मुक्त द्वंद्व का अभ्यास
1. मुक्त द्वंद्व के पूर्व की तैयारी :-
मुक्त द्वंद्व के अभ्यास के लिये निम्नलिखित प्रयोगों को क्रमशः अभ्यास करना चाहिए। इनके अच्छे अभ्यास के पश्चात् ही मुक्त द्वंद्व करना चाहिए, पहले प्रयोग की स्थिति 'प्रयोग सिद्ध' है। शेष प्रयोगों की स्थिति द्वंद्व सिद्ध में बायाँ हाथ प्रकोष्ठ रोध की स्थिति मे रखकर रहेगी। मुक्त द्वंद्व की तैयारी के लिए करने वाले प्रयोगों मे द्वंद्व सिद्ध यही स्थिति अपेक्षित है।
2. मुक्त द्वंद्ध :-
एक विरुद्ध एक। अभ्यास बढ़ने पर एक विरुद्ध दो लड़ना। नियंत्रण बनाकर रखना। एक विरुद्ध अनेक का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम एक स्वयंसेवक के चारों तरफ कई खड़े करना। सभी स्वयंसेवक बीच वाले को क्रमशः मुष्ठिप्रहार मारेगें व बीच का स्वयंसेवक मात्र रोध करेगा। धीरे-धीरे मार की गति एवं विविधता बढ़ाना। बाद में बीच वाले स्वयंसेवक को रोध के साथ मार के लिए भी प्रेरित करना। मुक्त द्वंद्व में यही ध्यान दिलाना कि बीच का स्वयंसेवक जिसकी तरफ बढ़ेगा वही कछ कर सकंगा। शेष स्वयंसेवक मार से छूकर उसे अपनी ओर आकर्षित करेगें अथवा चकमा देंगे। धीरे - धीरे पदविन्यास ठीक होने देना।
3. अभ्यास के लिये प्रयोग
3.1. (पहला स्वयंसेवक) दोनों हाथों से कोई भी मार बार बार निकालना। (दोनों हाथों से अभ्यास) (दूसरा स्वयंसेवक) एक हाथ पीछे कमर पर रखकर दूसरे हाथ से पार्श्वक्षेप।
3.2. (पहला स्वयंसेवक) एक के बाद एक दो मार विविध प्रकार से मारना। (दूसरा स्वयंसेवक) सदैव बचते हुए कम दूरी पर रहना।
3.3. (पहला स्वयंसेवक) केवल पैर से मारना। (दूसरा स्वयंसेवक) मार से बचते हुए पैर से ही मारना।
3.4. (पहला स्वयंसेवक) नसिका एवं वृषण बचाकर कोई भी मार। (दूसरा स्वयंसेवक) मार से बचते हुए नसिका एवं वृषण बचाकर कोई भी मार।
3.5. (पहला स्वयंसेवक) कोई भी मार। (दूसरा स्वयंसेवक) उत्क्षेप रोध एवं मार का अभ्यास करना।
3.6. (पहला स्वयंसेवक) हाथ से मार। (दूसरा स्वयंसेवक) पैर से उत्क्षेप।
3.7. (पहला स्वयंसेवक) पैर से मार। (दूसरा स्वयंसेवक) हाथ या पैर से उत्क्षेप।
4. बंध, भंग, मोटन तथा विमोचन
4.1. प्रतिद्दंद्वी ने अपना हाथ मरोड़कर पीठ की ओर से पकड़कर रखा है।
4.1. विमोचन :-
4.1.1. सिर से प्रतिद्वंद्वी के नासिका पर प्रहार।
4.1.2. खुले हाथ से वृषण पर आघात।
4.1.3. खुले हाथ से ऊपर से पीछे प्रतिद्वंद्वी के सिर पर पकड़ जमाते हुए स्कन्ध क्षेपण।
4.1.4. अपना खुला हाथ प्रतिद्वंद्वी के दोनों पैरों के बीच मे लेकर प्रतिद्वंद्ठ को स्कन्ध पर लाते हुए दाहिने हाथ से प्रतिद्वंद्वी का मणिबंध पकड़कर प्रतिद्वंद्वी को दाहिनी दिशा में फेंकना।
4.2. प्रतिद्वंद्वी ने पीठ की ओर से अपनी कमर पकड़कर रखी है तथा हाथ भी पकड़ में है।
4.2. विमोचन :-
4.2.1. सिर से प्रतिद्वंद्वी के नासिका पर प्रहार।
4.2.2 प्रयोग सिद्ध में जंघा के सहारे बाहू फैलाना।
4.2.3. दोनों हाथ से इत्रण पर आधघात।
4.2.4. दोनों कर्पर से वृषण पर आघात।
4.2.5. पुरो भ्रमण।
