स्वयंसेवक

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स्वयंसेवक

स्वयंसेवक होना सम्मान एवं गर्व की बात है। एक साधारण स्वयंसेवक का दायित्व बहुत बड़ा है। समाज की हमसे एक स्वयंसेवक के रूप में बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ रहती हैं और उन अपेक्षाओं पर पूर्ण प्रमाणिकता से खरे उतरना सबसे बड़ा दायित्व है।

दृष्टी और दर्शन

प्राचीन काल से चलते आए अपने राष्ट्रजीवन पर यदि हम एक सरसरी नजर डालें तो हमें यह बोध होगा कि अपने समाजके धर्मप्रधान जीवनके कुछ संस्कार अनेक प्रकार की आपत्तियों के उपरांत भी अभी तक दिखाई देते हैं। यहाँ धर्म-परिपालन करनेवाले, प्रत्यक्ष अपने जीवन में उसका आचरण करनेवाले तपस्वी, त्यागी एवं ज्ञानी व्यक्ति एक अखंड परंपरा के रूप में उत्पन्न होते आए हैं। उन्हीं के कारण अपने राष्ट्र की वास्तविक रक्षा हुई है और उन्हीं की प्रेरणा से राज्य-निर्माता भी उत्पन्न हुए हैं।

उस परंपरा को युगानुकूल बनाएँ

अत: हम लोगों को समझना चाहिए कि लौकिक दृष्टि से समाज को समर्थ, सुप्रतिष्ठित, सद्धर्माघिष्ठित बनाने में तभी सफल हो सकेंगे, जब उस प्राचीन परंपरा को हम लोग युगानुकूल बना, फिर से पुनरुज्जीवित कर पाएँगे। युगानुकूल कहने का यह कारण है कि प्रत्येक युग में वह परंपरा उचित रूप धारण करके खड़ी हुई है। कभी केवल गिरि-कंदराओं में, अरण्यों में रहने वाले तपस्वी हुए तो कभी योगी निकले, कभी यज्ञ-यागादि के द्वारा और कभी भगवद्-भजन करनेवाले भक्तों और संतों के द्वारा यह परंपरा अपने यहाँ चली है।

युगानुकूल सद्य: स्वरूप

आज के इस युग में जिस परिस्थिति में हम रहते हैं, ऐसे एक-एक, दो-दो, इधर-उधर बिखरे, पुनीत जीवन का आदर्श रखनेवाले उत्पन्न होकर  उनके द्वारा धर्म का ज्ञान, धर्म की प्रेरणा वितरित होने मात्र से काम नहीं होगा। आज के युग में तो राष्ट्र की रक्षा और पुन:स्थापना करने के लिए यह आवश्यक है कि धर्म के सभी प्रकार के सिद्धांतों को अंत:करण में सुव्यवस्थित ढंग से ग्रहण करते हुए अपना ऐहिक जीवन पुनीत बनाकर  चलनेवाले, और समाज को अपनी छत्र-छाया में लेकर चलने की क्षमता रखनेवाले असंख्य लोगों का सुव्यवस्थित और सुदृढ़ जीवन एक सच्चरित्र, पुनीत, धर्मश्रद्धा से परिपूरित शक्ति के रूप में प्रकट हो और वह शक्ति समाज में सर्वव्यापी बनकर खड़ी हो। यह आज के युग की आवश्यकता है।

कौन पूर्ण करेंगे

इस आवश्यकता को पूरा करनेवाला जो स्वयंस्फूर्त व्यक्ति होता है वही स्वयंसेवक होता है और ऐसे स्वयंसेवकों की संगठित शक्ति ही इस आवश्यकता को पूर्ण करेगी ऐसा संघ का विश्वास है।

