चर्चा बिंदु - शाखा टोली (कार्यकर्ता)

Shakha Toli Karykarta

शाखा टोली (कार्यकर्ता)

(कार्यवाह, मुख्य शिक्षक, गण शिक्षक, गटनायक )

  1. शाखा कार्यवाह - शाखा क्षेत्र का प्रमुख है। मुख्य शिक्षक व शाखा टोली को सम्भालना एवं उसका विकास करना, अभिभावकों से सम्पर्क व संवाद रखना। शाखा को मुहल्ले से व मुहल्ले को शाखा से जोड़ना प्रमुख कार्य।
  2. मुख्य शिक्षक - शाखा टोली का विकास, 60 मिनट की शाखा के कार्यक्रमों की रचना व संचालन, गट एवं गण व्यवस्था को विकसित करना। गणशः कार्यक्रमों का संचालन करना।
  3. गण शिक्षक - गण का शिक्षक। संघस्थान पर अपने गण को संचालित करना, उत्साह व मस्ती से परिपूर्ण शारीरिक कार्यक्रमों की संरचना एवं क्रियान्वयन करना। साथ ही गटनायकों व अपने स्वयंसेवकों से स्नेह सम्बन्ध रखना।
  4. गटनायक - गट का प्रमुख। अपने मोहल्ले, गली में नेतृत्व प्रदान करने वाला। अपने गट के स्वयंसेवकों उनके परिवारजनों तथा अन्य नये बन्धुओं से सम्पर्क-संवाद करने तथा उनको शाखा पर लाने वाला व उनके सुख-दुख मे सहभागी होने वाला। क्षेत्र के प्रत्येक घर से संपर्क तथा प्रत्येक घर से स्वयंसेवक बनाना गटनायक का मुख्य कार्य है।

  • गटनायक याने उस क्षेत्र का नायक- प.पू. श्रीगुरुजी।
  • क्षेत्र के प्रत्येक घर से सम्पर्क तथा प्रत्येक घर से स्वयंसेवक बनाना।


स्वयंसेवक के गुण और व्यवहार

1 . स्वयंसेवक के गुण-

1. अक्षय ध्येयनिष्ठा 2. निरन्तर साधना 3. 24 घंटे का स्वयंसेवक 4. चरित्रवान 5. समर्पण (अहंकार शून्यता, अनुशासित व संघानुकूल जीवन रचना) 6. व्यवहार कुशलता (छोटे-बड़े स्वयंसेवकों, परिवार, निवास व व्यवसाय क्षेत्र आदि के प्रति) 7. दृढ़ता (वीरब्रत, जैसे -लहू देंगे परन्तु देश की माटी नहीं देगे) 8. आत्मविश्वास 9. विजिगीषु वृत्ति 10. आत्मनिरीक्षण 11. तत्व तथा व्यवहार में एकरूपता (कथनी-करनी समान) 12. लोकसंग्रही 13. प्रयत्न पूर्वक स्वयं के सर्वागीण विकास के लिये आग्रही (अधिकाधिक दायित्व ग्रहण करने की मानसिकता)

2. स्वयंसेवक का व्यवहार

क. संघ कार्य मे- 

स्वयंसेवकों के साथ परस्पर बन्धुभाव, निःस्वार्थ, निश्छल, आत्मीयता व स्नेहपूर्ण व्यवहार ( पारिवारिक अनुभूति) से ध्येय की ओर बढ़ाने वाला। एक-दूसरे का विकास करने के प्रयत्न मे संलग्न (कई बार मित्रता तो बनी रहती है परन्तु संघ बीच में से निकल जाता है, यह योग्य नहीं है), सबके गुणावलोकन करने वाला दोषान्वेषण करने वाला नहीं ।

