निःयुद्ध
सिद्ध स्थितियाँ :-
1. आरम से निःयुद्ध सिद्ध :-
1.1. आरम से दक्ष में आना, पश्चात् उछलकर दोनों पैरों मे कम से कम 2.5 फीट अंतर (साधारणत: अपनी ऊँचाई के अनुसार) लेते हुए समानांतर पैर फैलाना,
1.2. उसी समय श्वाँस छोड़ते हुए अधोप्रकोष्ठ रोध,
1.3. पश्चात् श्वॉस भरकर हाथ कटि के पास लाना।
2. निःयुद्ध सिद्ध से आरम :-
2.1. निःयुद्ध सिद्ध से उछलकर दक्ष में आना
2.2. पश्चात् आरम करना।
3. नियुद्ध सिद्ध से प्रयोग सिद्ध :-
4. प्रयोग सिद्ध से निःयुद्ध सिद्ध :-
4.1. दाहिना पैर बायें पैर से मिलाना, पैर के घुटने दबे हुए,
4.2. दोनों हाथों से अधोप्रकोष्ठ रोध,
4.3. मुष्ठि कटि के पास लेते हुए नियुद्ध सिद्ध करना।
5. प्रयोग सिद्ध से द्वन्द्र सिद्ध :-
5.1. प्रयोग सिद्ध से दाहिना पैर बायें पैर की सीध मे पीछे कर दोनो पैर पदविन्यास सिद्ध की स्थिति में,
5.2. बायाँ पंजा पहले मोहरें की दिशा में, बायाँ हाथ पार्श्वक्षेप की स्थिति में, दाहिनी म॒ष्ठि सीने के पास, सतक खड़े रहना।
उपरोक्त तीनो सिद्ध स्थितियाँ हम दक्ष स्थिति से भी कर सकते हैं।
6. मष्ठिप्रहार :-
6.1. मुष्ठिपृष्ठ :- दाहिना हाथ सीने के सामने से नीचे से ऊपर चक्राकार गति से प्रतिस्पर्धी के दाहिने गाल तथा मुँह पर आघात करना ।
6.2. करमूल :- करमूल से हनु पर आघात ।
6.3. पार्श्वमुष्ठि :- दाहिने हाथ से चौथे मोहरे पर तथा बायें हाथ से दूसरे मोहरे पर प्रहार ।
6.4. पश्चात्मुष्ठि :- कटिवलन करते हुए दाहिने हाथ से बायें कंधे के ऊपर से पीछे प्रहार ।
6.5. अधोमुष्ठि :- पैरों के पंजों की दिशा दाहिने बायें बदल कर जठर पर प्रहार।
7. कर्पप आघात :-
7.1. वराही :- दाहिना हाथ बायें कक्ष के पास ले जाते हुए अपने दाहिनी ओर दाहिने पैर के घुटने से झुकते हुए कूर्पर से मर्मस्थल आघात।
7.2. दंती प्रकार 1 :- दाहिना हाथ मोड़ते हुए कूर्पर सिर के पास लेकर सीने के सामने पैर पर दबते हुए कूर्पर से रीढ़ की हड्डी तथा सीने का आघात।
7.3. दंती प्रकार 2 :- दाहिने हाथ की मुष्ठिका सूर्यचक्र के पास, बायाँ हाथ दर्पण मुद्रा में सीने के सामने, दाहिने हाथ के प्रकोष्ठ से हनु तथा कनपटी पर आघात ।
7.4. श्रृंगी :- दोनों पैर पर दबते हुए, दाहिने हाथ की मुष्ठि बायें कक्ष के पास लेकर झोंके से दाहिना हाथ दाहिनी ओर ले जाते हुए दाहिने पैर पर दबकर कूर्षर से वृषण तथा हनु पर आघात ।
8. पदप्रहार :-
8.1. पाश्वपाद :- 1. दाहिना पैर बायें पैर क घुटन के पास उठाना। 2. दाहिना पैर दाहिनी ओर लेकर कक्ष पर आघात करना।
8.2. पुरोपाद :- . दाहिना पैर बायें पैर के घुटने के पास उठाना। 2. दाहिना पैर अपने सीने के सामने लेकर जानु, वृषण तथा जठर पर क्रमशः आघात करना।
