द्वंद्व के गति के प्रयोग
1. द्वंद्व के गति के प्रयोग
1.1. प्रयोग 1 - भूमिवंदन :-(निःयुद्ध सिद्धसे)
1.1.1. दाहिना पैर आगे लेकर दबते हुए पहले मोहरे पर हाथ ऊपर से लेते हुए सूर्यनमस्कार स्थिति में आना।
1.1.2. दाहिना पैर जमीन पर घसीटकर पीछे लेते हुए दाहिने कनिष्ठिकाधार से पार्श्वास्थि।
1.1.3. कमर को मरोड़ते हुए बायें हाथ से पहले मोहरे पर ऊर्ध्वक्षेप, दाहिना पैर आगे बढ़ाते हुए दाहिने हाथ से (कटिवलन कर) दमन।
1.1.4. दाहिने कूर्पर से दक्षिण पार्श्व पर वराही।
1.1.5. बायें पैर से पहले मोहरे पर ऊर्ध्वपाद, पैर सामने रखना।
1.1.6. दाहिने पैर से पहले मोहरे पर पार्श्वपाद पैर आगे रखना। दाहिने हाथ से प्रणाम।
1.1.7. बायाँ पैर दाहिने पैर से मिलाते हुए द्विहस्त पार्श्वक्षेपरोध से निःयुद्ध सिद्ध।
1.2. प्रयोग 2 :- (निःयुद्ध सिद्धसे)
1.2.1. दाहिना हाथ के मुष्ठिपृष्ठ से दूसरे मोहरे पर आधात, बायाँ हाथ सीने के सामने, शरीर दबा हुआ, दृष्टि दूसरे मोहरे पर।
1.2.2. दाहिना पैर तीसरे मोहरे पर रखते हुए दाहिनी कनिष्ठिकाधार से पार्श्वास्थि।
1.2.3. कटिवलन करते हुए पहले मोहरे पर दाहिने हाथ से सूर्यचक्र पर मुष्ठिप्रहार।
1.2.4. बायाँ पैर चौथे मोहरे पर रखते हुए बायें हाथ से अधोक्षेप। दाहिना हाथ पार्श्व में मुष्ठिसिद्ध।
1.2.5. उसी मोहरे पर दाहिना पैर निःयुद्ध सिद्ध में लाते हुए ट्विमुष्ठिका आघात।
1.2.6. दाहिना पैर बायें पैर के पास लाते हुए पहले मोहरे पर पार्श्वक्षेप, दृष्टि पहले मोहरे पर लाना।
1.2.7. पहले मोहरे पर अधोक्षेप रोध लेते प्रयोग सिद्ध।
1.3. प्रयोग 3 :- (प्रयोग सिद्ध से) –
1.3.1. दाहिना पैर बढ़ाते हुए दौनों हाथों से अ६ऐप्रकोष्ठ रोध।
1.3.2. बायाँ पैर आगे बढ़ाते हुए ऊर्ध्वप्रकोष्ठ रोध।
1.3.3. दोनों हाथों की मुष्ठियाँ बांधते हुए दोनों हाथ दाहिने बगल मे खींचते हुए दाहिना हाथ मुष्टिप्रहार सिद्ध में।
1.3.4. बाएँ हाथ के कनिष्ठिकाधार से सूर्यचक्र धकेलना।
1.3.5. दाहिना पैर आगे बढ़ाते हुए दाहिने हाथ से सूर्यचक्र पर मुष्ठिप्रहार।
1.3.6. दाहिने पैर से (सीने की ओर से) पीछे की ओर भ्रमणपाद, पैर रखते ही दाहिने हाथ से अधोक्षेप।
1.3.7. बायाँ पैर आगे बढ़ाकर करपृष्ठ से कनपटी पर बायें हाथ से आघात।
1.3.8. दाहिना पैर आगे बढ़ाकर बायें हथेली पर भ्रमणपाद, पैर रखते हुए वराही प्रकार-2 का आघात।
1.3.9. अपने सीने की ओर दाहिना हाथ ऊपर उठाते हुए दबकर (कमर सीधी) कूर्पर आघात, बायाँ हाथ मुष्ठिप्रहार सिद्ध में।
1.3.10. बायीं दिशा मे कूदते हुए (हवा मे घूमते हुए ) दोनों पैरों की कैंची बनाना और दोनों हाथों से प्रकोष्ठ रोध की स्थिति में मुष्टिप्रहार (पैरों की कैंची तथा मुष्ठिप्रहार एक साथ ) और बायाँ पैर आगे पहले मोहरे पर बढ़ाते हुए प्रयोग सिद्ध।
1.4. प्रयोग 4 :- (प्रयोग सिद्धसे)
1.4.1. दाहिना पैर आगे बढ़ाते हुए तीन मुष्ठिप्रहार।
1.4.2. बायें हाथ से दाहिने मुष्ठि के ऊपर ध्केलना दाहिना पैर पीछे रखते हुए, दाहिनी कनिष्ठिकाधार से जंघा पर आघात। (हाथ सिर पर से घुमाते हुए)