ख. स्वयंसेवकों का अधिकारी के प्रति- 

आदर, श्रद्धा व विश्वास युक्त व्यवहार। अधिकारी के मार्गदर्शन के अनुसार जीवन में सद्गुण लाने का प्रयत्न । सदेव गुणग्रहण करने की मनोभूमिका। कार्य को उत्तरदायित्व पूर्ण तथा प्रमाणिकता से सम्पन्न करने का भाव, अनुशासनयुक्त व्यवहार। बनावटी व्यवहार हमारे विकास तथा कार्य में बाधक होगा।

ग. अधिकारी का स्वयंसेवक के प्रति- 

स्वयंसेवक के विकास के लिये सहयोगी एवं मार्गदर्शक। कार्यवृद्धि की दृष्टि से विधि-निषेध सहित बताये गये व्यवहार को अपने जीवन में भी क्रियान्वित करने वाला, पक्षपात रहित व आत्मीयतापूर्णं व्यवहार । माता जैसा वात्सल्य, पिता जैसा हितचिन्तक, बड़े भाई जेसी आत्मीयता, मित्र जैसी अभिन्नता।

घ. समाज के साथ व्यवहार- 

समाज के प्रति श्रद्धाभावी। सदेव समाज के हित के लिये चिन्तन करने वाला, समाज के प्रत्येक घटक से बन्धुभाव, समाज के सुख-दुख में संवेदनाओं के साथ तादात्म्य भाव। भीषण परिस्थितियों मे भी देश एवं समाज कार्य के लिये सदेव तत्पर रहने वाला, संकट व चुनौतियों के समय आगे और पुरस्कार मिलते समय सदेव पीछे रहने वाला। अहंकार शून्य, सेवाभावी, स्नेहिल। व्यवसाय/नौकरी में प्रमाणिक। परिवार, वर्ग, भाषा, संस्था, प्रान्त, सम्प्रदाय आदि के मिथ्याभिमान से दूर रहने वाला।

ङ. व्यक्तिगत जीवन में - 

मृदुभाषी, निश्छल, पारदर्शी, नियमित, व्यवस्थाप्रिय। समय नियोजक, हँसमुख, मितव्ययी, मिलनसार, सम्वेदनशील, समयपालक। व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक तथा सांधिक जीवन में कर्तव्यों को आचरण मे प्रकट करने वाला। सभी कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए संघ कार्य को प्राथमिकता देने वाला व स्वदेशी का आग्रही। परिवारजनों मे संघ कार्य के प्रति श्रद्धा, आत्मीयता एवं विश्वास निर्माण करने वाला। संघ के संस्कारों के कारण जीवन में सद्गुण सम्पदा बढ़ रही है। ऐसा परिवारजनों को आभास कराने वाला। किसी भी प्रकार के संकट (आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक आदि) आने पर भी मन का संतुलन बनाये रखने वाला। सर्वत्र व्यवहार में तादात्म भाव मर्यादापूर्ण व्यवहार, विवेकबुद्धि। यद्यपि “शुद्धम लोक विरुद्धं न करणीयं न चरणीयम् ।"


स्वयंसेवक की संघोन्मुखी दिनचर्या

  • स्वयंसेवक एक घण्टे की शाखा का ही नहीं अपितु चौबीस घंटे का स्वयंसेवक ।
  • 1 घण्टा शाखा पर, शेष 23 घंटे का समाज सम्पर्क के लिये उपयोग।
  • प्रत्येक मित्र स्वयंसेवक तथा प्रत्येक स्वयंसेवक मित्र।
  • एक बार का स्वयंसेवक जीवन पर्यन्त स्वयंसेवक (एकदा स्वयंसेवक-सर्वदा स्वयंसेवक)।
  • व्यक्तिगत मित्रता को स्वयंसेवकत्व की स्थिति में पहुँचाना।
  • संघ कार्य के लिये अधिकाधिक समय निकाल सके ऐसा व्यवसाय चुनना।
  • संघ कार्य के लिये समय निकालने वाले सूत्र- अपने दैनिक कार्यो (स्नान, भोजन, विश्राम आदि) में न्यूनतम समय लगाना।
  • व्यर्थं की गपशप, बहस आदि में समय नष्ट नहीं करना। अनावश्यक कार्यों को यथा सम्भव टालना।
  • पहले दिन की रात्रि मे अगले दिन की व्यवस्थित योजना बनाना।