हमारी शाखा निम्नलिखित अपेक्षाओं को पूर्ण करे

* शाखा रोज लगे।
* निश्‍चित समय पर लगे।
* शाखा के निर्धारित समय से पूर्व अपने स्थान से निकलें व कम से कम दो मिनट पूर्व संघस्थान पर उपस्थित हो।
* कोई बुलाने आएगा, ऐसी प्रतीक्षा करना आवश्यक नहीं। स्वयं प्रेरणा का ध्यान रखें।
* जैसे हम अच्छे कार्य के लिए जाते हैं, तो अपने मित्रों को साथ बुलाकर ले जाते हैं। वैसे ही शाखा जाते समय आसपास जो स्वयंसेवक रहते हों, उन्हें पुकारकर साथ ले जाएँ। विचार करें कि मैं संगठन करनेवाला व्यक्ति हूँ, गटनायक या गणशिक्षक बनने पर ही काम करना नहीं है।
* शाखा में दैनिक भिन्न-भिन्न कार्यक्रम हो।
* संघस्थान के सभी कार्यक्रम मन लगाकर, अनुशासनपूर्वक, नियमानुसार करें। इन कार्यक्रमों से अनुशासन, आत्मविश्‍वास, निर्भयता, पराक्रम के भाव उत्पन्न होते हैं। इसलिए इन कार्यक्रमों का उत्तम अभ्यास करें।
* सभी स्वयंसेवकों में परस्पर बंधुत्व, प्रेम, मेलजोल, स्नेह हो।
* प्रार्थना श्रद्धा एवं उसका भाव समझकर करें।
* परम पवित्र भगवा ध्वज को मिलकर नम्रतापूर्वक प्रणाम करें।
* शाखा विकिर के बाद आपस में कौन आया, कौन नहीं आया, इसकी बातचीत करें। 
* नहीं आने वाले को कोई कठिनाई हो तो उसका निवारण करने का प्रयास करें। कठिनाई न हो, तो अकारण शाखा ना आने पर उसे समझाएँ।

यह है हमारा नित्य का न्यूनतम कार्य। इसके अतिरिक्त भी हमारे लिए कुछ कर्तव्य हैं।

पड़ोसी धर्म

पड़ोस धर्म के अनुसार हमें यह जानकारी करनी चाहिए कि इन पड़ोसियों का जीवनयापन कैसे चलता है? उनकी कठिनाइयाँ, दु:ख क्या हैं? कोई अस्वस्थ हुआ तो उनकी सहायता में तत्पर रहना पड़ोसी का धर्म है। तथा मनुष्यता भी है। अत: पड़ोस के घर-घर जाना, सबसे मिलना, बोलना, सबसे अत्यंत स्नेह और आत्मीयता के संबंध रखने का प्रयास करना और इस बात का भी कि सबके हृदय में हमारे बारे में ऐसी धारणा बने कि यह व्यक्ति विश्‍वास करने योग्य है, इसमें अपने प्रति निष्कपट, नि:स्वार्थ प्रेम है। यह अपना सच्चा मित्र है, नित्य अपना साथ देगा और जरूरत पड़ने पर सहायता के लिए दौड़ा आएगा। इस विश्‍वास के बल पर सब पड़ोसी मानो एक बड़ा परिवार बने हैं, ऐसा हम प्रयास करें।

संघ FAQ and Q&A

Q. संघ का पूरा नाम क्या है ? 
A. संघ का पूरा नाम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ।

Q. संघ के संस्थापक कौन है ? 
A. संघ के संस्थापक है डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार। डॉ. जी स्वातंत्र्य सेनानी थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र सेवा में ही समर्पित किया था। 

Q. संघ की स्थापना कहाँ और कब हुई ?
A. संघ की स्थापना नागपुर में, 1925 में हुई।

Q.संघ का सदस्य कौन बन सकता है ?
A. कोई भी हिंदू पुरूष संघ का सदस्य बन सकता है।

Q. क्या संघ में मुस्लिम और ईसाई को भी प्रवेश मिल सकता है?
A. भारत में रहने वाला ईसाई या मुस्लिम भारत के बाहर से नहीं आया है. वे सब यहीं के हैं. हमारे सबके पुरखे एक ही है। किसी कारण से मजहब बदलने से जीवन दृष्टि नहीं बदलती है। इसलिए उन सभी की जीवन दृष्टि भारत की याने हिन्दू ही है। हिन्दू इस नाते वे संघ में आ सकते हैं, आ रहे हैं और जिम्मेदारी लेकर काम भी कर रहे हैं। उनके साथ मजहब के आधार पर कोई भेदभाव या कोई स्पेशल ट्रीटमेंट उनको नहीं मिलती है। सभी के साथ हिन्दू इस नाते वे सभी कार्यक्रमों में सहभागी होते हैं।

