RSS गणवेश

RSS गणवेश

rss uniform

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की औपचारिक वेशभूषा, जिसे ‘गणवेश’ नाम से जाना जाता है, संगठन की पहचान का एक अनिवार्य हिस्सा रही है। ‘गणवेश’ शब्द सामान्यतः हिंदी तथा संस्कृत भाषा में इस्तेमाल होता है। ‘गणवेश’ दो शब्दों से बना है- गण (लोगों का संगठित समूह) तथा ‘वेश’ (परिधान, वेश-भूषा)। इसलिए ‘गणवेश’ का शब्द संघ स्वयंसेवकों की औपचारिक वेश-भूषा या वरदी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। संघ ने की गणवेश में कई ऐतिहासिक बदलाव किए गए हैं, जो यह दर्शाते हैं कि संघ ‘समय के साथ चलने वाला’ (काल के अनुसार बदलने वाला) एक संगठन है ।  


गणवेश की महत्वता

  • सभी प्रकार की विषमता भूल के समानता का संस्कार मन पर होने के लिये गणवेश।
  • 'हम सब एक है' यह एकता का संस्कार होने के लिये गणवेश।
  • संघटन मे कार्यकर्ताओं का आचार, विचार और व्यवहार इनके साथ गणवेश भी संघटन की पहचान है।
  • प्रेक्षकों में बैठके केवल देखने के बजाय हम स्वतः इसका भाग होना अधिक आनंददायक है।
  • सभी स्वयंसेवक एक ही गणवेश में अनुशाशनबद्ध तरीके से बैठे है! यह दृश्य विलोभनीय होता है।
  • इसीलिये विजयादशमी पथसंचलन के लिये गणवेश का आग्रह होता ही है।
  • आप सभी अपनी शाखा से अपना गणवेश जल्द से जल्द पूरा करे।
  • संघ का गणवेश पहनने से अभिमान लगता है की हम विश्व के सबसे बडे संघटन के भाग है।


प्रारंभिक स्वरूप: गणवेश

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के जाने-माने कार्यकर्ता एचवी शेषाद्री के अनुसार, साल 1920 के जनवरी में एलवी पराजंपे ने भारत स्वयं सेवक मंडल का गठन किया था। डॉ. हेडगेवार इसमें उनके प्रमुख सहयोगी के रूप में शामिल थे। इसी साल जुलाई में कोशिश की गई कि स्वयं सेवक मंडल के कम से कम 1000-1500 स्वयं सेवी तैयार किए जाएं, जो नागुपर में होने वाली कांग्रेस की वार्षिक बैठक में अपना योगदान दें। डॉ. हेडगेवार चाहते थे कि मंडल के सदस्य कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान दूर से ही नजर आएं। इसके अलावा उनकी ड्रेस में अनुशासन भी दिखे। इसीलिए उन्होंने खाकी शर्ट-पैंट, खाकी टोपी, जूतों और लंबे मोजे का ड्रेस कोड मंडल सदस्यों के लिए तैयार किया था।

जब 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की, तब संगठन का उद्देश्य स्वयंसेवकों में अनुशासन और शौर्य का भाव भरना था । प्रारंभिक गणवेश पूरी तरह से खाकी थी ।  संघ की स्थापना के चार साल बाद नवंबर 1929 में नागपुर में प्रशासनिक व्यवस्था बनी। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार पहले सरसंघचालक बने और उसी समय सरकार्यवाह (महासचिव) और सरसेनापति (प्रशिक्षण अधिकारी) जिसका दायित्व स्वयंसेवकों को शारीरिक शिक्षा में मजबूत करना यानी व्यायाम से लेकर दंड (लाठी) आदि चलाने का प्रशिक्षण देने के शिविर लगाना था।


स्थापना काल का गणवेश : 

खाकी ढीली-ढाली निकर (हाफ पैंट), खाकी कमीज, खाकी टोपी और लंबे बूट। यह ड्रेस कोड इसलिए तैयार किया गया था ताकि स्वयंसेवक किसी बड़े आयोजन में ‘दूर से ही पहचान में आएं’ और उनकी वेशभूषा में ‘अनुशासन भी झलके’। हालांकि, इस सैन्य स्वरूप ने ब्रिटिश सरकार का ध्यान आकर्षित किया, जिसके कारण संघ को जल्द ही अपनी वेशभूषा में बदलाव करने पड़े। 1930 के आसपास, पुलिस की वर्दी से अलग दिखने के लिए खाकी टोपी को काली टोपी से बदला गया ।  


1940 में सफेद कमीज : 

