नैमित्तिकानि

नैमित्तिकानि 

Naimittikani

मानवंदना :- 

1 - सरसंघचालक प्रणाम :- 

सरसंघचालक प्रणाम एक विशेष कार्यक्रम है। इस अवसर पर संघस्थान तथा स्वयंसेवकों की सुयोग्य पद्धति से रचना करनी चाहिए। रेखांकन, यथा आवश्यकतानुसार मंच, ध्वजमंडल सज्जा, घोषपथक, गणवेश आदि बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। प. पू. सरसंघचालक जी का संघस्थान की सीमा में प्रवेश होते ही मुख्यशिक्षक द्वारा आज्ञा - संघ दक्ष। तत्पश्चात्‌ (यदि स्वयंसेवक दंड सहित खड़े हैं तो 'स्कंध’) प. पू. सरसंघचालक जी के नियोजित स्थान पर (मंच पर) आकर स्वयंसेवकाभिमुख खड़े होने के पश्चात्‌ सरसंघचालकप्रणाम 1-2-3 होगा। उसके पश्चात्‌ घोष वादन होगा। पश्चात्‌ मुख्यशिक्षक 'आरम' (‘स्कंध' दिया हो तो 'भुजदंड' देकर) देगा। उसके बाद ध्वजारोहण आदि कार्यक्रम होंगे।

विशेष:-उपरोक्त कार्यक्रम मे अतिथि होने पर केवल स्वागतप्रणाम ही होगा। अतः सरसंघचालक प्रणाम के समय अतिथि नहीं रखना चाहिये। 

2 - स्वागतप्रणाम :- 

किसी कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि को आमंत्रित किया गया हो तो उन्हें भी उपरोक्त पद्धति से मानवंदना देनी चाहिए। इस समय कार्यक्रम में उपस्थित रहने वाले सर्वोच्च अधिकारी प्रमुख अतिथि के साथ आयेंगे। मुख्यशिक्षक पूर्ववर्णित पद्धति के अनुसार 'संघ दक्ष' (स्कंध) आदि आज्ञा देकर 'स्वागत प्रणाम 1-2-3' यह आज्ञा देगा। उसके पश्चात्‌ घोष वादन होगा। पश्चात्‌ मुख्यशिक्षक भुजदण्ड व आरम करायेगा। इसके बाद ध्वजारोहण होगा।  

3. प्रत्युत्नरचलनम्‌ :- 

सम्यज्चनम्‌ करवा कर स्वयंसेवको की सुयोग्य रचना करनी चाहिए। आज्ञा - संघ/ अनीकिनि/ वाहिनी प्रत्युत्नचलनम्‌ केन्द्रतः प्रचल (7 कदम चलकर 18 वें अंक पर दाहिना पैर मिलाना) ध्वजप्रणाम 1-2-3। यह कार्य भी घोष वादन के साथ अपेक्षित है। स्वयंसेवक यदि दंड सहित खडे हैं तो प्रत्युत्नुचलनम्‌ के पूर्व 'स्कंध' देना है। ध्वजप्रणाम की आज्ञा स्कंध स्थिति में ही होगी। 

4. प्रदक्षिणा संचलन :- 

इस कार्यक्रम के लिए अनीकिनी की रचना ध्वज के सामने तीन प्रकार से की जा सकती है। 

1. घनस्तंभव्यूह 
2. ततिघनस्तंभव्यूह 
3. ततिसमव्यूह 

1. ततिघनस्तंभव्यूह से स्तंभचतु्व्यृह :-  

मुख्यशिक्षक द्वारा आज्ञा –“प्रदक्षिणम्‌ संचलिष्यति स्तंभचतुर्व्यूह वाहिनीशः दक्षिणतः चतुर्व्यूह।“ 

इस आज्ञा के पश्चात्‌ सभी वाहिनियाँ दक्षिणदिक्‌ प्रचलनम्‌ चतुर्व्यूह करेंगी। पश्चात्‌ मुंख्यशिक्षक वाहिनी 1 को प्रचल की आज्ञा देगा। इसी समय घोष वादन प्रारंभ होगा। पश्चात्‌ अन्य सभी वाहिनी प्रमुख सुयोग्य समय पर अपनी- अपनी वाहिनी को “वाहिनी प्रचल”की आज्ञा देंगे।  
प्रदक्षिणा संचलन “अ” से “आ” स्थान तक चार प्रकार से हो सकता है। 

1. स्तंभचतुर्व्यूह 2. ततिस्तंभव्यूह 3. गणस्तंभव्यूह 4. स्तंभसमव्यूह
गणस्तंभव्यूह (ततिस्तंभव्यूह) में प्रदक्षिणा संचलन करना हो तो मुख्यशिक्षक की आज्ञा में स्तंभचतुर्व्यूह के बदले गणस्तंभव्यूह (ततिस्तंभव्यूह) यह शब्दप्रयोग रहेगा। इसमें चलते समय स्वयंसेवक स्तंभचतुर्व्यूह में रहेंगे और “अ” स्थान पर आते ही गणशिक्षक (वाहिनीप्रमुख) गण (वाहिनी) ततिव्यूह वामवृत की आज्ञा देगा। “आ" स्थान पर पहुँचने के पूर्व सुयोग्य समय पर गणशिक्षक (वाहिनीप्रमुख) गण (वाहिनी) दक्षिणदिक्‌ प्रचलनम्‌ चतुर्व्यूह की आज्ञा देंगे और 'आ' से पूर्व स्थान तक स्वंयसेवक स्तंभचतुर्व्यूह में चलेंगे। अन्य सभी मोड़ों पर भ्रमण होगा। 

