राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : संघ शिक्षा वर्ग
1927 से हुआ शुभारम्भ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा संगठन होने के साथ एकमात्र ऐसा स्वैच्छिक संगठन है जो अपने सदस्यों को प्रशिक्षण देकर निपुण व निष्ठावान बनाता है। ऐसा इसलिए ताकि वे संघकार्य को दक्षता के साथ आग बढ़ा सकें, नये लोगों को संगठन से जोड़ सकें, और स्वयं उस वैचारिक प्रतिबद्धता का परिचय आजीवन देते चलें जिसके कारण स्वयंसेवक की पहचान है, देश-दुनिया में सम्मान है। कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने का काम संघ में 1927 में शुरू हुआ। संघ के आद्य सरसंघचालक परम पूजनीय डॉक्टर साहब को लगा कि प्रशिक्षण द्वारा मजबूत कार्यकर्ता बनाये जायें,यें उन्हें संघ की ऐसी शिक्षा दी जाये कि वे संघ का मर्म आत्मसात कर सकें। वे समाज में संघ के आदर्श स्वरूप का चित्र अपने व्यवहार-आचरण से प्रस्तुत कर लोगों को नेतृत्व प्रदान करें। हिन्दू समाज ऐसे निस्वार्थ कार्यकर्ताओं के पीछे चलने में धन्यता माने और स्वयं भी वैसा बनने को लालायित हो ।
संघ शिक्षा वर्ग की शुरुआत 1927 में नागपुर में हुई थी । उस दौरान यह तीन सप्ताह तक चले थे और इन्हें ग्रीष्मकालीन वर्ग कहा गया । फिर कुछ सालों बाद इनका नाम ‘अधिकारी शिक्षा वर्ग’ अर्थात ‘आफिसर्स ट्रेनिंग कैंप’ (ओटीसी) हो गया । पहले प्रशिक्षण शिविर में 17 स्वयंसेवक शमिल हुए। मोहिते के बाड़े में सुबह-शाम शारीरिक शिक्षण दिया जाता, दोपहर को बाड़े के तलघरों में वैचारिक-बौद्धिक शिक्षण चलता था । आगे के वर्षों में ये प्रशिक्षण नागपुर के साथ पुणे में भी होने लगा और इसकी अवधि 40 दिन की कर दी गयी । बाद में वर्ष 1950 में इन वर्गों को ‘संघ शिक्षा वर्ग’ के नाम से जाना जाने लगा । कई वर्षों तक प्रारंभिक व्यवस्था में भोजन आसपास के घरों से आता था और स्थानीय पाठशालाओं में शिक्षार्थियों का निवास रहता था । यह सभी निशुल्क उपलब्ध होते थे। इसके अलावा वर्गों के दौरान चिकित्सा, बिजली, जल इत्यादि के खर्चों के लिए वर्ग में शामिल शिक्षार्थियों से शुल्क भी लिया जाता था । नागपुर में वर्गों की सफलता के बाद यह 1934 में पुणे में आयोजित होने लगे। 1934 में महकर नामक एक तीसरे स्थान पर भी ओटीसी लगानी पड़ी थी । फिर अगले साल से पुणे में प्रथम और द्वितीय वर्ष के वर्ग शुरू हो गये। ग्रीष्मकालीन छुट्टियों के सुविधा के अनुसार पुणे का वर्ग 22 अप्रैल से 2 जून तक और नागपुर का वर्ग 1 मई से 10 जून तक हुआ करता था । डॉ. हेडगेवार 15 मई तक पुणे में और उसके बाद नागपुर में प्रवास करते थे। पुणे के बाद यह वर्ग नासिक में शुरू हुए। इस बीच 1938 में महाराष्ट्र से बाहर लाहौर में भी वर्गों की शुरुआत हुई। डॉक्टर जी के जीवन काल में पंजाब में भी ओटीसी लगनी शुरू हुई थी । यद्यपि बोलचाल में इन्हें अब भी ‘ओटीसी’ ही कह देते हैं। पर इनका अधिकृत नाम ‘संघ शिक्षा वर्ग’ है। 1939 के आसपास यह वर्ग हेडगेवार स्मृति मंदिर रेशमबाग, नागपुर में आयोजित होने लगे। तब से अब तक यह संघ शिक्षा वर्ग यही लगते है। यह एकड़ भूमि डॉ. हेडगेवार ने ₹700 में खरीदी थी । इसके बाद जैसे-जैसे से कार्य बढ़ता गया, अन्य प्रान्तों में प्रथम और द्वितीय वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग आयोजित होने लगे। अब केवल तृतीय वर्ष की शिक्षा के लिए स्वयंसेवसेकों का नागपुर में आना अनिवार्य किया गया । 1940 के नागपुर में हुये संघ शिक्षा वर्ग में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक के सब प्रान्तों से शिक्षार्थी स्वयंसेवक उपस्थित थे। दुर्भाग्यवश इसी साल के शिक्षा वर्ग की समाप्ति के केवल कुछ दिनों के बाद ही यानी 21 जून 1940 को संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का देहावसान हो गया ।