1.4.3. दाहिना पैर आगे बढाते हुए दाहिने हाथ से जबड़ा। (बायीं हथेली पर)
1.4.4. बायाँ पैर दाहिने पैर से पीछे से कैंची बनाते हुए दाहिने हाथ से पार्श्वास्थि, दाहिने पैर से उसी मोहरे पर पार्श्वपाद आघात, पैर वहीं जमाते हुए तीसरे मोहरे पर सिद्ध।
1.4.5. यही काम तीसरे मोहरे पर करना।
1.5. प्रयोग 5 :-(प्रयोग सिद्ध से)
1.5.1. बायाँ पैर चौथे मोहरे पर बढ़ाते हुए बायें हाथ से पार्श्वक्षेप।
1.5.2. उसी मोहरे पर दाहिना पैर बढ़ाते हुए मुष्टिप्रहार, पार्श्वक्षेप।
1.5.3.उसी मोहरे पर बायें पैर से ऊर्ध्वपाद, पैर आगे रखना।
1.5.4. बायाँ पैर रखते ही दाहिने पैर से अ्रमणपाद, पैर आगे रखना।
1.5.5. पैर रखते ही उसी मोहरे पर दाहिने हाथ से मुष्ठिप्रहार तथा पार्श्वक्षेप।
1.5.6. कटिवलन कर दूसरे मोहरे पर अधोक्षेप से सिद्ध।
1.5.7. यही काम शेष तीनों मोहरों पर करना।
2. संयुक्त प्रयोग
2.1. संयुक्त प्रयोग 1 :-(प्रयोग सिद्ध से)
2.1.1. बायाँ पैर चौथे माहरे पर रख बायें हाथ से पार्श्वक्षेप दहिने हाथ से सूर्यचक्र पर मुष्ठिप्रहार।
2.1.2. दाहिने पैर से उसी (चौथे) मोहरे पर पुरोपाद पैर पीछे दूसरे मोहरे पर रखते ही दाहिने हाथ से पार्श्वक्षेप बायें हाथ से मूष्ठिप्रहार।
2.1.3. उसी दिशा मे (दूसरे मोहरे पर) बायें पैर से पुरोपाद कर पैर पहले मोहरे पर रखते ही बायें हाथ से पार्श्वक्षेप दाहिने हाथ से मुष्ठिप्रहार।
2.1.4. दाहिने पैर से पहले मोहरे पर पुरोपाद, पैर तीसरे मोहरे पर रखते दाहिने हाथ से पार्श्वक्षेप बायें हाथ से मुष्ठिप्रहार।
2.1.5. तीसरे मोहरे पर बायें पैर से पुरोपाद कर पैर दूसरे मोहरे पर, बायें हाथ से पार्श्वक्षेप दाहिने हाथ से मूष्ठिप्रहार।
2.1.6. दूसरे मोहरे पर दाहिने पैर से पुरोपाद, पैर चौथे मोहरे पर रखते ही दाहिने हाथ से पार्श्वक्षेप, बायें हाथ से मृष्ठिप्रहार।
2.1.7. बायें पैर रो चौथे मोहरे पर पुरोपाद पैर तीसरे मोहरे पर रख बायें हाथ से पार्श्वक्षेप दाहिने हाथ से मुष्ठिप्रहार।
2.1.8. दाहिने पैर से तीसरे मोहरे पर पुरोपाद पैर पहले मोहरे पर रख, दाहिने हाथ से पार्श्वक्षेप, बायें हाथ से मुष्ठिप्रहार।
2.1.9. उसी दिशा मे पुरोपाद कर सिद्ध।
2.2. संयुक्त प्रयोग - 2 (धन्द्र सिद्ध से) –
2.2.1. दाहिना पैर समकोण से अधिक उठाकर, बायें पैर पर संतुलन बनाए रख, दाहिने हाथ का कार्पर दाहिने पैर के जानु के पास, मुष्ठि उपर, बायें हाथ कि हथेली दाहिने हाथ के कूर्पर के पास की स्थिति।
2.2.2. दाहिना पैर आगे बढाना, बायें हाथ से मुष्ठिप्रहार, दाहिने हाथ से पार्श्वक्षेप।
2.2.3. यही काम विपरीत पैर तथा हाथ से करना।
2.2.4. यही प्रयोग फिर करना।
2.3. संयुक्त प्रयोग - 3 (प्रयोग सिद्धसे)
2.3.1. दाहिने पैर से पहले मोहरे पर र्श्वपाद मारकर पैर आगे रखना।
2.3.2. बायें पैर से पहले मोहरे पर पादपृष्ठ मारकर पैर आगे रखना।
2.3.3. घूमकर दाहिने पैर से पहले मोहरे पर प्रतिपाद मारकर पैर आगे रखना।
2.3.4. पदविन्यास का क्षेप कर दाहिने पैर से ऊर्घ्वपाद मारकर पैर आगे रखना।
