चर्चा बिंदू - संघ स्थापना की पृष्ठभूमि
- प. पू. डॉ. हेडगेवार अपने समकालीन प्रायः सभी सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक संगठनों के कार्यों से जुड़े रहे, इससे उन्हें कुछ अनुभव हुए (अपने समाज की दुर्बलताएं, स्वार्थपरता, आत्महीनता, स्वाभाविक देशभक्ति एवं संगठन का अभाव, राष्ट्रीयता की भ्रामक कल्पना आदि के कारण हम परतंत्र हुए)।
- हिन्दू समाज का आत्म गौरव के अभाव में हिन्दू कहलाने में लज्जा का अनुभव।
- देशभक्ति की भावात्मक कल्पना का अभाव (उस समय केवल अंग्रेजों का विरोध ही देशभक्ति का मापदंड था ) ।
- संगठन के अभाव में सभी आंदोलनों का बीच में ही रूक जाना ।
- कुछ क्रांतिकारियों तथा सत्याग्रहियों के प्रयास से स्वतंत्रता नहीं मिलेगी, जब तक पूरा देश स्वाभाविक देशभक्ति एवं अनुशासन के साथ खड़ा नहीं होगा।
- कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति आत्मघातक ।
- राजनीति सब समस्याओं का समाधान नहीं ।
- ऐसे अनेक अनुभवों से डॉक्टर जी ने निष्कर्ष निकाला कि देश का भाग्य हिन्दू के साथ जुड़ा है, वही इस देश का राष्ट्रीय समाज है।
- स्वतंत्रता तथा राष्ट्र निर्माण हेतु देशभक्त, चरित्रवान, अनुशासित तथा व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त लोगों का संगठन आवश्यक है। ऐसा संगठन देश पर आने वाली हर विपत्ति का सामना कर सकेगा।
- डॉक्टर जी ने घोषणा की "भारत हिन्दू राष्ट्र है", "संगठन में शक्ति है", "शक्ति से सब कार्य संभव हैं।"
- संगठन का आधार व्यक्ति है, पैसा या उपकरण नहीं।
- डॉक्टर जी द्वारा संगठन शाखा रूपी अनूठी कार्य पद्धति का निर्माण ।
- आलोचना से निराश न होते हुए सतत कार्य में लगे रहना तथा अपने जीवनकाल में ही भारत के सभी प्रांतों में संघ कार्य पहुँचाना (संघ कार्य के वर्तमान विस्तार की भी चर्चा करें)।
- अपना पूरा जीवन राष्ट्र कार्य हेतु अर्पित कर प्रचारक पद्वति का आविष्कार किया।
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