पहले नागपुर का वर्ग 40 दिनों का होता था जो कि तृतीय वर्ष के रूप में अब 25 दिनों का होता है। आजादी से पहले के कुछ वर्षों तक यह कुछ समय के लिए 30 दिनों के भी रहे। फिलहाल प्रथम वर्ष और द्वितीय वर्ष देशभर में होते हैं, जबकि अंतिम तृतीय वर्ष रेशिमबाग, नागपुर में आयोजित होता है। वर्तमान में 25 दिनों के दौरान संघ शिक्षा वर्ग के प्रतिभागियों द्वारा संघ के पूर्ण गणवेश में पथ संचलन भी निकाला जाता है। वर्ग के समारोप का कार्यक्रम नागपुर शहर द्वारा आयोजित होता है। साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक का उद्बोधन होता है जो कि तात्कालिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विषयों पर संघ के दृष्टिकोण का सारगर्भित विवरण होता है। इनका सामाजिक मुद्दों जिनसे भारत और उसके नागरिकों का सीधा सरोकार होता है, उस पर सरसंघचालक द्वारा संघ की रूपरेखा पेश की जाती है। इसमें संघ के स्वयंसेवकों को भी व्यापक दृष्टि प्राप्त होती है। इस दौरान मुख्य अतिथि के तौर पर किसी विशिष्ट व्यक्ति को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है।
प्राथमिक वर्ग
जैसा ऊपर बताया गया, 1947 तक ओटीसी 40 दिन के होते थे। वर्ष 1949 में जब संघ पर से प्रतिबंध हटा, तो एक कम अवधि के प्राथमिक प्रशिक्षण की आवश्यकता अनुभव की गयी, जिसे प्राप्त कर स्वयंसेवक नये स्थानों पर शाखा खोल सकें, संघ के कार्यक्रम कर सकें। तो 10 दिन की अवधि का प्राथमिक शिक्षा वर्ग प्रारंभ किया गया । इससे तेजी के साथ शाखा-विस्तार में मदद मिली । फिर दूसरे प्रतिबंध (1975-77) के बाद प्राथमिक वर्ग एक सप्ताह का कर दिया गया ।
संघ प्रशिक्षण की नई रचना
संघ शिक्षा वर्ग जो अब तक प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष, तृतीय वर्ष के रूप में होते थे अब उनमें कुछ परिवर्तन कर दिया गया है। संघ में अब स्वयंसेवक के प्रवेश के समय तीन दिन का प्रशिक्षण दिया जाएगा। तीन दिन के प्रशिक्षण लेने वाले स्वयंसेवकों को सात दिन का प्राथमिक शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण दिया जाएगा। वर्ष 2024 से अब प्राथमिक वर्ग सात दिवसीय, इसके पश्चात पंद्रह दिवसीय कार्यकर्ता विकास वर्ग एक एवं फिर कार्यकर्ता विकास वर्ग दो होगा। वर्ग एक, देश में विभिन्न स्थानों पर आवश्यकतानुसार संख्या में व वर्ग दो केवल नागपुर में पच्चीस दिवसीय होगा। इन वर्गों में खासतौर पर व्यावहारिक प्रशिक्षण पर जोर दिया गया है।
अहर्ता
किसी को भी एकदम सरलता से इनमें प्रवेश नहीं मिलता । प्रथम वर्ष में प्रवेश हेतु साधारणत: जो शर्तें हैं, वे इस प्रकार हैं – यदि पढ़ता है तो कक्षा 10 की परीक्षा दी हो, अन्यथा आयु 15 वर्ष हो, शाखा टोली का सदस्य हो, प्राथमिक शिक्षा वर्ग किया हुआ हो।
अपना खर्च, अपना गणवेश
