सम्यञ्चनम्
सम्यञ्चनम् :-
1. अग्रेसर - गण का अग्रेसर दक्ष कर प्रचलन करते हुए गणशिक्षक के सामने आकर तीन कदम की दूरी पर स्तभ कर दक्ष में खड़ा होगा।
2. अग्रेसर आरम - अग्रेसर आरम करेगा।
3. उन्नतानुसारम् एकशः संपत :- ऊँचाई के अनुसार सब स्वयंसेवक अग्रेसर की बायीं ओर एक तति में खड़े होंगे तथा सम्यक् देखकर क्रमशः आरम करेंगे।
4. दक्ष - सब स्वयंसेवक दक्ष करेंगे।
5. गणविभाग - दाहिनी ओर से स्वयंसेवक गणविभाग के अनुसार क्रमांक कहेंगे। अग्रेसर क्रमांक नहीं कहेगा।
6. द्वितति - अग्रेसर तथा क्रमांक 1 के स्वयंसेवक दो कदम आगे आयेंगे।
7. प्रथमोनिश्चल: अवशेष तति, दक्षिणवाम वृत- अग्रेसर तथा पहला स्वयंसेवक रिथर रहेंगे। प्रथम तति दक्षिणवृत और द्वितीय तति वामवृत करेगी।
8. ततिव्यूह प्रचल - प्रथम तति का दूसरा स्वयंसेवक पहले स्वयंसेवक के पीछे दो कदम की दूरी पर स्तभ कर वामवृत करेगा। प्रथम तति का तीसरा स्वयंसेवक पहले स्वयंसेवक के पास पहुँचकर स्तभ करेगा। प्रथम तति का चौथा स्वयंसेवक तीसरे स्वयंसेवक के दाहिनी ओर दो कदम की दूरी पर सम्यक् देखकर स्तभ करेगा। पश्चात् प्रतति एक साथ वामवृत् करेगी। प्रततियाँ बनती जायेंगी। प्रचल प्रारंभ होते ही द्वितीय तति दो बार दक्षिण भ्रम करते हुए प्रथम तति का अनुसरण करेगी।
9. आरम - सब स्वयंसेवक आरम करेंगे।
उपरोक्त प्रकार से वाहिनी, अनीकिनी आदि का भी सम्यञ्चनम् होता है।
1. ततिव्यूह में चलते समय चतुर्व्यूह करके दिशा बदलनाः-
अ) - दक्षिणदिक् प्रचलनम् चतुर्व्यूह :- बायाँ पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी | सभी स्वंयसेवक दाहिना पैर आगे बढ़ाकर गतिरोध करेंगे | तत्पश्चात् -
1. विषम क्रमांक तथा वाम अग्रेसर दाहिने पैर के पास दो मितकाल कर बायाँ पैर आगे रखेंगे। सम क्रमांक बायाँ पैर उसी रथान पर पटककर दाहिना पैर दाहिनी ओर 75 सें.मी. अंतर पर रखकर बायाँ पैर आगे रखेंगे | (दाहिनी बाजू के स्वयंसेवक के पीछे)
2. दक्षिण अग्रेसर बायें पैर का दाहिने पैर के पास मितकाल कर दाहिना पैर दाहिनी ओर 75 सें.मी. अंतर पर रखकर बायाँ पैर आगे रखेंगे। यहाँ तक दिशा परिवर्तन नहीं होगा।
3. सभी स्वयंसेवक दाहिना पैर दक्षिणवृत की दिशा में डालकर चलना प्रारंभ करेंगे |
आ) - वामदिक् प्रचलनम् चतुर्व्यूह :- बायाँ पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी, सभी स्वयंसेवक दाहिना पैर आगे बढ़ाकर गतिरोध करेंगे | तत्पश्चात् -
1. सभी स्वयंसेवक दक्षिणदिक् प्रचलनम् चतुर्व्यूह के विभागशः 1 के अनुसार अपना अपना काम करेंगे।
2. दाहिना पैर उसी दिशा में आगे बढ़ाकर बायाँ पैर वामवृत की दिशा में डालकर चलना प्रारंभ करेंगे।
गण में संख्या कम या अधिक होने पर - दक्षिण / वामदिक् प्रचलनम् चतुर्व्यूह
1. गण में एक संख्या कम होने पर द्वितीय तति का सरा स्वयंसेवक एक कदम पीछे जायेगा।
