चर्चा बिंदु - बैठकों का महत्व, सिद्धता व संचालन

Baithakon Ka Mahatva


बैठकों का महत्व, सिद्धता व संचालन

राष्ट्र की सर्वागीण उन्नति करने के लिये आवश्यक है कि सभी क्षेत्रों में कार्य हो। पूज्य डॉक्टर जी ने कहा था, “जहाँ-जहाँ हिन्दू रहता है वहाँ-वहाँ संघ पहुँचना चाहिये।” अर्थात् प्रत्येक जिला, खण्ड, नगर, न्याय पंचायत, ग्राम सभा व गाँव तथा गाँव के सभी परिवारो, मौहल्लों व बस्तियों-उपवस्तियों व उनके भी सभी परिवारो में स्वयंसेवक हो। ग्राम तथा मोहल्ले की शाखाओ में सभी गलियों से स्वयंसेवक आने चाहिये। धीरे-धीरे पूर्ण जिला, पूर्ण खण्ड, पूर्ण मण्डल, पूर्ण नगर व पूर्ण बस्ती की ओर बढ़ना। पूर्ण मण्डल अर्थात् मण्डल के सभी गाँवों में शाखा, पूर्ण नगर अर्थात् नगर की सभी बस्तियों में शाखा। समाज के सभी वर्गो, जाति-बिरादरी, मत-पंथ-सम्प्रदायों को अपने कार्य के अन्तर्गत लाना ही सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठन करना हे। अतः हिन्दू समाज के सभी वर्गों, जाति-बिरादरी, मत-पंथ-सम्प्रदायों, उपपंथों व सभी दलों के बन्धुओं को शाखा मे लाने का प्रयास हो। इसी प्रकार सभी आयु वर्ग के, सभी प्रकार की प्रतिभाओं व विभिन्न व्यवसाय करने वाले बन्धुओं को भी शाखा से जोड़ना चाहिये। श्रेणीशः बैठकों का भी उपयोग करना चाहिये। 


बैठकों का महत्व

कार्य की योजना बनाने, कार्यकर्ताओं के गुणात्मक विकास, वैचारिक स्पष्टता, सिद्धता, प्रखरता एवं दृढता निर्माण करने तथा सामूहिक निर्णय हेतु, निश्चित व निर्धारित अन्तराल पर विभिन्न स्तरों पर (भौगोलिक एवं दायित्वानुसार) बैठकें होती है।


बैठकें क्यों?

  • विचारधारा की स्पष्ट कल्पना देने के लिये।
  • कार्यकर्ताओं की सक्रियता एवं गुणवत्ता बढ़ाने के लिये।
  • शाखा की उपस्थिति व कार्यक्रमों पर विचार विमर्श हेतु।
  • कार्यक्रमों (नैपुण्य वर्ग, एकत्रीकरण आदि) को सुसंचालित करने व कार्यकर्ताओं की मानसिक सिद्धता हेतु ।
  • योजना पक्ष पर विचार करने के लिये।


बैठकों के प्रकार-

  1. योजनात्मक 
  2. गुणात्मक
  3. नियमित- साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, वार्षिक आदि व कार्यकर्ताओं के स्तर के अनुसार ।
  4. नैमित्तिक- किसी विशेष कार्यक्रम की तैयारी या उत्सव के लिये बाद मे मूल्यांकन व समीक्षा हेतु।
  5. श्रेणी बेठक- यथा विद्यार्थी, कर्मचारी, व्यवसायी आदि।


सिद्धता-

  • बैठक का उद्देश्य निश्चित करना।
  • पर्याप्त समय पूर्व अपेक्षित कार्यकर्ताओं की सूची, स्थान, समय, दिन व दिनांक निश्चित करना तथा सूचना देने के लिये सूची का विभाजन करना।
  • बैठक की व्यवस्था- बैठक का स्थान, व्यवस्थिता, स्वच्छता, बिछावन, प्रकाश, प.पू. डॉक्टर जी एवं श्रीगुरु जी के चित्र, मालाय, अगरबत्ती/धूप, गणगीत, अधिकारी का स्थान आदि।
  • जो अपेक्षित हो उन सभी को उपस्थित रहने का आग्रह ।


संचालन-

  • बैठक का वातावरण उत्साहित करने वाला आशा, उत्साह, प्रेरणा व प्रफुल्लता प्रदान करने वाला हो (बैठक में रोते हुए आने वाले भी हँसते हुए अर्थात् प्रसन्न होकर जाये) ।
  • बड़ी बैठक कम समय की तथा छोटी बैठक अधिक समय की।
  • बैठक के विषयों का पूर्व एवं पूर्ण चिंतन। बैठक के विषयों की बैठक से पूर्व छोटी टोली के साथ चर्चा करना। (बड़ी बैठक से पूर्व छोटी बैठक)।
  • सकारात्मक उत्तर देने वालों से ही पहले पूछना (माननीय बालासाहब द्वारा बैठक लेने का उदाहरण) लेकिन बैठक मे सभी को सहभागी बनाना।
  • अनुपस्थित बन्धुओं को भी बैठक में हुई चर्चा एवं निर्णयों के बारे में बताने हेतु उपयुक्त एवं त्वरित व्यवस्था होनी चाहिये।
  • अनौपचारिक बैठक महत्वपूर्ण- अनौपचारिक मिलना अधिक परिणामकारी।


document.write(base64decode('encoded string containing entire HTML document'));
और नया पुराने

ads

ads

نموذج الاتصال