2. स्तंभसमव्यूह में प्रदक्षिणा संचलन :- 

इस रचना में अनीकिनी / संघ प्रदक्षिणम्‌ संचलिष्यति स्तंभव्यूह विंशति पदांतरेण वाहिनीशः दक्षिणतः दक्षिणवृत' की आज्ञा अनीकिनी प्रमुख / मुख्यशिक्षक देगा। 

पश्चात्‌ प्रथम वाहिनी को अनीकिनी प्रमुख / मुख्यशिक्षक प्रचल की आज्ञा देगा। इसी समय घोषवादन प्रारंभ होगा। पश्चात्‌ अन्य वाहिनी प्रमुख सुयोग्य समय पर अपनी-अपनी वाहिनी को वाहिनी प्रचल की आज्ञा देंगे। 

समव्यूह की रचना :- समव्यूह में प्रदक्षिणा संचलन करने के लिए प्रत्येक वाहिनी की रचना सम्यञ्चनम्‌ कर समव्यूह में करनी चाहिए। सम्य॒ञ्चनम्‌ की पद्धति पूर्व में दी गई है। ततिव्यूह प्रचल के स्थान पर समव्यूह प्रचल की आज्ञा देनी है। शेष सभी आज्ञाओं में कोई अंतर नहीं है। 

'समव्यूह प्रचल' आज्ञा मिलते ही अग्रेसर के पास के स्वयंसेवक के पीछे आगे के 7 स्वयंसेवक 2-2 कदम पर (150 सें.मी.) जाकर स्तभ और वामवृत करेंगे। आगे का क्र. 9 स्वयंसेवक क्र. 1 के बाजू में 2 कदम पर स्तम और वामवृत करेगा। उसके बाद के 7 स्वयंसेवक उसके पीछे उपरोक्त प्रकार से खड़ें होगे। इस तरह कुल 8 प्रततियाँ तैयार होगी। बचा हुआ एक स्वयंसेवक वाम अग्रेसर रहेगा। 

भ्रमण की पद्धति :- इस प्रदक्षिणा संचलन में पहले मोड़ पर भ्रमण करना होता है। इसलिए मोड़ पर वर्तुलाकार रेखांकन चाहिए। 'अ' मोड पर वाहिनी वामवृत्‌ और 'आ' मोड़ पर 'वाहिनी दक्षिणवृत' की आज्ञा वाहिनी प्रमुख देंगे। अन्य सभी मोड़ों पर दक्षिणभ्रम होगा इसलिए वहाँ वर्तुलाकारः रेखांकन चाहिए। 

प्रदक्षिणा संचलन के मार्ग के अंत तक आने के पश्चात्‌ प्रत्येक वाहिनी प्रमुख वाहिनी को सुयोग्य आज्ञाएं देकर अपने पूर्व स्थान पर ले जाकर प्रारंभिक स्थिति में खड़ा करके आरम देगा। 


रक्षक समता।

प्रारम्भ स्थिति :- गण सम्पत, उन्मिष, आरम।

1. रक्षकः दक्षिण / वामदिक प्रचल। (दक्ष, स्कन्ध, एक पद पुरस्‌ सर, दक्षिण / वामवृत, प्रचल)
2. रक्षकः अर्धवृत (स्तभ, वाम/ दक्षिणवृत, वाम दक्षिणवृत, प्रचल) 
3. रक्षकः अग्रतः प्रणाम (स्तभ, वाम / दक्षिणवृतत, प्रणाम, दक्षिण / वामवृत, प्रचल)।
4. रक्षकः अग्रतः सिद्ध। (स्तभ, वाम//दक्षिणवृत सिद्ध, स्कंध दक्षिण/वामवृत, प्रचल) ।

स्कंध से सिद्ध करने की पद्धति :-

1. दाहिना हाथ बायें हाथ के ऊपर दंड़ पर पटकना।  
2 बायाँ हाथ जंघा के पास, दाहिना हाथ सीने के 
3. दंड बाहर निकाल कर दाहिना हाथ सीधा | दण्ड 135° कोण की दिशा में | 

4. सिद्ध की स्थिति। 

सिद्ध से स्कंध :- उपरोक्त काम का विपरीत करना 

5. रक्षकः अग्रतः आह्वय 

(स्तभ, वाम / दक्षिणवृत, सिद्ध) सिद्ध की स्थिति में आने के बाद अग्रेसर दाहिनी, बायीं ओर की आहट लेकर कहेगा-

“स्तभ, कोऽयमागच्छति, याहि मित्र, स्वस्ति सर्वम्‌, रक्षकाः चल” (अर्थ :- रूको, कौन आ रहा है? मित्र है, सब 
कुशल है रक्षकों आगे चलिये) पश्चात्
स्कंध, दक्षिण / वामवृत प्रचल) 

6. रक्षकः स्तभ 

(दक्ष, वाम/ दक्षिणंवृत, एक पद प्रतिसर, भुजदण्ड, आरम) 

सूचना :- रक्षक समता के काम प्रारम्भ करतें समय जिस दिशा में मुँह होगा उस दिशा में कभी भी पीठ नही आयेगी प्रयोग 2 से 6 के लिए आज्ञायें दाहिने पैर पर समाप्त होगी |


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