2. गण में दो संख्या कम होनें पर अंतिम प्रतति | अंतसे सम क्रमांक का व उपान्त्य प्रतति विषम क्रमांक का कार्य करेगी | द्वितीय तति का अन्त से तीसरा स्वयंसेवक एक कदम पीछे जायेगा |
3. गण में तीन संख्या कम होने पर अंतिम प्रतति सम क्रमांक का व उपान्त्य प्रतति विषम क्रमांक का कार्य करेगी
2. चतुर्व्यूह में चलते समय दिशा बदलकर ततिव्यूह करना :-
अ) - ततिव्यूह वामवृत :- बायाँ पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी, सभी स्वयंसेवक दाहिना पैर आगे बढ़ाकर गतिरोध करेंगे। तत्पश्चात् -
1. सभी स्वयंसेवक बायाँ पैर वामवृत की दिशा में रखकर दाहिना पैर आगे बढ़ायेंगे |
2. विषम क्रमांक व वाम अग्रेसर दाहिने पैर के पास दो मितकाल करेंगे |
3. सम क्रमाक बायाँ पैर बायीं ओर 75 सें. मी. पर रखकर दाहिना पैर आगे (75 सें.मी.) बढ़ायेंगे |
4. दक्षिण अग्रेसर बायाँ पैर 75 सेंमी. बायीं ओर रखकर दाहिने पैर से बायें पैर के पास मितकाल करेगा |
5. पश्चात् समी स्वंयसेवक बायें पैर से चलना प्रारंभ करेंगे।
आ) - ततिव्यूह दक्षिणवृत :- दाहिना पैर जमीन पर आते समय आज्ञा मिलेगी | सभी स्वंयसेवक बायाँ पैर आगे बढ़ाकर गतिरोध करेंगे। तत्पश्चात् -
1. सभी स्वयंसेवक दाहिना पैर दक्षिणवृत की दिशा में रखेंगे।
2. विषम क्रमांक व वाम अग्रेसर दाहिने पैर के पास दो मितकाल करेंगे |
3. सम क्रमांक बायाँ पैर बायी ओर 75 सें मी. पर रखकर दाहिना पैर आगे (75 सेमी.) बढायेंगे |
4. दक्षिण अग्रेसर बायाँ पैर 75 सें.मी, बायीं ओर रखकर दाहिने पैर से बायें पैर के पास मितकाल करेगा |
5. पश्चात् सभी स्वयंसेवक बायों पैर से चलना प्रारंभ करेंगे।
गण में कम या अधिक संख्या होने पर जो स्वयंसेवक (द्वितीय तति का) चतुर्व्यूह में एक कदम पीछे जाता है उसका ततिव्यूह वाम / दक्षिणवृत :- सबके साथ वाम / दक्षिणवृत करने के पश्चात् युगव्यूह के विभागशः 2 व 3 में एक कदम (दाहिने पैर से) आगे आयेगा।
उपरोक्त कार्य चलते समय :- सबके साथ वामवृत तथा दाहिना पैर आगे बढ़ायेगा। (दक्षिणवृत के समय सबके साथ दक्षिणवृत करेगा |) उसके बाद :-
1. बायें पैर से दाहिने पैर के पास एक मितकाल
2. दाहिना पैर 75 सें.मी. आगे बढ़ायेगा।
3. सबके साथ बायें पैर से प्रचल करेगा।
गण में अन्त्य प्रतति विषम होने पर अन्त्य प्रतति के स्वयंसेवक सम क्रमांक के समान युगव्यूह का कार्य करेंगे।
3. चतुर्व्यूह से उसी दिशा में मुँह रखकर ततिव्यूह करना।
वामेन / दक्षिणेन ततिव्यूह :
अ) स्थिर स्थिति से :-
विमागशः 1 विषम क्रमांक व वाम अग्रेसर स्थिर खड़े रहेंगे तथा दक्षिण अग्रेसर व सम क्रमांक युगव्यूह का अपना-अपना कार्य करेंगे।