संघ के सभी शिविरों में स्वयंसेवक खुद के खर्च से गणवेश (यूनिफॉर्म) बनवाते हैं, शिविर में रहने-खाने का शुल्क देते हैं, आने-जाने का किराया वहन करते हैं, ये प्रामाणिकता तथा निस्वार्थता का संस्कार डालने के लिए आवश्यक है। इसने संघ को आर्थिक मजबूती भी प्रदान की हैं।
कार्यक्रम की संरचना व दिनचर्या
संघ शिक्षा वर्ग की दिनचर्या सुबह 04:30 से प्रारंभ होकर रात्रि 10 बजे तक शारीरिक और बौद्धिक कार्यक्रम चलते है। प्रात:काल 2 घंटे 15 मिनट (सवा दो) घंटे तथा सायं काल डेढ़ घंटे शारीरिक कार्यक्रम चलते हैं। दोपहर के भोजन के बाद एक घंटे का विश्राम मिलता है। दोपहर से पांच बजे तक का समय विश्राम, वार्तालाप, चर्चा और स्वयंसेवसेकों द्वारा टिप्पणियां लिखकर रखने के लिए रखा गया था । कई बार रात्रि 9 बजे हल्का-फुल्का बौद्धिक कार्यक्रम (कोई सांस्कृतिक प्रस्तुति सहित) भी होता है। तमाम कार्यक्रम सद्संस्कार डालने वाले होते हैं। एक नये सुसंगठित भारत की, जो सर्वांगीण उन्नति हेतु प्रयत्नशील है, नींव रखी जाती है। देशभक्ति, चरित्र, अनुशासन रग-रग में बसाया जाता है। मैं नहीं, परिवार नहीं, जाति-बिरादरी नहीं, देश सर्वप्रथम। ‘ये देश मेरा, ये धरा मेरी, गगन मेरा, इसके लिए बलिदान हो, प्रत्येक क्षण मेरा, प्रत्येक कण मेरा’ संघ का यह सार संदेश शिविरों द्वारा दृढ़ से दृढ़तर होता है।
मई-जून में ही क्यों ?
मई और जून माह में आमतौर पर संघ शिक्षा वर्ग लगते हैं। संघ ने व्यवस्था की दृष्टि से देशभर को 43 प्रांतों में विभाजित कर रखा है। विद्यालयों और महाविद्यालयों का इन महीनों में ग्रीष्मावकाश रहता है। परीक्षाएं भी समाप्त होने के चलते विद्यार्थी मुक्त रहते हैं। इसलिए इन महीनों में युवाओं को संघ की कार्यविधि से परिचय करवाने के लिए संघ शिक्षा वर्ग शुरू हुए थे। तभी से यह व्यवस्था आज तक कायम है।
रुकावटें
इस निरंतर प्रवाह में रुकावटें इस दौरान 1948-1949 में संघ पर प्रतिबंध और 1976-1977 में आपातकाल के दौरान प्रतिबंध, 1993 में प्रतिबंध और 1991 में विशेष राष्ट्रीय परिस्थितियों (पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या और लोकसभा चुनाव) के दौरान यह वर्ग अवरुद्ध हुए थे। बीते सालों में कोरोना महामारी के दौरान 2020-2021 में भी इन शिक्षा वर्गों को स्थगित करना पड़ा था ।
संघ शिक्षा वर्ग के दो प्रकार हैं –
- 18 से 40 वर्ष आयु के सामान्य वर्ग
- 41 से 65 वर्ष की आयु के विशेष वर्ग।
- 65 वर्ष से ऊपर प्रवेश नहीं होता ।
क्या खास होता है इन वर्गों में :
- सामाजिक समरसता का भाव – इस दौरान देशभर से बिना किसी जातीय और रंगरूप भेदभाव के शिक्षार्थी एकत्रित होते है।
- सामूहिक भोजन – वर्गों में स्वयंसेवक एकसाथ भोजन करते है। इसमें भी किसी तरह से भेदभाव नहीं होता ।
- सामूहिक जीवन का भाव जागृत – एक साथ मिलकर रहना और वर्गों की सभी गतिविधियों में एक साथ सहभागिता करना ।
- अखिल भारतीय दृष्टि का व्यापक बोध होता है।
- अनुशासन के प्रति जागरुकता पैदा होती है।
- विविध जानकारियों का ज्ञान – संघ की भौगोलिक रचनाओं और संरचनाओं का प्रत्यक्ष अनुभव होता है।
- समाज और राष्ट्र के समक्ष पैदा हुई चुनौतियों के समाधान का बोध होता है।
- स्वयंसेवकों में कार्यकुशलता का निर्माण होता है।
- संगठन का भाव – सबके प्रति अपनापन की भावना पैदा होती है।
- स्वावलंबन – वर्गों के दौरान सभी स्वयंसेवक अपने कार्य स्वयं करते है जिससे उनमें अपने कार्यों को स्वयं करने का भाव पैदा होता है।