8.3. प्रतिपाद :-. 1. दाहिना पैर बायें पैर के घुटने के पास उठाना। 2. दाहिना पैर अपने पीठ की ओर लेकर चेहरा तथा सूर्यचक्र पर क्रमशः आघात करना।
8.4. ऊर्ध्वपाद :- हर 1. दाहिना पैर बायें पैर के घुटने क॑ पास उठाना। 2. दाहिना पैर सीने के सामने लेकर पंजे से हनु पर तथा पदपृष्ठ से जठर पर आघात करना।
9. रोध :- पार्श्वक्षेप, अधोक्षेप एवं ऊर्ध्वक्षेप :-
9.1. एक हाथ से :-
9.1.1. पार्श्वक्षेप :- प्रतिस्पर्धी के दाहिने मुष्ठिप्रहार को बायें हाथ के प्रकोष्ठ से अंगुष्ठाधार की ओर से मणिबंध के पास से उडाना। अपने बायें हाथ की मुष्ठि को गति से दाहिने हाथ की मुष्ठि के नीचे से लेते हुए नाभि, सूर्यचक्र एवं नासिका की रक्षा करते हुए या प्रकोष्ठ एवं सीने से समानान्तर प्रहारक बल की दिशा बदलता हुआ 90 अंश के कोण पर टकराना। यही क्रिया बायें हाथ की मुष्ठिका वापस लेते हुए बायें कर्पर के नीचे से दाहिने हाथ से करना पार्श्वक्षेप कहलाता है।
9.1.2. ऊर्ध्वक्षेप : इस पद्धति से ही सीने के सामने से हाथ माथे के ऊपर से ले जाना ही ऊर्ध्व॑क्षेप कहलाता है। इसी क्रिया का अभ्यास दाहिने हाथ से भी करना।
9.2. दोनों हाथ से एक साथ :-
दोनों हाथ से एक साथ पार्श्वोत्क्षेप का अभ्यास ऊपर की ओर चक्राकार घुमाते हुए करना तथा अधोत्क्षेप का अभ्यास करना।
10. स्थिर प्रयोग :- स्थिति - निःयुद्ध सिद्ध :- आघात: मुष्टि प्रहार
10.1. एक हाथ से :-
10.1.1. आघात करते समय एक हाथ कमर पर रहेगा।
10.1.2. दूसरे हाथ का आघात एवं पहले हाथ को वापस लाना (इस समय पीछे कूर्पप आघात) एक साथ होगा।
10.1.3. निम्नलिखित क्रम से विविध मर्मस्थलों पर आघात करना। जैसे - दाहिनी मुष्ठिका से 'नासिका' पर, बायीं मुष्ठिका से “सूर्यचक्र' पर, दाहिनी मुष्ठिका से “जठर' पर।
10.1.4. उपरोक्त पद्धति से निम्नलिखित आघातों का अभ्यास करना। 1. कनिष्ठिकाधार प्रहार 2. करपुट प्रहार 3. वराही 4. दंती 5. श्रंगी।
10.2. दोनों हाथ से एक साथ :-
10.2.1. मुँह से श्वॉस छोड़ते हए या हुंकार के साथ दोनों हाथों से एक साथ प्रतिस्पर्धी के नासिका, सूर्यचक्र व जठर पर क्रमशः आघात करना।
10.2.2. आघात के समय हाथ खुलने पर भी कूर्पर से थोड़ा मुड़ा एवं कसा रहेगा।
10.2.3. वापस लाते समय पीछे कूर्पर आघात।
10.2.4. बायें हाथ से नासिका, दाहिने हाथ से जठर पर एक साथ आघात करना परचात् हाथ बदलकर उन्हीं स्थानों पर आघात।
10.2.5. उपरोक्त सभी प्रयोगों का अभ्यास प्रारंभ में मंदगति से स्थितियां ठीक करते हुए करना चाहिये। बाद में तेज गति से 20-20 बार अभ्यास होना चाहिए।
11. गति के प्रयोग :- (प्रयोग सिद्ध से)
11.1. मुष्ठिप्रहार प्रक्रम - 1:-
11.1.1. दाहिना पैर बायें से मिलाते हुए कोने में (45% रखते ही दाहिने हाथ से पहले मोहरे पर सूर्यचक्र पर मुष्ठिप्रहार।