विभागशः 2- दक्षिण / वाम अग्रेसर बायें पैर से दो कदम आगे चलकर मितकाल करेगा व अन्य सभी वामार्ध/ दक्षिणार्ध वृत की दिशा में बायें पैर से प्रचल प्रारंभ करते हुए प्रततिशः अग्रेसर की बायीं / दाहिनी ओर ततिव्यूह में आकर मितकाल करेंगे।
आ) चलते समय : दाहिनी/बायीं दिशा में चलते समय दाहिने / बायें पैर पर आज्ञा पूर्ण होगी | सभी बायें / दाहिने पैर का गतिरोध करेंगे, पश्चात् - आज्ञा में स्तव्धावसानम्' जोड़ने पर मितकाल नहीं करेंगे।
वामेन ततिव्यूह
दक्षिण अग्रेसर का कार्य
1. दाहिना पैर पीछे 75 सें.मी. पर पटकना।
2. बायें पैर का दाहिने पैर के पास मितकाल।
3. दाहिने पैर से मितकाल कर बायें पैर से दो कदम आगे चलकर मितकाल
वाम अग्रेसर का कार्य
1. दाहिने पैर का बायें पैर के पास मितकाल
2. बायें पैर का मितकाल
3. दाहिने पैर से मितकाल कर बायें पैर से वामार्ध बायीं ओर ततिव्यूह में आकर मितकाल करना।
सम क्रमांक का कार्य
1. दाहिना पैर पीछे 75 सें.मी. पर पटकना।
2. बायाँ पैर बायीं ओर 75 सें.मी. पर रखना।
3. दाहिने पैर से मितकाल कर बायें पैर से वामार्ध वृत की दिशा में चलना और दक्षिण अग्रेसर की बायीं ओर ततिव्यूह में आकर मितकाल करना।
विषम क्रमांक का कार्य
1. दाहिने पैर का बायें पैर के पास मितकाल
2. बायें पैर का मितकाल
3. दाहिने पैर से मितकाल कर बायें पैर से वामार्धवृत की दिशा में चलना और दक्षिण अग्रेसर की बायीं ओर ततिव्यूह में आकर मितकाल करना।
चतुर्व्यूह में पीछे जाने वाले का कार्य :-
1. दाहिने पैर का बायें पैर के पास मितकाल
2. बायाँ पैर बायीं ओर 75 सें.मी. पर रखना
3. दाहिने पैर से मितकाल कर बायें पर से वामार्ध वृत की दिशा में चलना और दक्षिण अग्रेसर की बायीं ओर ततिव्यूह में आकर मितकाल करना।
दक्षिणेन ततिव्यूह
दक्षिण अग्रेसर का कार्य
1. बायाँ पैर 75 सें.मी. आगे बढाना।
2. दाहिने पैर का बायें पैर के पास मितकाल।
3.बायें पैर से मितकाल और दाहिने पैर से दक्षिणार्ध वृत की दिशा में चलना और वाम अग्रेसर के दाहिनी ओर ततिव्यूह में आकर मितकाल करना।
वाम अग्रेसर क्रा कार्य
1. बायें पैर का दाहिने पैर के पास मितकाल
2. दाहिने पैर का मितकाल।
3. बायें पैर से मितकाल कर दाहिने पैर से दो कदम आगे बढ़कर मितकाल करना।
सम क्रमांक का कार्य
1. बायाँ पैर 75 सें.मी. आगे बढ़ाना।
2. दाहिना पैर दाहिनी ओर 75 सेंमी. पर रखना।
3. बायें पैर से मितकाल कर दाहिने पैर से दक्षिणार्ध वृत की दिशा में चलना और वाम अग्रेसर के दाहिनी ओर ततिव्यूह में आकर मितकाल करना |
विषम क्रमांक का कार्य
1. बायें पैर का दाहिने पैर के पास मितकाल
2. दाहिने पैर का मितकाल।
3. बायें पैर से मितकाल कर दाहिने पैर से दक्षिणार्धवृत की दिशा में चलना और वाम अग्रेसर के दाहिनी ओर ततिव्यूह में आकर मितकाल करना |
चतुर्व्यूह में पीछे जाने वाले का कार्य :-
1. बायें पैर का दाहिने पैर के पास मितकाल
2. दाहिना पैर दाहिनी ओर 75 से.मी.
