राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2025

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2025


इस बार अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा, बेंगलुरु में जो तीन विषय प्रस्ताव, संकल्प व माननीय सरकार्यवाह जी के वक्तव्य के रूप में आए, उनको इस शाखा पुस्तिका में दिया गया है। अपेक्षा है, कि सभी शाखाओं में ये तीनों विषय अक्षरशः पढ़े जाएं और उन पर चर्चा भी हो। एक दिन में एक विषय ही लिया जाए।


विषय-

1. संघ शताब्दी के उपलक्ष्य में संकल्प
2. प्रस्ताव बांग्लादेश के हिन्दू समाज के साथ एकजुटता से खड़े रहने का आवाहन
3. महिला स्वतंत्रता सेनानी महारानी अबका के जन्म की 500वीं वर्षगांठ के अवसर पर माननीय सरकार्यवाह जी का वक्तव्य । 


चर्चा का विषय-1

संघ शताब्दी के उपलक्ष्य में संकल्प

विश्व शांति और समृद्धि के लिए समरस और संगठित हिन्दू समाज का निर्माण


अनंत काल से ही हिंदू समाज एक प्रदीर्घ और अविस्मरणीय यात्रा में साधनारत रहा है, जिसका उद्देश्य मानव एकता और विश्व कल्याण है। तेजस्वी मातृशक्ति सहित संतों, धर्माचार्यों, तथा महापुरुषों के आशीर्वाद एवं कर्तृत्व के कारण हमारा राष्ट्र कई प्रकार के उतार- चढ़ावों के उपरांत भी निरंतर आगे बढ़ रहा है।

काल के प्रवाह में राष्ट्र जीवन में आए अनेक दोषों को दूर कर एक संगठित, चारित्र्त्य- संपन्न और सामर्थ्यवान राष्ट्र के रूप में भारत को परम वैभव तक ले जाने हेतु परम पूजनीय डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने सन् 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य प्रारम्भ किया। संघकार्य का बीजारोपण करते हुए, डॉ. हेडगेवार ने दैनिक शाखा के रूप में व्यक्ति-निर्माण की एक अनूठी कार्यपद्धति विकसित की, जो हमारी सनातन परंपराओं व मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र- निर्माण का निःस्वार्थ तप बन गया। डॉ. हेडगेवार जी के जीवनकाल में ही इस कार्य का एक राष्ट्रव्यापी स्वरूप विकसित हो गया। द्वितीय सरसंघचालक पूजनीय श्री गुरुजी (माधव सदाशिव गोलवलकर) के दूरदर्शी नेतृत्व में राष्ट्रीय जीवन के विविध क्षेत्रों में शाश्वत चिंतन के प्रकाश में कालसुसंगत युगानुकूल रचनाओं के निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।


सौ वर्ष की इस यात्रा में संघ ने दैनिक शाखा द्वारा अर्जित संस्कारों से समाज का अटूट विश्वास और स्नेह प्राप्त किया। इस कालखंड में संघ के स्वयंसेवकों ने प्रेम और आत्मीयता के बल पर मान-अपमान और राग-द्वेष से ऊपर उठकर सबको साथ लेकर चलने का प्रयास किया। संघकार्य की शताब्दी के अवसर पर हमारा कर्तव्य है, कि पृय संत और समाज की स%जन शक्ति जिनका आशीर्वाद और सहयोग हर परिस्थिति में हमारा संबल बना, जीवन समर्पित करने वाले निःस्वार्थ कार्यकर्ता और मौन साधना में रत स्वयंसेवक परिवारों का स्मरण करें।

अपनी प्राचीन संस्कृति और समृद्ध परंपराओं के चलते सौहार्दपूर्ण विश्व का निर्माण करने के लिए भारत के पास अनुभवजनित ज्ञान उपलब्ध है। हमारा चिंतन विभेदकारी और आत्मघाती प्रवृत्तियों से मनुष्य को सुरक्षित रखते हुए चराचर जगत में एकत्व की भावना तथा शांति सुनिश्चित करता है।


