विजयादशमी पौराणिक शस्त्र पूजन विधि

विजयादशमी पौराणिक शस्त्र पूजन विधि

Vijayadashami Shastra Pujan


शस्त्र पूजन विधि


सामग्री – 

जल, लालवस्त्र, लालरोली, रक्तचंदन, रक्ताक्षत, गुडहल या रक्तकनेर का पुष्प, घृत दीप, तेल दीप, कुष्पाण्डफल (कोहड़ा), सिंदूर, चम्पा इत्र, गुग्गल अगरबत्ती, नैवेद्य पेड़े, पानबीडा (५ ताम्बूल, सुपारी के टुकड़े, लौंग, इलायचीचूर्ण, मुलहठी पाऊडर, सौफ, कत्था, जायफलचूर्ण ) । 


विधि

1. इलायचीचूर्ण, जायफलचूर्ण, सौफ, मुलहठी, १/४ कत्थापाउडर, सूपारी टुकड़ सब मिलाकर मुखवास बना ले। फिर ताम्बूल का अग्र एवं पिछला दण्ड़ीवाला थोडा भाग तोडकर ताम्बूल मे मुखवास लेकर पानबीडा बनावे । उसमें १/१ लौंग रख देवे । 

2. लालवस्त्र बिछा कर शस्त्र ( नोक पूर्व, मुट्ठा पश्चिम सीधी रेखा मे अलग अलग, तलवार का धार वाला भाग दक्षिण मे रहे) इस तरह रखें। 

3. तलवार की दायीं ओर घृतदीप और बायीं ओर तेलदीप प्रकटावे - “ह्रीं” शक्तिबीज ।

4. आचमन करे - “ह्रीं आत्मतत्त्वाय नमः, ह्रीं विद्यातत्त्वाय नमः, ह्रीं शिवतत्त्वाय नमः ”

5. हाथ धोकर तीन-तीन आवृत्ति का पूरक कुम्भक रेचक प्राणायाम करे - “ह्रीं चण्डिकाये नमः” मन्त्र से। 

6. सुवासिनी वीरांगना के अंगूठे से यजमान अपने ललाट मे तिलक करावे, चावल छिडके ।

7. अपने शरीर पर जल छिडके - “पुण्डरीकाक्षाय नमः ”

8. रक्ताक्षतपुष्प लेकर - गणपति का स्मरण करे “वक्रतुण्ड महाकाय०० आदि महागणपतये नमः पूजां समर्पयामि ।” 

9. रक्ताक्षत लेकर तलवार मे रही रणचण्डी का स्वागत करे - “एह्येही रणचण्डिके स्वागता भव ”। (रक्ताक्षत तलवार पर चढ़ाये) 

10. संकल्प करे – “अमुक(अपना नाम) शर्मा/वर्माऽहं चण्डिकाप्रीतिकामेन खड्गपूजा कुष्माण्डबलिदानं च करिष्ये ”। 

11. पुष्प चढाकर तलवार मे काली का स्मरण करे -
असुरासृग्वसापङ्कचर्चितस्ते करोज्ज्वलः ।
शुभाय खड्गो भवतु चण्डिके त्वां नता वयम् ॥ 
कृष्णं पिनाकपाणिं च कालरात्रिस्वरूपिणम्‌ । 
उग्ररक्तास्यनयनं रक्तमाल्यानुलेपनम्‌ ॥ 
रक्ताबरधरं चौव पाशहस्तं कुटुम्बिनम्‌ । 
पीयमानं च रुधिर भुज्‌जानं त्रव्यसंहतिम्‌ । 
रसना त्वं चण्डिकाया: सुरलोकप्रसाधिकाः ॥ 

12. “ह्रीं खड्गाय नमः” - मन्त्र से जलपुष्पयुक्तपाद्यम्‌, अक्षतपुष्पजलयुक्त अर्घ्यम्‌, सुवासितमाचमनीयम्‌ - समर्पयामि । 

13. तलवार पर तीन बड़े बड़े तिलक अंगूठे से करे - मन्त्रः – “ह्रीं ह्रीं खड्ग आं कालि कालि वज्रेश्वरि लोहदण्डाय नमः ”। 