3. बायें पैर का दाहिने पैर. के पास मितकाल कर दाहिने पैर से दक्षिणार्ध वृत की दिशा में चलकर वाम अग्रेसर के दाहिनी ओर आकर ततिव्यूह में मितकाल करना |
4. कर्णसंचलनम् दक्षिणार्ध/वामार्ध वृत :-
स्थिर स्थिति से :- आज्ञा होते ही सब स्वयंसेवक दक्षिणार्ध / वामार्ध वृत करेंगे और प्रचल की आज्ञा होने के पश्चात् ठीक से सम्यक देखकर चलेंगे। सम्यक देखते समय सामने के स्वयंसेवको की रीढ़ की हड्डी तथा पीछे के स्वयंसेवक का दाहिना या बायाँ कंधा (स्थिति के अनुसार) एक सीध में चाहिए।
चलते समय :- यह आज्ञा दाहिने/ बायें पैर पर पूर्ण होगी। बायाँ/दाहिना पैर आगे बढ़ाकर दाहिने/ बायें पैर से दक्षिणार्ध / वामार्धं वृत कर उसी दिशा में सम्यक् देखकर चलेंगे |
5. गणप्रस्थानम् वामार्ध/दक्षिणार्ध वृत :- यह आज्ञा बायें/दाहिने पैर पर आज्ञा पूर्ण होगी | दाहिना/बायाँ पैर आगे बढ़ाकर बायें,/ दाहिने पैर से वामार्घ/दक्षिणार्घ वृत कर उसी दिशा में सम्यक् दे2कर चलेंगे।
6. क्षिप्रचल (दक्ष स्थिति से) :- बायें पैर से दौड़ना प्रारंभ करना। (कदमों का अन्तर 400 सें.मी. रहेगा) दोनों हाथ स्वाभाविक रूप से सीने के सामने रहेंगे।
7. क्षिप्रचल से स्तभ : - दाहिने पैर पर आज्ञा मिलेगी। तीन कदम दौड़कर दाहिना पैर बायें पैर से मिलाकर रुकना। रुकते ही दोनों हाथ स्वाभाविक रूप से दक्ष स्थिति में लाना।
8. क्षिप्रचल में अर्धवृत - बायें पेर पर आज्ञा पूर्ण होगी। तीन कदम. आगे जाकर अर्धवृत करना। (प्रचल में अर्धवृत के समान किन्तु क्षिप्रचल की गति में)
9. मन्दचल :- चलते समय ऊपर का शरीर सीधा और हाथ दक्ष के स्थिति जैसे ही रहेंगे, बायाँ पैर 75 सें. मी. आगे बढ़ाना, बाद में दाहिना पैर 37.5 सेंमी. आगे लेना। दाहिना पंजा जमीन से समानांतर और दक्ष स्थिति जैसा थोड़ा बाहर की ओर मुड़ा रहेगा। शरीर का भार बायें पैर पर रहेगा | इसी स्थिति में आधा सेकण्ड रुककर दाहिने पैर के साथ सारा शरीर 37.5 सेंमी. आगे बढ़ाकर दाहिना पैर जमीन पर रखना | एड़ी पहले टिकानी चाहिए। दाहिना पैर रखते ही बायाँ पैर उठाकर झटके से दाहिने पैर से 37.5 सें.मी. आगे बढ़ाना। शरीर का भार उस समय दाहिने पैर पर रहेगा | इसी प्रकार मंदचल की गति में आगे बढ़ते जाना।
10. मन्दचल से स्तभ :- बायें पैर पर आज्ञा पूर्ण होगी | पश्चात् दाहिना पैर मन्दचल की गति से आगे लेकर बायें पैर से मिलाना |
11. मन्दचल में वर्तन :- वाम, वामार्ध, दक्षिण, दक्षिणार्ध और अर्धवृत सारी आज्ञायें प्रचल के अनुसार ही रहेंगी | वर्तन की क्रिया भी वैसी ही होगी | केवल गति मन्दचल की रहेगी |
12. गत्यन्तर :-
1. मन्दचल से प्रचल :- आज्ञा दाहिने पैर पर समाप्त होगी | पश्चात् बायाँ पैर मंदचल की गति से रखते ही प्रचलन प्रारंभ होगा|
2. प्रचल से मन्दचल :- आज्ञा बायें पैर पर समाप्त होगी। पश्चात् दाहिना और बायाँ पैर प्रचल की गति से डालकर दाहिना पैर मन्दचल की गति से डालना बायाँ पैर रखते ही हाथों की हलचल बंद होगी |
विशेष रचनायें :-
1. त्रिव्यूह :-
1. अग्रेसर - इस आज्ञा पर शिक्षक के सामने तीन कदम पर अग्रेसर आकर दक्ष में खड़ा रहेगा |
2. अग्रेसर आरम - अग्रेसर आरम करेगा |
3.गण/वाहिनी त्रिव्यूह संपत - सभी स्वयंसेवक अग्रेसर की बायीं ओर तीन ततियों में संपत करँगे | दो ततियों के बीच दो कदम तथा दो स्वयंसेवको के बीच 75 सें.मी. अन्तर होगा।
2. षड्व्यूह :-
1. संख्या, त्रिव्यूह में संपत् होने के पश्चात् ।
2. गण/वाहिनी षड्व्यूह :- समक्रमांक चतुर्व्यूह के समान क्रिया करेगा।