय की सेवा नहीं करते, सिंह लोमड़ीपना नहीं करते। और यदि मैं तलवार तथा कुठार से काम लेता हूँ तो दोनों ओर हिन्दुओं को ही हानि पहुँचती है।

बड़ा खेद तो यह है कि मुगलों का खून पीने के अतिरिक्त किसी अन्य कार्य के निमित्त मेरी तलवार को म्यान से निकलना पड़े। यदि इस लड़ाई के लिए तुर्क आए होते तो शेर मर्दों के निमित्त शिकार आए होते! पर वह न्याय तथा धर्म से वंचित पापी जो कि मनुष्य के रूप में राक्षस है, जब अफजलखाँ से कोई श्रेष्ठता न प्रगट हुई, न शाइस्ताखाँ की कोई योग्यता देखी तो तुझको हमारे युद्ध के निमित्त नियत करता है। क्योंकि वह स्वयं तो हमारे आक्रमण को सहने की योग्यता रखता नहीं। चाहता है कि हिन्दुओं के दल में कोई बलशाली संसार में न रह जाए, सिंहगण आपस में ही घायल तथा शांत हो जाएँ जिससे कि गीदड़ जंगल के सिंह बन बैठें। यह गुप्तभेद तेरे सिर में क्यों नहीं बैठता?

प्रतीत होता है कि उसका जादू तूझे बहकाए रहता है। तूने संसार में बहुत भला-बुरा देखा है। उद्यान से तूने फूल और काँटे दोनों ही संचित किए हैं। यह नहीं चाहिए कि तू हम लोगों से युद्ध करे (और) हिन्दुओं के सिरों को धूल में मिलावे। ऐसी परिपक्व कर्मण्यता पर भी जवानी मत कर। प्रत्युत सादी के इस कथन को स्मरण कर सब स्थानों पर घोड़ा नहीं दौड़ाया जाता। कहीं-कहीं ढाल भी फेंककर भागना उचित होता है व्याघ्र मृग आदि पर व्याघ्रता करते हैं, सिंहों के साथ गृह-युद्ध में प्रवृत्त नहीं होते। यदि तेरी काटने वाली तलवार में पानी है, यदि तेरे कूदने वाले घोड़े में दम है तो तुझको चाहिए कि धर्म के शत्रु पर आक्रमण करे (एवं) इस्लाम की जड़-मूल खोद डाले। अगर देश का राजा दाराशिकोह होता तो हम लोगों के साथ भी कृपा तथा अनुग्रह के बर्ताव होते। पर तूने जसवन्त सिंह को धोखा दिया (तथा) हृदय में ऊँच-नीच नहीं सोचा। लोमड़ी का खेल खेलकर अभी अघाया नहीं है, सिंहों से युद्ध के निमित्त ढिठाई करके आया है। तुझको इस दौड़-धूप में से क्या मिलता है, तेरी तृष्णा मुझे मृगतृष्णा दिखती है। तू उस व्यक्ति के सदृश है जो कि बहुत श्रम करता है और किसी सुन्दरी को अपने हाथ में लाता है, पर उसकी सौंदर्य—वाटिका का फल स्वयं नहीं खाता, प्रत्युत उसको प्रतिद्वन्दियों के हाथ में सौंप देता है।

तू उस नीच की कृपा पर क्या अभिमान करता है? तू तो जुझारसिंह के काम का परिणाम जानता है। तू जानता है कि कुमार छत्रपाल पर वह किस प्रकार से आपत्ति पहुँचाना चाहता था। तू जानता है कि दूसरे हिन्दुओं पर भी उस दुष्ट के हाथ से क्या-क्या विपत्तियाँ नहीं आई। मैंने माना कि तूने उससे संबंध जोड़ लिया और कुल की मर्यादा उसके सिर तोड़ी है (पर) उस राक्षस के निमित्त इस बंधन का जाल क्या वस्तु है? क्योंकि वह बंधन तो इजारबंध से अधिक दृढ़ नहीं है। वह तो अपने इष्ट साधन के लिए भाई के रक्त (तथा) बाप के प्राणों से भी नहीं डरता। यदि तू राजभक्ति की दुहाई दे तो तू स्मरण कर कि तूने शाहजहाँ के साथ क्या बर्ताव किया। यदि तुझको विधाता के यहाँ से बुद्धि का कुछ भाग मिला है, तू पौरुष तथा पुरुषत्व की बड़ाई मारता है तो तू अपनी जन्म-भूमि के संताप से तलवार को तपा (तथा) अत्याचार से दुखितों के आँसू से पानी दे | यह अवसर हम लोगों के आपस में लड़ने का नहीं है क्योंकि हिन्दुओं पर बड़ा कठिन कार्य पड़ा है। हमारे देश, धन, देव-देवालय तथा पवित्र देवपूजक इन सब पर उसके काम से आपत्ति पड़ रही है, (तथा) उनका दु:ख सीमा तक पहुँच गया है। यदि कुछ दिन उसका काम ऐसा ही चलता रहा। हम लोगों का कोई चिह्न पृथ्वी पर न रह जाएगा।