14. नोक के भाग मे सिन्दूर से “ ह्रीं ” शक्तिबीज को लिखें । 

15. पुनः रक्ताक्षतयपुष्पांजलि से पूजन करे - “ह्रीं खड्गाय नमः ”।

16. धूप दीप नैवेद्य भोग लगावे । पांच पानबीड़ा अर्पण करे । 

17. नमस्कार करे – 
अतिर्विशसनः खङ्गस्तीक्ष्णधारो दुरासदः । 
श्री गर्भो विजयश्चौव धर्मपाल नमोस्तु ते ॥ १ ॥ 
इत्यष्टौ तव नामानि स्वयमुक्तानि वेधसा । 
नक्षत्रं कृत्तिका ते तु गुरुर्देवो महेश्वरः ॥२॥ 
रोहिण्यश्च शरीरं ते धाता देवो जनार्दनः । 
पिता पितामहो देवस्त्वं मां पालय सर्वदा ॥ ३ ॥ 
नीलजी मूतसंकाशस्तीक्ष्णदंष्टरः कृशोदरः । 
भावशुद्धो महाश्च अतितेजास्तथेव च ॥ ४ ॥ 
इयं येन घृता क्षोणी हतश्च महिषासुरः । 
तीक्ष्णधाराय शुद्धाय तस्मै खङ्गाय ते नमः ॥ ५ ॥ 
चण्डिकारसनासि त्वमेकपातेन घातय ॥ ६॥ 

18. कुष्मांडफल की शिखा पूर्व में रहे इस तरह किसी पत्तल में कुष्माण्ड को रखें - कुष्माण्ड का “ह्रीं श्रीं” मन्त्र से प्रोक्षण कर रक्तचंदनरौली का लेप करें । इस मन्त्र से रक्ताक्षतपुष्प चढावे- 
चण्डिकाप्रीतिकामस्य दातुरापद्धिनाशिने । 
चण्डिकाबलिरूपाय बले तुभ्यं नमो नमः ॥ 

19. उत्तराभिमुख वीरासन (बायां घुटना ऊँचा, दायां पैर पीछे करके घुटना भूमि को छूए) में दाहिने हाथ से तलवार को पकड़े । इस समय ढोल मृदंग ताल घण्ट भेरी आदि नाद भी हो । 

20. एक ही घात में कुष्माण्ड के दो भाग करें - “ह्रीं काली काली वज्रेश्वरि लोहदण्डाय नमः ” ॥ 

21. कुष्माण्ड का शिखावाला कटे भाग मे से कुछ अंश लेकर चण्डिका को अर्पण कर “ह्रीं श्रीं कौशिकी रूधिरेणाप्ययताम्‌” । (पूजन समाप्ति के पश्चात्‌ शस्त्र द्वारा चढ़ाई बलि को स्वयं ग्रहण नहीं कर सकते । देवी को अर्पण बलि को गाय को खिला सकते है । ) 

22. उसी भाग के चार टुकड़े और करें । एक एक भाग पर एक एक मन्त्र पढ़कर पुष्पमजल छोड़े - 
चरक्येनमः बलिं निवेदयामि । 
विदार्य नमः बलिं निवेदयामि । 
पूतनायै नमः बलिं निवेदयामि । 
पापराक्षस्यै नमः बलिं निवेदयामि । 
(पूजन के पश्चात्‌ उपरोक्त बलि भाग को मार्ग पर ऐसे स्थान पर रख देना चाहिए, जहां किसी व्यक्ति का पैर न पड़े) 

23. शेष आधे टुकड़े पर रक्ताक्षत पुष्प चढाकर प्रार्थना करते हुए चौराहे पर रख देवें , पीछे मुडकर उसे न देखते हुए वापस चले आये | मन्त्र- 
बलिं गृहणत्विमं देवा आदित्या वसवस्तथा । 
मरुतो येष्विनौ रुद्राः सुपर्णाः पननगा ग्रहाः ॥ १ ॥ 
असुरा यातुधानाश्च पिशाचोरगराक्षसाः । 
डाकिन्यो यक्षवेताला योगिन्यः पूतनाः शिवाः ॥ २ ॥ 
जुम्भिकाः सिद्धगंधर्वा मल्ला विद्याधरा नगाः | 
दिक्पालाः लोकपालाश्च ये च विघ्नविनाश काः ॥ ३ ॥ 
जगतां शांतिकर्तारी ब्रह्माद्याश्च महर्षयः । 
माविघ्नोमाचमे पापं मा संतु परिपंथिनः ॥ ४॥ 
सौम्या भवन्तु तृप्ताश्च भूतप्रेताः सुखावहाः ॥ ५ ॥ 

24. आचमन करके नमस्कार करें - 
अपराध सहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निंशं मया । 
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥ 

25. तलवार पर अक्षत चढाते हुए देवी का विसर्जन करें ~ “प्रयान्तु महादेवि ”। 

26. प्रसाद बाँटे। 


धर्म की जय हो । 
अधर्म का नाश हो । 
प्राणियों मे सदभावना हो। 
विश्व का कल्याण हो । 
गौमाता की जय हो । 
भारत अखंड हो 
 
हर हिन्दू सेना हो। 
हर हिन्दू सनातनी हो । 


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