चर्चा बिंदु - संघ की कार्यपद्धति की विशिष्टता

संघ की कार्यपद्धति की विशिष्टता

Discussion Point - Specificity of the Sangh's Working Method

दैनिक एकत्रीकरण - 

सभी स्वयंसेवकों का नियमित, निश्चित समय पर, निश्चित अवधि हेतु निश्चित स्थान पर एकत्रित होना। इसे शाखा पद्धति कहते हैं।


वैयक्तिक सम्पर्क - 

सामूहिक सम्पर्क के स्थान पर वैयक्तिक सम्पर्क को वरीयता । इस दृष्टि से गण तथा गण पद्धति की व्यवस्था । विभिन्न बैठकों तथा शाखा एवं नैमितिक कार्यक्रमों की रचना । यह क्रम सतत् चलता है।


संगठनात्मक - 

संघ की कार्यपद्धति आंदोलनात्मक नहीं, वरन् संगठनात्मक है। हिन्दु समाज को संगठित करने में सहायक प्रश्नों पर आंदोलन अन्यथा नहीं। जैसे गौरक्षार्थं हस्ताक्षर आंदोलन, रामजन्म भूमि विवाद सम्बन्धी आंदोलन आदि ।


रचनात्मक - 

संघ की कार्य पद्धति रचनात्मक है, प्रचारात्मक नहीं। मनुष्य निर्माण कार्य रचनात्मक, गणवेश पहन मेले, तमाशे आदि में व्यवस्था करना प्रचारात्मक है। नि:स्वार्थी एवं यश मान की इच्छा से मुक्त व्यक्ति ही समाज के बन्धओं की सही अर्थ में सेवा करने में समर्थ होते हैं।


प्रसिद्धि पराङमुख - 

संघ कार्य मान, सम्मान, प्रतिष्ठा एवं यश अर्जन की इच्छा से करने वाला कार्य नहीं रचनात्मक प्रक्रिया मौन ही है। वृक्ष के बढ़ने की प्रक्रिया की कोई ध्वनि सुनाई देती है क्या? मौन कार्य गुप्तता की परिधि में भी नहीं आता ।


एकचालिकानुवर्तित्व - 

एक नेता के नेतृत्व में कार्य करने का अभ्यास । कार्य करने के पूर्व जितना चाहते वाद विवाद तत्पश्चात् सामूहिक निर्णय को निष्ठा से क्रियान्वित करना आवश्यक है ।


कार्य के लिये योग्य व्यक्ति तथा व्यक्ति की योग्यतानुसार कार्य - 

संघ की पद्धति में कार्य के अनुसार योग्य व्यक्ति की खोज अथवा ऐसे व्यक्तियों का निर्माण तथा योग्य व्यक्ति है तो प्रत्येक के लिये योग्य कार्य की व्यवस्था करना।


सामूहिक निर्णय - 

किसी भी कार्य सम्पादन में सम्बन्धित कार्यकर्ताओं के सामूहिक विचार-विमर्श के उपरान्त सामूहिक निर्णय लेने की संघ की पद्धति है। यह विचार-विमर्श सभी सम्बन्धित कार्यकर्ताओं को विश्वास में लेने हेतु आवश्यक है। सभी की कार्यशक्ति एवं कार्यक्षमता में गुणात्मक वृद्धि होती है।


गुण-दर्शन छिद्रान्वेषण नहीं - 

संघ की कार्य पद्धति में अपने सहयोगी के गुण देखने की प्रेरणा है। उसके छिद्रान्वेषण अर्थात् दोष-दर्शन की पद्धति नहीं है। सहयोगी के दोषों को शांतिपूर्वक दूर कर गुणों के विकास की चिंता करना अभीष्ट रहता है। उसके गुणों का संघ कार्य हेतु उपयोग ही व्यवस्था करना अपेक्षित करता है।


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