Q. संघ की सदस्यता की प्रक्रिया क्या है ?
A. संघ सदस्यता की कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं है। कोई भी व्यक्ति नजदीक की संघ शाखा में जाकर संघ मेंसम्मिलित हो सकता है। संघ सदस्य को स्वयंसेवक कहते है। उसके लिए कोई भी शुल्क या पंजीकरण प्रक्रिया नहीं है।

Q. संघ के कार्यक्रमों में गणवेष क्यों होता है ? क्या यह स्वयंसेवक बनने के लिए अनिवार्य है ? उसको कैसे प्राप्त किया जाता है ?
A. संघ में शारीरिक कार्यक्रमों के द्वारा एकता का, सामूहिकता का संस्कार किया जाता है। इस हेतू गणवेष उपयुक्त होता है।परन्तु गणवेष विशेष कार्यक्रमों में ही पहना जाता है। नित्य शाखा के लिए वह अनिवार्य नहीं है। गणवेष की उपयुक्तता ध्यान में आने पर हर स्वयंसेवक अपने खर्चे से गणवेष की पूर्ति करता है।

Q. संघ का शाखा में निक्कर पहनने पर आग्रह क्यों है ?
A. यह आग्रह का नहीं परन्तु सुविधा का विषय है। शाखा में प्रतिदिन शारीरिक कार्यक्रम होते हैं।उसके लिए निक्कर यह सुविधाजनक तथा सबके लिए संभव ऐसा वेष है।

Q. शाखा क्या है ?
A. किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र के स्वयंसेवकों के एक घण्टे के प्रतिदिन मिलन को शाखा कहते है।

Q. एक घण्टे की शाखा में प्रतिदिन क्या कार्यक्रम होते हैं ?
A. प्रतिदिन की एक घण्टे की शाखा में विविध शारीरिक व्यायाम, खेल, देशभक्ति गीत, विविध राष्ट्र हित के विषयों पर चर्चा तथा भाषण और मातृभूमि की प्रार्थना होती है।

Q. संघ की भारत में कितनी शाखा और कितने स्वयंसेवक है ?
A. भारत में शहर और गाँव मिलाकर ५०,००० स्थानोंपर संघ की शाखा है। औपचारिक सभासदत्व न होने के कारण स्वयंसेवकों की संख्या बताना कठिन है।

Q. संघ केवल हिन्दुओं के संगठन की ही बात क्यों करता है? क्या वह एक धार्मिक संगठन है?
A. संघ में हिन्दू शब्द का प्रयोग उपासना, पंथ, मजहब या रिलिजन के नाते नहीं होता है। इसलिए संघ एक धार्मिक या रिलिजियस संगठन नहीं है। हिन्दू की एक जीवन दृष्टि है,एक View of Life है और एक way of life है। इस अर्थ में संघ में हिंदूका प्रयोग होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि Hinduism is not a religion but a way of Life. उदाहरणार्थ सत्य एक है। उसे बुलाने के नाम अनेक हो सकते हैं। उसे पाने के मार्ग भी अनेक हो सकते हैं। वे सभी समान है यह मानना यह भारत की जीवन दृष्टि है। यह हिन्दू जीवन दृष्टि है। एक ही चैतन्य अनेक रूपों में अभिव्यक्त हुआ है। इसलिए सभी में एक ही चैतन्य विद्यमान है इसलिए विविधता में एकता (Unity in Diversity )यह भारत की जीवन दृष्टि है। यह हिन्दू जीवन दृष्टि है। इस जीवन दृष्टि को मानने वाला, भारत के इतिहास को अपना मानने वाला, यहाँ जो जीवन मूल्य विकसित हुए हैं, उन जीवन मूल्यों को अपने आचरण से समाज में प्रतिष्ठित करनेवाला और इन जीवन मूल्यों की रक्षा हेतु त्याग और बलिदान करनेवाले को अपना आदर्श मानने वाला हर व्यक्ति हिन्दू  है, फिर उसका मजहब या उपासना पंथ चाहे जो हो।

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