हम सभी को भोजन की जरुरत होती है| यह हमारे शरीर को ऊर्जा देता है और जीवन के लिए अति आवश्यक है| भोजन करते समय हमे कुछ नियमो और बातो का विशेष ध्यान रखना चाहिए| यह नियम आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों रूप में सही होती है| भोजन करते समय पौष्टिक आहार काम में ले क्योकि माना जाता है जैसा खाओगे अन्न, वैसा रहेगा मन तो आइये जानते है भोजन मंत्रो एवं नियमो के बारें में…
भोजन से जुड़े नियम
• भोजन करते समय आपका मुख्य पूर्व दिशा में होना चाहिए
• भोजन करने से पूर्व दोनों हाथो, पैरो और मुख को जल से धोकर ही भोजन करे |
• यदि परिवार एक साथ भोजन करेगा तो आपस में प्यार, सम्मान और एकता अधिक बढेगी |
• खड़े खड़े और जूते पहन कर कभी भोजन ना करे |
• भोजन कैसा भी हो देवता के तुल्य है अत: कभी भोजन की बुराई ना करे |
• भोजन हमेशा जमीन पर बैठ कर ही करे, यह भोजन करने की सबसे उत्तम जगह मानी गयी है |
• भोजन हमेशा प्रसन्न भाव से और शांति से करना चाहिए | चिंता और दुखी होकर किया गया भोजन शरीर को नही लगता है |
• भोजन उतना ही ले जितनी भूख हो | कभी भोजन को झूठा नही छोड़े वरना लक्ष्मी नाराज हो जाती है |
भोजन मंत्र
अन्न ग्रहण करने से पहले
विचार मन मे करना है
किस हेतु से इस शरीर का
रक्षण पोषण करना है
हे परमेश्वर एक प्रार्थना
नित्य तुम्हारे चरणो में
लग जाये तन मन धन मेरा
विश्व धर्म की सेवा में ॥
ॐ ब्रहमार्पणं ब्रहमहविर्ब्रहमाग्नौ ब्रहमणा हुतम् ।
ब्रहमैव तेन गन्तव्यं ब्रहमकर्मसमाधिना ॥ (गीता)
सरलार्थ:
यज्ञ में आहुति देने का साधन (सुचि, सुवा, हाथ की मृगि, हंस, व्याघ्र आदि मुद्राएं) अर्पण ब्रह्म है। ब्रह्म रूपी अग्नि में ब्रह्मरुप होमकर्ता द्वारा जो अर्पित किया जाता है, वह भी ब्रह्म ही है | उस ब्रह्म कर्म से ब्रह्मा की ही प्राप्ति होती है |
This ladle (used for offering ghee in Havan Kund) is Brahma; the offering is Brahma. It is being offered by Brahma in the fire of Brahma. The destination to be attained through this Brahma Karma Samadhi is also Brahma.
(जिन वस्तुओं को हम खुद को खिलाने के लिए उपयोग करते हैं वे ब्रह्मा हैं। भोजन ही ब्रह्मा है। भूख की आग में हम ब्रह्मा महसूस करते हैं। हम ब्रह्मा हैं और भोजन खाने और पचाने की प्रक्रिया ब्रह्मा की क्रिया है। अंत में, हम प्राप्त परिणाम ब्रह्मा है। – भगवद गीता)
ॐ सह नाववतु ।
सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु ।
मा विद्विषावहै ॥ (यजु उपनिषद्)
सरलार्थ:
हम दोनों (गुरु और शिष्य) एक-दूसरे की रक्षा करें। हम मिलकर खाएं (देश में कोई भूखा न रहे)। हम देश में संगठन रूपी एक साथ काम करते तपश्चर्या से उज्ज्वलित एवं प्रदीप्त हों। हम उज्ज्वल और सफल होने के लिए एक साथ पठित एवं अध्ययनशील हों। परस्पर द्वेष न करें |
May He (Parmatmaa) protect both of us (teacher and student). May He guard and guide us to enjoy the fruits of our efforts. May our united efforts be verile. May our studies be ever fresh and brilliant. May we never hate each other.
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:: ॥
भोजन करने के बाद पढ़े यह मंत्र
अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः।। (गीता 03-14)
समस्त प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति पर्जन्य से। पर्जन्य की उत्पत्ति यज्ञ से और यज्ञ कर्मों से उत्पन्न होता है।
The living beings are born from food, food is produced by rain, rain comes by performing Yajna. The Yajna is performed by doing Karma.