संघ का यह मानना है कि धर्म के अधिष्ठान पर आत्मविश्वास से परिपूर्ण संगठित सामूहिक जीवन के आधार पर ही हिंदू समाज अपने वैश्विक दायित्व का निर्वाह प्रभावी रूप से कर सकेगा। अतः हमारा कर्तव्य है कि सभी प्रकार के भेदों को नकारने वाला समरसता युक्त आचरण पर्यावरणपूरक जीवनशैली पर आधारित मूल्याधिष्ठित परिवार, 'स्व' बोध से ओतप्रोत और नागरिक कर्तव्यों के लिए प्रतिबद्ध समाज का चित्र खड़ा करने के लिए हम सब संकल्प करते हैं। हम इसके आधार पर समाज के सब प्रश्नों का समाधान, चुनौतियों का उत्तर देते हुए भौतिक समृद्धि एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण समर्थ राष्ट्रजीवन खड़ा कर सकेंगे।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सज्जन शक्ति के नेतृत्व में संपूर्ण समाज को साथ लेकर विश्व के सम्मुख उदाहरण प्रस्तुत करने वाला समरस और संगठित भारत का निर्माण करने हेतु संकल्प करती है। 


चर्चा का विषय-2

प्रस्ताव बांग्लादेश के हिन्दू समाज के साथ एकजुटता से खड़े रहने का आवाहन


अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा, बांग्लादेश में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा लगातार हो रही सुनियोजित हिंसा, अन्याय और उत्पीड़न पर गहरी चिंता व्यक्त करती है। यह स्पष्ट रूप से मानवाधिकार हनन का गम्भीर विषय है।

बांग्लादेश में वर्तमान सत्ता पलट के समय मठ-मंदिरों, दुर्गा पूजा पंडालों और शिक्षण संस्थानों पर आक्रमण मूर्तियों का अनादर, नृशंस हत्याएँ, संपत्ति की लूट, महिलाओं के अपहरण और अत्याचार, बलात् मतांतरण जैसी अनेक घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं। इन घटनाओं को केवल राजनीतिक बताकर इनके मजहबी पक्ष को नकारना सत्य से मुंह मोड़ने जैसा होगा, क्योंकि अधिकतर पीड़ित, हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से ही हैं।


बांग्लादेश में हिंदू समाज, विशेष रूप से अनुसूचित जाति तथा जनजाति समाज का इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा उत्पीड़न कोई नई बात नहीं है। बांग्लादेश में हिन्दुओं की निरंतर घटती जनसंख्या (1951 में 22 प्रतिशत से वर्तमान में 7.95 प्रतिशत) दर्शाती है कि उनके सामने अस्तित्व का संकट है। विशेषकर, पिछले वर्ष की हिंसा और घृणा को जिस तरह सरकारी और संस्थागत समर्थन मिला, वह गंभीर चिंता का विषय है। साथ ही, बांग्लादेश से लगातार हो रहे भारत विरोधी वक्तव्य दोनों देशों के सम्बन्धों को गहरी हानि पहुँचा सकते हैं।

कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियाँ जानबूझकर भारत के पड़ोसी क्षेत्रों में अविश्वास और टकराव का वातावरण बनाते हुए एक देश को दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर अस्थिरता फैलाने का प्रयास कर रहीं हैं। प्रतिनिधि सभा, चिंतनशील वर्गों और अंतरराष्ट्रीय मामलों से जुड़े विशेषज्ञों से अनुरोध करती है कि वे भारत विरोधी वातावरण, पाकिस्तान तथा 'डीप स्टेट' की सक्रियता पर दृष्टि रखें और इन्हें उजागर करें।


प्रतिनिधि सभा इस तथ्य को रेखांकित करना चाहती है कि इस सारे क्षेत्र की एक साँझी संस्कृति, इतिहास एवं सामाजिक संबंध हैं, जिसके चलते एक जगह हुई कोई भी उथल-पुथल सारे क्षेत्र में अपना प्रभाव उत्पन्न करती है। प्रतिनिधि सभा का मानना है कि सभी जागरूक लोग भारत और पड़ोसी देशों की इस साँझी विरासत को दृढ़ता देने की दिशा में प्रयास करें।

यह उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश के हिन्दू समाज ने इन अत्याचारों का शांतिपूर्ण, संगठित और लोकतांत्रिक पद्धति से साहसपूर्वक विरोध किया है। यह भी प्रशंसनीय है कि भारत और विश्वभर के हिंदू समाज ने उन्हें नैतिक और भावनात्मक समर्थन दिया है। भारत सहित शेष विश्व के अनेक हिंदू संगठनों ने इस हिंसा के विरुद्ध आंदोलन एवं प्रदर्शन किए हैं और बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा व सम्मान की माँग की है। इसके साथ ही विश्व भर के अनेक नेताओं ने भी इस विषय को अपने स्तर पर उठाया है।