4.3. उपरोक्त प्रयोग में यदि हाथ पकड़ कें बाहर हो।
4.3. विमोचन :-
4.3.1. नासिका पर सिर का आघात।
4.3.2. वृषण पर आघात।
4.3.3. पीछे पैर से प्रतिद्वंद्वी के पीठ पर आघात।
4.3.4. दोनों हाथों से प्रतिद्वंद्वी के सिर पर पकड़ जमाते हुए स्कन्ध क्षेपण।
4.3.5. एक बाजू खिसकाना तथा दोनों हाथों का उपयोग करते हुए प्रतिद्वंद्दी को ऊपर उठाना तथा उछलकर उसको शरीर के बल गिराना।
5. बंध
5.1. सखी बंध –
प्रतिद्वंद्वी की मार बायें हाथ से रोक कर पकड़ना, दाहिना हाथ असके बायें कक्ष के नीचे लेकर उसके हाथ को अपने सीने से सटाते हुए उसका संतुलन नष्ट कर उसके दाहिने पैर पर अपने दाहिने पैर से अंदर से बाहर चक्राकार घुमाते हुए प्रतिद्वंद्वी के पूरे शरीर को झटका देकर चक्राकार घुमाकर चीत फैंकना।
5.2. बैठा नमाज बंध –
प्रतिद्वंद्वी के दाहिने हाथ से प्रहार होने पर बर्हिउत्क्षेपग्राह द्वारा पकड़ पर पार्श्वभंग करते हुए बायें पैर से प्रतिद्वंद्वी के दाहिने हाथ को लपेटते हुए दाहिने पैर के आगे हाथ को अडा देना तथा प्रतिद्वंद्वी के बैठने पर घुटने टेककर स्वयं बैठना।
5.3. बंगडा –
प्रतिद्वंद्वी के सामने खड़े होकर दाहिने हाथ से ऊपर से मार आते ही डुबकी लगाकर पीछे जाते हुए अपना दाहिना हाथ उसके दाहिने कक्ष के नीचे से उसकी गदन पर जमाना बायें हाथ को उसके कमर पर से लेते हुए उसके बायें कक्ष के नीचे अपने दाहिने हाथ के मणिबंध को पकडना एवं दाहिनी ओर झटका देकर कसना।
5.4. वजबंध –
प्रतिद्वंद्वी के सामने खड़े होकर दाहिने हाथ से ऊपर से मार आते ही डुबकी लगाकर अपना दाहिना हाथ उसकी गर्दन पर जमाना, पश्चात अपने बायें हाथ को प्रतिस्पर्धी के बायें कंधे से लेकर उसके हनु को हाथ से लपेटते हुए नीचे की ओर गिराना।
5.5. हस्तवलन ग्रीवा भंग (हलाक् बंध) –
प्रतिस्पर्धी के पीठ की तरफ से होकर दाहिने कंधे पर बायाँ हाथ रखकर दाहिना हाथ उसके दाहिने कंधे पर ले जाते हुए गर्दन पर से दूसरी ओर ले जाना और दाहिने हाथ से गले को लपेटते हुए अपने बायें हाथ का मणिबंध पकडना।
5.6. मयूर चोटी :- प्रकार -1 (यमपाश) –
प्रतिस्पर्धी का ऊपर से आघात आने पर दोनों से मणिबंध पकड़ना, दाहिने हाथ से मणिबंध को पकड़े हुए हाथ प्रतिद्वंद्वी की गर्दन में डालना (माला के समान) और प्रतिद्वंद्वी के पीठ के पीछे जाते हुए अपना बायाँ हाथ प्रतिद्वंद्वी के बायें हाथ के बाहर से अंदर की अपने दाहिने हाथ के प्रकोष्ठ का प्रतिस्पर्धी के जबड़े पर कसाव।
5.7. कस शलाका –
प्रतिस्पर्धी के दाहिने प॑जा उसकी गर्दन पर रखना। पश्चात् अपने ओर डालकर कसना साव देना। कक्ष के अंदर से दाहिना हाथ घुसाकर बायें हाथ को प्रतिद्वंद्वी के पीठ के पीछे उसके बायें हाथ में बाहर से अन्दर की ओर लपेटना। बाद में ग्रीवा को नीचे व हाथ को ऊपर उठाना।
6. क्षेपण (Throw) :- (द्वंद्व सिद्ध से)
6.1. हस्तक्षेपण :-
दाहिने हाथ सें मुष्ठिप्रहार - दाहिने हाथ से नीचे से ऊपर चक्राकार गति से बाहर से पकड़ते हुए दोनों हाथों द्वारा झटका देकर आगे झुकाना एवं उसके पीछे जाते हुए दोनों हाथों से टखने के पास पकडकर नितम्ब पर सिर का रेला देते हुए सम्मुख गिराना। पुरोनिपत करना।