संघ में करीब 14 साल ये व्यवस्था चलती रही और पद भी बना रहा, लेकिन दूसरा विश्वयुद्ध शुरू होते ही हालात बदल गए। 5 अगस्त 1940 को अंग्रेजी सरकार ने एक अध्यादेश निकाला कि भारत सुरक्षा कानून के तहत किसी भी संगठन को ना तो सैनिक की यूनीफॉर्म पहनने की अनुमति होगी और ना किसी भी तरह की सैनिक ट्रेनिंग की। फिर भी अगले 3 साल तक विचार मंथन चलता रहा। नए नियम के तहत अब किसी भी संगठनों को सैन्य प्रशिक्षण और यूनिफॉर्म पर प्रतिबंध लगाया। दिल्ली, पंजाब और मद्रास में संघ अधिकारियों पर कार्रवाई भी हुई। 28 अप्रैल 1943 को गुरु गोलवलकर ने पत्र जारी किया कि इस प्रशिक्षण के पीछे हमारा ध्येय लोगों को अनुशासन में रहकर संस्कार देना है और हम कानून के दायरे में रहकर ही काम करेंगे। ऐसे में संघ को ये सारे पद समाप्ति की घोषणा करनी पड़ी। मार्तंड राव जोग ने भी 14 वर्ष बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया और सरसेनापति सहित सभी सैन्य स्वरूप वाले विभाग समाप्त कर दिए। इस निर्णय के बाद संघ का गणवेश भी बदला। पहले खाकी नेकर और खाकी कमीज होती थी, लेकिन अब कमीज का रंग सफेद कर दिया गया। इस कदम ने संघ की वर्दी के सैन्य स्वरूप को कम कर दिया और संगठन को सरकारी दमन से बचते हुए विस्तार करने की अनुमति दी ।  


जूते: 

1973 में, लंबे चमड़े के बूट्स की जगह फीते वाले काले रंग के कैनवस के साधारण जूते लाए गए ।  


बेल्ट: 

बाद में, चमड़े की बेल्ट की जगह प्लास्टिक या रेक्सीन की बेल्ट का इस्तेमाल शुरू हुआ ।  


2016 का ऐतिहासिक फैसला: फुल पैंट का आगमन

लंबे समय से चल रही बहस के बाद, संघ की गणवेश में सबसे बड़ा और सबसे स्पष्ट बदलाव मार्च 2016 में हुआ। राजस्थान के नागौर में आयोजित अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (ABPS), जो संघ की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है, की बैठक में खाकी निकर की जगह गहरे भूरे रंग की फुल पैंट (Dark Brown Full Pants) को औपचारिक रूप से अपनाने का निर्णय लिया गया ।  सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने इस ऐतिहासिक निर्णय की घोषणा करते हुए कहा था: “हम लोग समय के साथ चलते हैं। सामान्य जीवन में पैंट का आमतौर पर इस्तेमाल होता है। इसलिए हमें ड्रेस कोड बदलने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।” संघ ने खाकी पैंट की बजाय गहरे भूरे रंग को अपनाया। जब जोशी से गहरे भूरे रंग को चुनने का कारण पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि ‘कोई खास वजह नहीं’ है, बस यह रंग ‘आमतौर पर उपलब्ध है और अच्छा दिखता है’। यह गहरे भूरे रंग का चयन खाकी के सैन्य स्वरूप से पूरी तरह दूरी बनाने की एक रणनीति भी थी।  


वर्तमान में, स्वयंसेवकों की गणवेश में निम्नलिखित अनिवार्य घटक शामिल हैं :

  • साधारण कट वाली गहरे भूरा रंग (Dark Brown) की फुल पैंट
  • फुल स्लीव्स वाली सफेद रंग की कमीज
  • कपड़े की काली टोपी
  • प्लास्टिक की भूरे रंग की बेल्ट
  • काले रंग के फीते वाले साधारण जूते

खरीद और वितरण: 

संघ की गणवेश की वितरण प्रणाली संगठन के आंतरिक अनुशासन को दर्शाती है। यह गणवेश बाज़ार में सामान्य रूप से उपलब्ध नहीं है। स्वयंसेवक इसे सीधे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दफ्तरों से खरीदते हैं । यह बिक्री ‘न घाटा, न मुनाफा’ (No Loss, No Profit) के सिद्धांत पर मामूली कीमत पर की जाती है, ताकि इसकी लागत पूरी की जा सके। कोई भी स्वयंसेवक या सदस्य संघ के दफ्तर में जाकर अपनी माप की वरदी खरीद सकता है ।  



document.write(base64decode('encoded string containing entire HTML document'));
और नया पुराने

Ads

Ads

نموذج الاتصال