भारत सरकार ने बांग्लादेश के हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के साथ खड़े रहने और उनकी सुरक्षा की आवश्यकता को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है। उसने यह विषय बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ-साथ कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठाया है प्रतिनिधि सभा भारत सरकार से अनुरोध करती है कि वह बांग्लादेश के हिंदू समाज की सुरक्षा, गरिमा और सहज स्थिति सुनिश्चित करने के लिए वहाँ की सरकार से निरतंर संवाद बनाए रखने के साथ साथ हर सम्भव प्रयास जारी रखे।

भारत सरकार ने बांग्लादेश के हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के साथ खड़े रहने और उनकी सुरक्षा की आवश्यकता को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है। उसने यह विषय बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ-साथ कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठाया है। प्रतिनिधि सभा भारत सरकार से अनुरोध करती है कि वह बांग्लादेश के हिंदू समाज की सुरक्षा, गरिमा और सहज स्थिति सुनिश्चित करने के लिए वहाँ की सरकार से निरतंर संवाद बनाए रखने के साथ साथ हर सम्भव प्रयास जारी रखे। 


चर्चा का विषय-3

भारत की अप्रतिम महिला स्वतंत्रता सेनानी महारानी अबका के जन्म की 500वीं वर्षगांठ के अवसर पर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसवाले जी का वक्तव्य


भारत की अप्रतिम महिला स्वतंत्रता सेनानी महारानी अबका के जन्म की 500वीं वर्षगांठ के अवसर पर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी का वक्तव्य भारत की महान महिला स्वतंत्रता सेनानी उल्लाल महारानी अवका एक कुशल प्रशासक, अजेय रणनीतिकार और महापराक्रमी शासक थीं। उन्होंने उल्लाल संस्थान दक्षिण कन्नड़ (कर्नाटक) पर सफलतापूर्वक शासन किया था। उनके जन्म की 500वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उनकी अजेय विरासत को हृदय से विनम्र श्रद्धासुमन अर्पण करता है।

उस समय विश्व की अजेय मानी जाने वाली शक्तियों में से एक पुर्तगाली आक्रमणकारियों को उन्होंने अपने शासनकाल में बार-बार परास्त किया था और अपने रा%य की स्वतंत्रता बनाए रखी। अपनी कूटनीतिक निपुणता तथा उत्तर केरल के राजा सामुद्री (जमोरिन) जैसे शासकों से किए सामरिक संधि के चलते उन्हें यह सफलता बनाए रखना सम्भव हुआ। उनकी रणनीति, शौर्य और निर्भीक नेतृत्व के चलते उन्हें इतिहास के पृष्ठों में" अभवारानी" यह संज्ञा प्राप्त हुई। महारानी अबका ने भारत की सर्व समावेशी परंपरा का निर्वाह करते हुए कई शिव मंदिरों व तीर्थ स्थलों का भी विकास किया था। उन्होंने अपने शासनकाल में सभी मतावलंबियों को समान रूप से सम्मान और समाज के सभी वर्गों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित किया था। इसी कारण उनकी सद्भावना व एकता की विरासत कर्नाटक में यक्षगान, लोकगीतों व लोक-नृत्य द्वारा उनके प्रेरणादायक प्रसंगों के माध्यम से आज भी गूंज रही है।


भारत सरकार ने महारानी अवका के अप्रतिम शौर्य, देश और धर्म के प्रति समर्पण व कुशल प्रशासन को सम्मान देते हुए 2003 में उनके नाम पर एक डाक टिकट जारी कर उनकी जीवनी को संपूर्ण देश के जनमानस में प्रसारित किया था। एक विजयी जल सेना का संचालन करने की क्षमता से प्रेरणा लेने के लिए ही 2009 में एक गश्ती पोत का नामकरण रानी अबका के नाम पर किया गया था।

महारानी अबका का जीवन संपूर्ण देश के नागरिकों के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है। उनके जन्म की 500 वीं जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस आदर्श व्यक्तित्व को श्रद्धासुमन अर्पित करता है तथा संपूर्ण समाज का आह्वान करता है कि उनके तेजस्वी जीवन से प्रेरणा लें और राष्ट्र निर्माण के महान कार्य में अपना प्रभावी योगदान दें।


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