चर्चा दैनिक शाखा का महत्त्व
● शाखा क्या है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिन्दू समाज के संगठित करने के प्रयास के परिणास्वरूप नगर, कस्बे, ग्राम आदि में हिन्दू बन्धुओं के निश्चित समय, निश्चित स्थान, निश्चित अवधि हेतु एकत्रित आकर भगवाध्वज की छत्रछाया में शारीरिक एवं बौद्धिक कार्यक्रमों में भाग लेने का स्थान है। शाखा स्थान एवं समय के अतिरिक्त भी कार्यक्रम का आयोजन होता है। ये नैमित्तिक कार्यक्रम कहलाते हैं।
'शाखा' सभी कार्यो का अधिष्ठान है क्योंकि प्रत्येक कार्य के लिए आवश्यक योग्य, समर्पित ध्येय निष्ठ कार्यकर्ताओं का निर्माण इस पद्धति से ही सम्भव । यह विगत 100 वर्षो के संघ कार्य से सिद्ध हुआ है।
- दैनिक मिलन की अभिनव कार्य पद्धति का विकास संघ ने किया।
- संगठन का स्वरूप प्रतिदिन निश्चित समय व निश्चित स्थान पर एकत्रित होना ।
- व्यक्ति के विकास उसके स्वाभाविक दोषों को दूर करने के लिए निरन्तर संस्कार, अभ्यास, ध्येय के अनुरूप संत्सग ।
० शाखा पर नित्यप्रति निश्चित समय निश्चित अवधि आना क्यों आवश्यक है?
आज जिस सामाजिक परिवेश में हम रह रहे हैं, उसमें व्यक्तिगत स्वार्थपरता का प्राबल्य है। समाज, राष्ट्र एवं देश के प्रति दायित्व बोध जाग्रत एवं पुष्ट करने की कोई भी व्यवस्था प्रभावी नहीं है। ऐसे सामाजिक परिवेश एवं वातावरण से निकलकर एक घण्टे नियमित रूप से राष्ट्रभक्ति एवं देशप्रेम के वातावरण में रहकर अपने जीवन को राष्ट्रोपयोगी बनाने की सहज प्रेरण प्राप्त होती है। निस्वार्थी, समाज समर्थित, राष्ट्रभक्त एवं देश के कल्याण के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर करने की भावना जागृत होती है। चारित्रय सम्पन्न, सदाचारयुक्त एवं कर्तव्य परायण व्यक्ति के रूप में राष्ट्र कार्य करने की हमारी क्षमता एवं दक्षता बढ़ती है। जिस प्रकार पात्र को नित्यप्रति स्वच्छ करने की प्रक्रिया द्वारा गंदगी मुक्त रखा जाता है, उसी प्रकार नित्य प्रति शाखा स्थान पर उपस्थित हो एक घण्टे सभी कार्यक्रमों में उत्साह पूर्वक भाग लेने से हमारे मन एवं मस्तिष्क पर बहुआयामी सामाजिक प्रदूषण से होने वाले कुप्रभाव को मिटाया जाता है।
एक घण्टा संस्कार की योजना । जैसे- नित्य पूजा करना, अकाल में भी हल चलाना ताकि हम हल चलाना न भूल जायें। प्रतिदिन बर्तन माँजना जिससे बरतन की चमक बनी रहे आदि ।
० शाखा पर यह कैसे सम्भव है?
शाखा एक संस्कार केन्द्र है। मनुष्य निर्माण की प्रक्रिया में संस्कारों का महत्व है ।
o संस्कार का क्या अर्थ है?
मूर्तिकार द्वारा छेनी हथौड़ी द्वारा सतत हल्की-हल्की चोट कर बेडौल पत्थर को सुन्दर, आकर्षक एवं मनभावन मूर्ति का आकार दिया जाता है। इस प्रक्रिया को तराशना भी कहते हैं। बेडौल पत्थर को मनोरम आकार देना पत्थर पर संस्कार करना है। इसी प्रकार व्यक्ति के जीवन की सभी प्रकार की बुराइयों को संस्कारों द्वारा हटाकर उसे पशुत्व से मनुष्यत्व, मनुष्यत्व से देवत्व तक पहुंचाने की क्षमता संस्कारों में है। इसीलिये हमारे यहाँ जन्म से मरण तक 16 संस्कारों की व्यवस्था की गई है। शाखा स्थान इन संस्कारों द्वारा निःस्वार्थी, देशभक्त, चारित्रय सम्पन्न, समाज समर्पित एवं आचरण से श्रेष्ठ व्यक्तियों की निर्माण स्थली है।
ये संस्कार नित्य तथा निरन्तर मिलने चाहिए, अतः इसके लिए शाखा में दैनिक उपस्थिति अपेक्षित । शाखा के दैनिक कार्यक्रमों से उत्साह, पराक्रम, निर्भयता अनुशासन सूत्रबद्धता, विजय वृत्ति, अखण्ड रूप से कार्य करने का अभ्यास, नियमितता, परस्पर सहयोग, आत्मविश्वास, सामाजिकता, राष्ट्रीय भाव आदि गुणों का विकास निरन्तर होता रहता है।
o क्या वास्तव में शाखा ऐसे व्यक्ति का निर्माण करती है?