2.3.5. बायाँ पैर चौथे मोहरे पर रखकर द्वन्द्र सिद्ध।
2.3.6. बायाँ पैर दाहिने पैर से मिलाकर चौथे मोहरे पर बायें पैर से पार्श्वपाद मारकर बायाँ पैर दाहिने पैर से मिलाना। उसी समय दाहिना पैर दूसरे मोहरे पर बढ़ाते हुए इन्द्र सिद्ध।
2.3.7. दाहिने पैर बायें पैर से मिलाकर दूसरे मोहरे पर पार्श्वपाद मारकर पैर पहले मोहरे पर रखते ही दोंनों हाथों से पहले मोहरे पर द्विहस्त कनिष्ठिकाधार आघात, दाहिने हाथ से अधोक्षेप। (हथेली से)
2.3.8. दाहिना पैर पीछे तीसरे मोहरे पर बढ़ाते हुए बायें हाथ से नासिका पर मुष्ठि प्रहार, दाहिने हाथ से सूर्यचक्र पर मुष्ठिप्रहार, बायें हाथ से पार्श्वक्षेप। अधोक्षेप से तीसरे मोहरे पर सिद्ध।
2.3.9. यही काम तीसरे मोहरे पर करना।
3. कलरी प्रयोग
3.0. कलरी प्रयोग - कलरी सिद्ध :-
3.0.1. दक्ष से दाहिना पैर पीछे 2 फूट रखना ।
3.0.2. दूसरे मोहरे पर स्कंध रेखा घुमाते हुए, पंजों की दिशा भी उसी दिशा में लेना, दोनों हाथ खुले हुए।
3.1. कलरी प्रयोग 1 :- (कलरी सिद्ध से)
3.1.1. बायाँ हाथ से पार्श्वास्थी पर आघात कर हाथ उसी गति से पीछे ले जाना।
3.1.2. दाहिना पैर पहले मोहरे पर बढाते हुए दाहिने हाथ की हथेली से उपर से नीचे की ओर मुख पर आघात कर उसी गति में हाथ ले जाना।
3.1.3. उसी स्थिति से दाहिने हाथ से पार्श्वास्थि पर आघात।
3.1.4. दाहिना पैर पीछे ले जाते हुए बायें हाथ के हथेली से मुख पर आघात।
3.1.5. इसी का अभ्यास जोडी के साथ करना।
3.2. कलरी प्रयोग 2 :- (कलरी सिद्ध से) –
3.2.1. बायें हाथ से पार्श्वास्थि आघात कर हाथ उसी गति से पीछे ले जाना।
3.2.2. दाहिना पैर पहले मोहरे पर बढ़ाते हुए, दाहिने हाथ की हथेली से उपर से नीचे की ओर मुख पर आघात कर उसी गति में हाथ बढ़ाना।
3.2.3. उसी स्थिति में दाहिने हाथ से पार्श्वास्थि पर आघात।
3.2.4 उछलकर आगे जाते सूर्यचक्र पर मुष्ठिप्रहार।
3.2.5. बायें पैर से आगे ऊर्ध्वपाद पैर पीछे रखना।
3.2.6. आमने-सामने जोड़ी के साथ अभ्यास करना।
3.3. कलरी प्रयोग 3 :- (कलरी सिद्ध से)
3.3.1. बायें हाथ से पार्श्वास्थि पर आघात कर उसी गति से हाथ पीछे।
3.3.2. दाहिना पैर आगे बढ़ाते, दाहिने हाथ की हथेली से उपर से नीचे की ओर मुख पर आघात हाथ उसी गति में पीछे आयेगा।
3.3.3. बायाँ पैर पीठ की ओर से पहले मोहरे पर रखते ही बायें कनिष्ठिकाधार से पार्श्वास्थि पर आघात।
3.3.4. दाहिना पैर पहले मोहरे पर बढ़ाते ही आगे उछल कर दाहिने हाथ से मुष्ठिप्रहार।
3.3.5. यह प्रयोग जोड़ी के साथ करना।
3.4. कलरी प्रयोग 4 :- (कलरी सिद्ध से)
3.4.1. बायें हाथ से पाश्वास्थि पर आघात।
3.4.2. दाहिना पैर पहले मोहरे पर बढ़ाते ही दाहिने हाथ से मुख पर आघात।
3.4.3. बायाँ पैर पीठ की ओर पहले मोहरे पर रख बायें हाथ से पार्श्वास्थि पर आघात।
3.4.4. दाहिना पैर पीठ की ओर से पहले मोहरे पर बढ़ाते दोनो हथेली से पहले ओर तीसरे मोहरे पर मुख पर आघात।
3.4.5. यही क्रिया तीसरे मोहरे पर करना।
3.4. 6. यह प्रयोग 4 5 2 में करना।