11.1.2. यही काम बायें पैर एवं बायें हाथ से करना।
11.1.3. मार मारते हुए 6 बार आगे बढ़ना एवं प्रयोग सिद्ध में आना।
11.1.4. यही काम अपक्रम में करना।
11.2. मुष्ठिप्रहार प्रक्रम - 2 :-
11.2.1. उपरोक्त पदविन्यास पर सूर्यचक्र और नासिका पर दो मुष्ठिप्रहार मारते हुए 6 बार आगे बढ़ना।
11.2.2. यही काम अपक्रम में करना।
11.3. मुष्ठिप्रहार प्रक्रम - 3 :-
11.3.1. एक साथ सूर्यचक्र, नासिका व जठर पर मार मारते हुए आगे बढ़ना।
11.3.2. यही काम अपक्रम में करना।
11.4. मुष्ठिप्रहार चतुष्क :-
11.4.1. प्रकम के पदविन्यास पर मार मारते हुए दो बार पहले मोहरे पर आगे बढ़ना दाहिना पैर बायें पैर के पास लेते हुए चौथे मोहरे पर लेकर दूसरे मोहरे पर सिद्ध।
11.4.2. इस समय हाथों को आगे अधोप्रकोष्ठ रोध की स्थिति से लाना।
11.4.3. यहीं काम शेष मोहरों पर करना।
12. द्वंद्व का अभ्यास
12.1. प्रयोग 1 :- (निःयुद्ध सिद्ध से)
12.1.1. दाहिने हाथ से दोनों का एक साथ आघात प्रतिस्पर्धी की नासिका पर।
12.1.2. बायें हाथ से दोनों का एक साथ आघात प्रतिस्पर्धी की नासिका पर।
12.1.3. उपरोक्त पद्धति से सूर्यचक्र या जठर पर आघात करना।
12.2. प्रयोग 2 :- (प्रयोग सिद्ध से)
12.2.1. दाहिने हाथ से मुष्ठिप्रहार मर्मस्थल नासिका पर एवं बायें हाथ से ऊर्ध्वक्षेप
12.2.2. बायें हाथ से मुष्ठिप्रहार मर्मस्थल सूर्यचक्र पर एवं दाहिने हाथ से पार्श्वक्षेप
12.2.3. दाहिने हाथ से मुष्ठिप्रहार मर्मस्थल जठर पर एवं बायें हाथ से अधोक्षेप
12.2.4. बायें हाथ से मुष्ठिप्रहार मर्मस्थल नासिका पर एवं दाहिने हाथ से ऊर्ध्वक्षेप
12.2.5. दाहिने हाथ से मुष्ठिप्रहार मर्मस्थल सूर्यचक्र पर एवं बायें हाथ से पार्श्वक्षेप
12.2.6. बायें हाथ से मुष्ठिप्रहार मर्मस्थल जठर पर एवं दाहिने हाथ से अधोक्षेप
शरीर सिद्धता के प्रयोग
1. दंड (डिप्स) :- 1. हथेंलियों पर 2. मुष्ठियों पर 3. हथेलियों मे अंतर बढ़ाकर दाहिना कान दाहिने पंजे के पास लगाना। पूर्वस्थिति में आना। बायाँ कान बायें पंजे के पास लगाना। पूर्वस्थिति।
2. पंजों की गद्दियों पर उछलते हुए हवा में पैर बगल मे खोलना तथा वापस पूर्वस्थिति मे आना।
3. पंजों की गद्दियों पर उछलते हुए हवा में पैर आगे पीछे खोलना तथा वापस पूर्वस्थिति मे आना।
4. पंजों के बल बैठकर हाथों को जोड़कर (बांधकर) ऊपर खींचते हुए आगे, पीछे, दाहिने तथा बायें चलना।
5. उपरोक्त क्र. 4 की क्रिया उछलते हुए करना।
6. अवडीन का अभ्यास :- पैर पर्याप्त फैलाकर बायें या दाहिने पैर पर दूसरा पैर सीधा रखते हुए बैठना ।
7. जठर के लिये व्यायाम :- जमीन पर लेटकर दोनों हाथ सिर के पीछे पकड़ना तथा पैर जमीन से न उठाते हुए कमर का ऊपरी हिस्सा बार-बार उठाना।