बड़े आश्चर्य की बात है मुट्ठी भर मुगल हमारे बड़े इस देश पर प्रभुता जमावें। यह प्रबलता पुरुषार्थ के कारण नहीं है। यदि तुझको समझ की ऑख है तो देख वह हमारे साथ कैसी धोखे की चालें चलता है और अपने मुँह पर कैसा-कैसा रंग रंगता है। हमारे पाँवों को हमारी ही सॉकलों से जकड़ता है (तथा) हमारे सिरों को हमारी ही तलवारों से काटता है। हम लोगों को हिन्दू, हिन्दुस्थान तथा हिन्दू-धर्म के निमित्त अत्यधिक प्रयत्न करना चहिए। हमको चाहिए कि हम यत्न करें और कोई राय स्थिर करें (तथा) अपने देश के लिए खूब हाथ पाँव मारें। तलवार पर और तदबीर पर पानी दें और तुकों का जवाब तुर्की में दें। यदि तू जसवन्त सिंह से मिल जाए और हृदय से उस कपटकलेवर के खण्ड पड़ जाए (तथा) राणा से भी एकता का व्यवहार कर ले तो आशा है कि बड़ा काम निकल जाए | चारों तरफ से धावा करके तुम लोग युद्ध करो। उस साँप को सिर के पत्थर के नीचे दबा लो कि कुछ दिनों तक वह अपने ही परिणाम की सोच में पड़ा रहे (और) दक्षिण-प्रांत की ओर अपना जाल न फैलाए (और) मैं इस ओर भाला चलाने वाले वीरों के साथ इन दोनों बादशाहों का भेजा निकाल डालूं। मेघों की भाँति गरजने वाली सेना से मुगलों पर तलवार का पानी बरसाऊँ। दक्षिण देश के पटल पर एक सिरे से दूसरे तक इस्लाम का नाम तथा चिह्न धो डालूं। इसके पश्चात् कार्यदक्ष शूरों तथा भाला चलाने वाले वीरों के साथ लहरें लेती तथा कोलाहल मचाती हुई नदी की भाँति दक्षिण के पहाड़ों से निकलकर मैदान में आऊँ और अत्यन्त शीघ्र तुम लोगों की सेवा में उपस्थित होऊँ और फिर तुम लोगों का हिसाब पूछू फिर चारों ओर से घोर युद्ध उपस्थिति कर और लड़ाई का मैदान उसके निमित्त संकीर्ण कर दें| हम लोग अपनी सेनाओं की तरंगों को दिल्ली में उस जर्जरीभूत युद्ध में पहुँचा दें। उसके नाम में ना तो औरंग रह जाए और न जेब । ना उसकी अत्याचारी तलवार और न कपट का जाल।

हम लोग शुद्ध रक्त से भरी हुई एक नदी बहा दें अपने पितरों की आत्माओं का तर्पण करें | न्यायपरायण प्राणों के उत्पन्न करने वाले की सहायता से हम लोग उसका स्थान पृथ्वी के नीचे बना दें। यह काम बहुत कठिन नहीं है। हृदय, हाथ तथा आँख की आवश्यकता है। दो हृदय एक हो जाएँ तो पहाड़ को तोड़ सकते हैं। समूह के समूह को तितर-बितर कर सकते हैं। इस विषय में मुझको बहुत कुछ कहना है, जिनको पत्र में लाना युक्ति सम्मत नहीं है। मैं चाहता हूँ कि हम लोग परस्पर बातचीत कर लें जिससे कि व्यर्थ में दुख और श्रम ना मिले। यदि तू चाहे तो मैं तुझसे साक्षात् बातचीत करने आऊँ (और) तेरी बातों को श्रवण गोचर करूं । हम लोग बात रूपी सुन्दरी का मुख एकान्त में खोलें।  मैं उसके बालों की उलझन पर कघी फेरूं | यत्न के दामन पर हाथ धर उस उन्मत्त राक्षस पर कोई मंत्र चलावें। अपने कार्य की ओर का कोई रास्ता निकालें (और) दोनों लोकों में अपना नाम ऊँचा करें।

तलवार की शपथ, घोड़े की शपथ, देश की शपथ, तथा धर्म की शपथ करता हूँ कि इससे तुझ पर कदापि आपत्ति नहीं आएगी। अफजल खाँ के परिणाम से तू शंकित मत हो क्योंकि उसमें सच्चाई नहीं थी | बारह सौ बड़े लड़ाके हब्शी सवार वह मेरे लिए घात में लगाए हुए था। यदि मैं पहिले ही उस पर हाथ न फेरता तो इस समय यह पत्र तुझको कौन लिखता? मुझको तुझसे ऐसे काम की आशा नहीं है। तुझको भी स्वयं मुझसे कोई शत्रुता नहीं हैं यदि मैं तेरा उत्तर यथेष्ट पाऊँ तो तेरे समक्ष रात्रि को अकेले आऊँ। मैं तुझको वे गुप्त पत्र दिखाऊँ जो कि मैंने शाइस्ताखाँ की जेब से निकाल लिए थे। तेरी आँखों पर मैं संशय-नाशक जल छिड़कू उसके पश्चात् तेरा जवाब लूं। यदि यह पत्र तेरे मन के अनुकूल न पड़े (तो फिर) मैं हूँ और मेरी काटने वाली तलवार तथा तेरी सेना। कल, जिस समय सूर्य अपना मुँह सन्ध्या में छिपा लेगा उस समय मेरा अर्धचन्द्र (खड्ग) म्यान को फेंक देगा। बस तेरा भला हो।

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