अनेक उदाहरण उपरोक्त सत्य का प्रतिपादन करते हैं। शिवाजी महाराज ने साधारण मामलों को असाधारण कर्तृत्व एवं गुणों से युक्त श्रेष्ठ व्यक्तियों में बदल दिया। असामान्य देशभक्ति एवं सर्वस्व त्याग की वृत्ति से ओत-प्रोत कर दिया। मिट्टी को सोने में बदलने में सफलता पाई। शाखा के संस्कारक्षम वातावरण द्वारा भी यही सम्भव हुआ है। सहस्रों की संख्या में अपने घर के सुख सुविधा त्यागकर जीवनदानी कार्यकर्ताओं का निर्माण हुआ है। इन्हें प्रचारक कहते हैं। लाखों की संख्या में गृहस्थ आने गृहस्थी दायित्वों का निर्वाह करते हुए देश एवं राष्ट्र कार्य को वरीयता देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभिन्न दायित्वों को पूरी निष्ठा से निभाते हैं। अनेकों राष्ट्रजीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कीर्तिमान प्रस्थापित किए हैं। विश्व स्तर पर भी अनेकों ने यश अर्जित किया है। पं. दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, दत्तोपंत ठेगड़ी, अशोक सिंघल आदि का नाम उदाहरणस्वरूप लिया जा सकता है। यह सभी शाखा के संस्कारक्षम वातावरण की देन है।
संघ स्थान के बाहर दैनिक शाखा कार्य- व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा स्वयंसेवकों की ध्येयवादिता व चिन्तन-मनन बढ़ाना एवं उनका क्रमिक विकास करना । पुराने स्वयंसेवकों को पुनः सक्रिय करना, संघ का प्रसार तथा समर्थन बढ़ाना नये व्यक्तियों को स्वयंसेवक बनाना ।
● शाखा का महत्व संक्षेप में क्या है?
शाखा का महत्व पू. बालासाहब के शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है। 'शाखा है, तो सब कुछ है। शाखा नहीं तो कुछ भी सम्भव नहीं। शाखा यानि कार्यक्रम। कार्यक्रम यानि संस्कार ।' अतः स्पष्ट है शाखा में कार्यक्रमों के माध्यम से संस्कार प्राप्त होते हैं।
संस्कारों के लिए योग्य वातावरण की आवश्यकता। बाहर तथा अन्दर के वातावरण के प्रभाव के कारण जलती अंगीठी में ठण्डा कोयला दहकने लगता है, बाहर निकालने पर बुझ जाता है। संघ स्थान का तेजस्वी वातावरण योग्य संस्कार देने में सक्षम । - प.पू. श्रीगुरुजी
संघ ऊर्जा का केन्द्र 'संघ कछ नहीं करेगा, स्वयसेवक कुछ भी नहीं छोड़ेगा अर्थात् सब कुछ करेगा ।' पेड़ की जड़ सींचने से पूरे पेड़ का विकास होता है । - प. पू. श्रीगुरुजी
संघ यानि शाखा, शाखा यानि कार्यक्रम कार्यक्रम यानि कार्यकर्ता । - माननीय बालासाहब देवरस
० संस्कारक्षम वातावरण कैसे बने?
शाखा कार्यवाह, मुख्य शिक्षक, गण शिक्षक तथा गटनायक आदि सभी का दायित्व इसके लिये समान रूप से है। सभी को इस प्रकार के वातावरण बनाने की ओर ध्यान देना आवश्यक है।
● शाखा की ओर देखने का दृष्टिकोण
उपरोक्त बिन्दु के सन्दर्भ में शाखा की ओर देखने का दृष्टिकोण भक्तिभावपूर्ण होना आवश्यक है। हमारी यह प्रबल आस्था रहनी चाहिये कि शाखा स्थान केवल खेलकूद का स्थान मात्र ही नहीं है, वरन् यह पवित्र स्थली है, जहाँ की मिट्टी में लोट-पोट हो, जीवन की सारी कलुषित नष्ट होती है। हमारे चतुर्मुखी विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।
- इस प्रकार शाखा को पुष्य करने से संघ का विकास होगा ।
- संघ की शाखा कवल खेल खेलने अथवा कवायद करन का स्थान मात्र नहीं है अपितु वह सज्जनों की सुरक्षा का बिना बोले अभिवचन है।