कार्य योजना -

  • अपने मोहल्ले व व्यक्तिगत, व्यवसायिक व सामाजिक क्षेत्र में सम्पर्क मे आने वाले बन्धुओं को संघ का उद्देश्य, आवश्यकता आदि समझाना। उन्हें कार्यक्रमों में बुलाना, अपना साहित्य पढ़ने के लिये देना, सघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं अथवा अधिकारियों से मिलवाना। उनके सुख-दुख मे सम्मिलित होना, अंत मे उनको शाखा मे लाना।
  • अपना जीवन, व्यावहारिक, प्रमाणिक व प्रेरक हो तथा कथनी-करनी में अंतर न हो।
  • वाणी, चरित्र व धन की प्रमाणिकता उपदेश से नहीं अपितु अपने व्यवहार से प्रस्तुत करना।
  • शाखा को अपने जीवन की प्राथमिकता बनाना। 23 घंटे संघ कार्य वृद्धि के लिये प्रयास करना।
  • घरो का सम्पर्क-स्वयंसेवक तथा उनके परिवार के सभी लोगों के साथ आत्मीय सम्बन्ध।


अनुशासन का स्वरूप व महत्व

  1. अनुशासन संगठन का प्राण है। उसी से शक्ति का निर्माण होता हैं-“समूह-अनुशासन-संगठन।"
  2. स्वच्छन्दता को स्वतंत्रता नहीं कहा जा सकता। अनुशासन प्रतिबन्ध नहीं हे।
  3. अनुशासन द्वारा ही शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा को ध्येयानुरूप बनाना सम्भव।
  4. बिना किसी प्रतिदान अथवा पुरस्कार की इच्छा या बिना किसी भय या दबाव के, स्वयंस्फूर्त, तन-मन व कर्तव्य बुद्धि से उच्चतम ध्येय की प्राप्ति मेंस हयोग करना अनुशासन है।
  5. साध्य प्राप्ति के लिये विधि-निषेधों का स्वयं स्पूर्ति से पालन व उसका अभ्यास करना भी अनुशासन हे।
  6. अनुशासन का सम्बन्ध ध्येय, जीवन और कार्य से है।
  7. सामाजिक अनुशासन एकाकी जीवन से सम्भव नहीं है।
  8. अनुशासन और सैनिकीकरण में अन्तर।
  9. अनुशासन में भी स्निग्धता का वातावरण निर्माण करना सम्भव।
  10. अनुशासन का अर्थ है “निश्चित नियम-व्यवस्था से चलना।"
  11. शारीरिक अनुशासन-आज्ञा पालन का भाव तथा उच्च स्तर की मानसिकता है। यह यान्त्रिक नहीं हो सकता।
  12. संयम अनुशासन का आवश्यक लक्षण है।
  13. अनुशासन का बाहरी स्वरूप कठोर किन्तु आन्तरिक स्वरूप विनग्र होता है।
  14. अनुशास के कारण 1 और 1 मिलकर 11 अर्थात् (शक्ति) बनती हैं वहीं बिना अनुशासन के एक और दो भी नहीं बन पाते।
  15. समाज में सेना की प्रतिष्ठा अनुशासन के कारण ही है। अनुशासन विहीन संगठनो/ संस्थाओं को अपयश प्राप्त होता है।
  16. अनुशासन के अभाव में असफलता (मंगल पांडे का उदाहरण.)
  17. अनुशासन के पालन से सफलता, (आपातकाल, छप्पर उठाना, नौ मतों का एक मत, खेल आदि उदाहरण),
  18. सूचना का पालन न करने से "मोगा हत्याकाण्ड" । (उग्रवाद के समय प्रत्येक शाखा में सुरक्षा के लिये दो स्वयंसेवक बाहर रहें इस सूचना का पालन न करने के कारण 21 स्वयसेवकों व अन्य दो लोगों का बलिदान)।


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