6.2. पादक्षेपण :-
6.2.1. प्रकार 1 :- दाहिने हाथ सें मुष्ठिप्रहार - बायें हाथ से पार्श्वक्षेप लेते हुए मणिबंध पकड़कर दाहिने हाथ से स्कन्ध पकड़ना दाहिना पैर प्रतिद्वंद्वी के दाहिने पैर की पिंडली पर मारते हुए हाथ से खींचना, कंधे से धकेलते हुए संतुलन भंग करना। पाश्वनिपत् करना।
6.2.2. प्रकार 2 :- दाहिने हाथ से मुष्ठिप्रहार - बायें हाथ से पार्श्वक्षेप लेते हुए मणिबंध पकड़ना, दाहिने हाथ से सामने से कॉलर पर पकड़ जमाना, उसी समय नीचे बैठे हुए उसके पेट को पैर का आधार देते हुए ऊपर उठाना तथा पीछे फैंकना। पुरोभ्रमण करना।
6.3. चक्रक्षेपण :-
6.3.1. प्रकार 1 :- दाहिने हाथ सें मुष्ठिप्रहार - हाथ को उर्ध्वोत्षिप लेते हुए पकड़ना, सामने की ओर संतुलन बिगाड़कर दूसरे हाथ को प्रतिद्वंद्वी की जंघा में फसाकर अपने स्कन्ध पर पूरा शरीर उठाते हुए 3-4 चक्कर लगाकर सिर के बल फेंक देना।
6.3.2. प्रकार 2 :- दाहिने हाथ सें मुष्ठिप्रहार - बायें हाथ से पार्श्वक्षेप से रोककर बहिरमोटन करना। दाहिना हाथ पीछे की ओर से दोनों पैरों के बीच से अन्दर डालकर कधा अडाते हुए हाथ पैर की पकड़ के आधार पर ऊपर उठाते हुए चक्राकार घुमाना, संतुलन साधते ही यदि प्रतिद्वंद्वी का पैर थोड़ा ऊँचा करते ही सिर की ओर से नीचा किया तो प्रतिस्पर्धी सिर के बल गिरेगा।
7. दण्डापहरण :-
7.1. प्रतिद्वंद्वी द्वारा शिरोघात मारने पर :-
द्विपद पुरस् पदविन्यास से मार बचाकर आगे बढ़ते हुए पार्श्वास्थि पर पार्श्व पार्णिप्रहार। बायें पैर से उछलकर आगे बढ़ना, दोनों हाथों से रोध लेकर दण्ड पकड़ना, प्रतिस्पर्धी के घुटने पर दाहिने पैर से आघात। गति से आगे बढ़ते हुए प्रतिद्वंद्वी के पेट पर सिर से आघात। दोनों हाथों से कमर पकड़कर प्रतिद्वंद्वी को पीछे की ओर धकंलते हुए ले जाना। द्विपद पुरस् आगे बढ़कर प्रतिद्वंद्वी के सामने जाते ही बायें हाथ से गर्दन पर मार के साथ दबाना। दाहिना हाथ दोनों पैरों के बीच डालकर आगें फेंकना।
7.2. प्रतिद्वंद्वी द्वारा भेद मारने पर :-
द्विपद पुरस् के साथ आगे बढ़ते हुए बायें हाथ से दण्ड पकड़कर दाहिने हाथ से प्रतिद्वंद्वी के हाथों से ऊपर से नीचे चक्राकार घुमाते हुए दण्ड छुड़ाना व बायीं मुष्ठिका से प्रतिद्वंद्वी के नासिका पर आघात करते हुए दण्डापहरण करना। हाथ, पैर का उपयोग करना।
7.3. प्रतिद्वंद्वी द्वारा प्रभेद मारने पर :-
बायें हाथ से प्रतिद्वंद्वी मे मणिबंध पर पकड़ जमाते हुए प्रभेद रोकना और दाहिने पैर से जानु का आघात।
8. छुरिका अपहरण :-
8.1. प्रतिद्वंद्वी द्वारा ऊपर से आघात करने पर :-
कररोध से प्रतिद्वंदी का मणिबंध अपने हाथों से पकड़कर दाहिना पैर प्रतिद्वंद्वी के दाहिने पैर के पीछे ले जाना। उसी समय अपने दाहिने हाथ से उसको दाहिनी जंघा पर झुकाना। दाहिने कार्पर से 1. सूर्यचक्र पर 2. कंठ 3. नीचे से हनु पर आघात।
1. कूर्पर आधार स्कंध भंग :-
कररोध से प्रतिद्वंही का मणिबंध अपने हाथों से पकड़कर उसके हाथ को उसकी कोहनी से मोड़ते हुए उसकी हथेली उसके कंधे के पास ले जाना। बायाँ हाथ लपेटते उसका हाथ पीछे की ओर से नीचे खींचना तथा अपने दाहिने हाथ से उसका कूर्पप ऊपर की ओर उठाना।
2. प्रकोष्ठ प्राधार स्कंध मोटन :-
प्रतिद्वंद्वी का मणिबंध कररोध से पकड़ने के बाद दाहिना पैर प्रतिद्वंद्वी के दाहिने पैर के बाजू से बाहर की ओर रखकर उसके हाथ को कंधे की ओर कोहनी से पीछे की ओर मोड़ना और अपना दाहिना हाथ उसकी दाहिनी भुजा के नीचे से अंदर से बाहर की ओर लेकर उसी भुजा को लपेटते हुए प्रतिद्वंद्वी के उसी हाथ से मणिबंध को अंदर की ओर से पकड़ना और उसके हाथ को पीछे की ओर दबाते हुए मोटन करना।
प्रतिद्वंद्वी द्वारा नीचे से वार करने पर :-
स्कंध आधार कूर्पर भंग :-
1. प्रसर के द्वारा प्रतिद्वंद्वी के दाहिने बाजू में जाकर उसका मणिबंध कररोध द्वारा पकड़ना। हाथ बाहर की ओर मरोडते हुए बायें पैर के विन्यास द्वारा प्रतिद्वंद्वी प्रतिस्पर्धी के हाथ के नीचे से अंदर जाना तथा उसके कूर्पर पृष्ठ को अपने बायें स्कंध पर रखकर मणिबंध को नीचे की ओर दबाते हुए भंग करना।
2. बगल में जाते हुए ऊर्ध्वपाद से छुरिका वाले हाथ के मणिबंध पर जोर से आघात।
3. ऊपर से दाहिने हाथ से आघात आने पर तुरंत प्रतिद्वंह्दी के दाहिनी ओर से झुककर (डुबकी लगाकर) अपना दाहिना हाथ उठाते हुए प्रतिद्वंद्वी के पीछे जाते ते दाहिने हाथ से प्रतिद्वंद्वी के गर्दन पर पकड़ जमाते हुए अपने बायें हाथ से उसके बायें हाथ को ऊपर से अंदर की ओर लपेटते हुए अपने दोनों कोहनियों को ऊपर की ओर तानना।
4. प्रतिस्पर्धी द्वाव ऊपर से या नीचे से आघात आने पर भ्रमणपाद करना।
पदविन्यास के प्रयोग :-
1. मितकाल में दोनों ओर पुरोपाद, पार्श्वपाद करना।
2. क्षेप तूर्य, अर्ध एवं परिवृत में पुरोपाद, ऊर्ध्वपाद करना।
३ खंजोड्डीन के साथ पार्श्वपाद।
4. प्रड़ीन के साथ पार्श्वपाद तथा भ्रमणपाद।
5. संडीन के साथ अंतिम पैर रखते समय प्रतिपाद।
6. वाम तथा दक्षिणमंडल भ्रमण के साथ करना।
अभ्यासार्थ प्रयोग
प्रयोग 1 -
1. दायें हाथ से रोककर।
2. बायें हाथ से घुटना पकड़कर।
3. जमीन पर दबाकर रखकर।
प्रयोग 2 -
1. पीछे से आकर गर्दन और हाथ बंद करके।
2. आगे से मुड़ने के बाद पैर पकड़ कर।
3. कोहनी के साथ ऊपर गिरकर पैर से प्रयोग कण्ठा।
प्रयोग 3 -
दायें हाथ के प्रहार को बायें हाथ से रोककर।
घुमाकर एल (L) आकार बनाकर।
बायाँ हाथ अंदर से खींचकर।
मुष्ठी प्रहार सूर्यचक्र पर।
जमीन पर लिटाकर पैर दबाना। कोई भी सामने वाला हमले के लिए प्रयोग कर सकता है।
प्रयोंग 4 -
1. चरण का प्रहार पकड़ कर।
2. ऊपर उठाकर चरण प्रयोग लिंग पर।
3. बायाँ हाथ पैर के नीचे से लेकर गर्दन पकड़कर।
4. चरण प्रयोग ‘L' लिंग पर।
5. पैर से गिराकर पूरी तरह बंद कण्ठ पर।
प्रयोग 5 -
1. हाथ से रोककर।
2. छतरी से अपनी ओर दबाकर।
3. पीछे मुड़ाकर पूरी तरह भंग।
प्रयोग 6 -
1. दक्षिण प्रहार से बचाकर वामप्रहार आगे जाकर पकड़कर।
2. दण्ड गर्दन के पीछे ले जाकर बंद करके।
3. पीछे की ओर मुड़ाकर जमीन पर गिराकर पूर्ण रूप से बंद।